पंचकोश जिज्ञासा समाधान (02-08-2024)
आज की कक्षा (02-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
योगराजपनिषद् में चतुर्थ अनाहात चक्र हृदय में नीचे की ओर मुख किए सभी सिद्धियो को देने वाला है, यहा नीचे की ओर मुख का क्या तात्पर्य है
- अनाहात चक्र भावनाओं का केंद्र है वहा वायु तत्व विज्ञानमय कोश से सम्बंधित है
- यदि भावनाएं नीचे संसार से जुड़ी है तो अधोमुख कहलाती है, चित्त की वृत्तियां अधोमुख कहलाती है
- यदि भावनाएं ईश्वर से जुडी है तो उधर्वमुख कहलाती है या चित्त की वृतियो का निरोध करेंगे तो भी अधोमुख होगा व आत्मा की छवि देखेगा
- हमें ईश्वर की तरफ मुख करना चाहिए परंतु हम परछाई की तरफ अपना मुख कर रहे हैं
- समविद = ज्ञान पुंज = जो Absolute Truth का जो बौधत्व करा दे
अपने ज्ञान नेत्र से जो साधक कदंब के गुच्छक के समान गोलाकार चक्र के मध्य में दो दण्डो का दर्शन करते है, वे बह्मलोक को प्राप्त करते हैं का क्या अर्थ है
- कदंब का गुच्छा = सहस्तार चक्र
- दो दण्ड = आत्मा व परमात्मा दोनो को देखना / दो पक्षी / आध्यात्म व विज्ञान दोनो को देखना ( दोनो विकार रहित है व दोनो शुद्ध है) / परा व अपरा की दो प्रकृति / जीवात्मा व परमात्मा
- जीवात्मा = कर्म फलो को भोगता है
- परमात्मा = साक्षी भाव में रहता है
- यदि हम जीवात्मा भी साक्षी भाव में आ जाएं तो ऊपर का जीव भाव वाला छिलका हट जाएगा और हम भी आत्मा के समान पवित्र हो जाएंगे
. . . रूप में विक्षिप्त हुई देखी जा सकती है . . .Endocrine Gland व उसके पास के क्षेत्र को जादू का पिटारा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी तो यहां Endocrine Gland क्या है तथा 6 Hormones ग्रंथियों से कौन से रस निकलते है
- cerotonin और melatonin ग्रंथियों से निकलने वाले रसो के नाम है
- एक ज्ञान के लिए होता है तथा एक शरीर को Rest Mode में लेकर जाता है
- दो रस निकलता है जागृत मन सुपरचेतन मन को जगाता है
- ज्ञान मे भी एक मस्ति है, उत्साह है, वह Cerotonin के कारण होती है -> यह आत्मज्ञान वाला आनंद है
- melotonin पूरे शरीर को विश्राम की अवस्था में universal battery से charge करता है
- इन दो रसायनो के अलावा और भी बहुत variety के रस निकलते है
- Cerotonine, Hormones में नही आते बल्कि Neuro Transmitter में आते है
- melatonine को Hormones के रस के रूप में हम ले सकते हैं
- परुषों में व स्त्रियों में अलग Hormones होते है
- काम वासना रूपी रस भी Hormones है
- वही रस युवा बनाता है व ताजा बनाकर रखता है, यदि युवा रहना है तो उस रस को ताजा रखिए व उसी को ईश्वर में, स्वाध्याय में, Third Eye खोलने में लगाइए परन्तु हम इसके विपरीत इस रस को संसार में लगा देते हैं यह सही नहीं है
प्रणवोपनिषद् में दूसरे कमल सुत्र के सदृश्य सूक्ष्म शिखा की कांति दृष्टि गोचर होती है वह नासाग्र से सुर्यवत तेज को धारण कर सुर्य मंडल का भेदन कर वहा स्थित है, का क्या अर्थ है
- प्रणव = ॐ = यह एक दिव्य तेज है, इसे कुण्डलिनी समझ सकते है, यह कभी कभी ध्यान की अवस्था में चमक जाता है तथा यह थोडे समय के लिए भी आकर पूरे शरीर को झकझोर देता है
- सूर्यमंडल = आज्ञा चक्र में ॐ का बीज मंत्र प्रणव होता है तथा सहस्तार चक्र में परमात्मा का स्थान माना, उन दोनो को जोडने में ॐ काम आता है, इसलिए इसे सुर्य चक्र ( आज्ञा चक्र में ) चमकता हुआ बताया गया है
- त्रिकुटि में ध्यान करने पर जब ध्यान एकाग्र होगा तो उस चमक से मस्तिष्क भी साफ होगा, कर्माशय भी साफ होंगे, अचेतन मन में दबे संस्कार एलर्जी, फोबिया, सब जलकर समाप्त हो जाएगें, इसलिए वहा पर ध्यान करने की बात की जाती है
- नाक पर त्राटक करने से उसका signal आज्ञा चक्र (तृतीय नेत्र) को प्रभावित करता है
- शाम्भवी मुद्रा से तृतीय नेत्र प्रभावित होता है
पंचकोश के किन क्रिया योगो से सहस्तार व आज्ञा चक्र को मिलाने में मदद मिलती है
- जप ध्यान त्राटक तन्मात्रा सभी मदद करते हैं
- त्रिकुटि के मध्य में ध्यान करने से
- बाह्य त्राटक सुर्य चंद्रमा पर करे
- अन्तः त्राटक में उसकी आत्मा से अपनी आत्मा का संबंध जोडे तथा अतः त्राटक शक्ति केद्रो व चक्रो पर किया जाए, वहा शक्ति केंद्र प्रकाशित होता है व विधुत चुम्बकीय प्रवाह वहा उत्पन्न हो जाता है
- मनोमय के चारो उपाय एक से बढ़कर एक है हम अपने मन के अनुरूप चुन ले
क्या मनोमय कोश के प्रवेश द्वार आज्ञा चक्र में हमें सहस्तार चक्र को भी मिलाना है
- आज्ञा चक्र में दोनो Pineal व Pitutary शामिल है तथा सहस्तार चक्र Byproduct होता है
- सहस्तार चक्र को जगाने के लिए ॐ से भी परे, सब ध्वनियों से परे चिदाकाश का ध्यान कर सकते है, फिर वहा मौन की स्थिति आएगी
- जब बोल दिए तो संसार का रूप ले लेगा, ईश्वर शान्त है वह हमेशा मौन रहता है
- परमेश्वर स्तुति मौनमः, ईश्वर किसी भी शब्द परिभाषा से परे है रात व दिन दोनो की सत्ता वहा समाप्त हो जाती है
क्या ध्यान की गहराई मे समाधि की अवस्था सहस्तार चक्र की स्थिति मानी जा सकती हैं
- जब ध्यान में सारा दृश्य विलय हो गया तथा सब समाप्त हो गया तो इसे समाधि की अवस्था कह सकते है
- जागृत में जब वह संसार में देखेगा तो उसे ईश्वर ही ईश्वर चिदाकाश के रूप दिखाई देगा, यह सहज समाधि की स्थिति होगी
सन्यासोपनिषद् में आया है कि हे सखा आप हमारी रक्षा करे, इस प्रकार कहकर दण्ड को धारण करना चाहिए, यहा दण्ड का क्या अर्थ है
- धर्म ही मनुष्य का ईश्वर के साथ जुड़ने का एक मात्र सहारा होता है
- धर्मो रक्षितः रक्षताः
- जो सबमें एक समान लागु होता हो, यह आदर्श होता है तथा ऐसे Highest Common Factor को धर्म कहते है, यही Ideal ( धर्म ) ही एक मात्र सहारा बनता है, यही दण्ड है, यह पलाश लकडी का बनाया जाता है, यह संयम का प्रतीक होता है
- त्रिआयामी सृष्टि में हम धर्म को झिलमिलाते देखें
- सहस्तार चक्र को चंद्र लोक कहते है
- सन्यासी = जो व्यक्ति आत्मा की खोज में लीन है उसे सन्यासी कहा जाएंगा, वह चाहे घर रहे या बाहर रहे या कही भी रहे
कहा जाता की महिलाओं में पुरषों की तुलना में 10 गुनी श्रद्धा होती है कृपया प्रकाश डाला जाय
- ईश्वर ने दो तत्व पैदा किया
पहले प्रज्ञा उत्पन्न किया फिर श्रद्धा उत्पन्न किया - प्राण में दो घुला रहता है – परा व अपरा
- प्रकृति जीवात्मा को पोषण देने के लिए ही बनाई जाती हैं
- प्रकृति में श्रद्धा तत्व प्रधान है, संसार भावनाओं से बना है, भावना न देंगे तो सब बिखर जाएगा
- जैसे 24 तत्वों का अलग अलग स्वभाव है
- उन सभी को जोडने के लिए श्रद्धा तत्व काम करता है इसलिए ईश्वर ने प्राण के बाद श्रद्धा तत्व उत्पन्न किया
- किसी भी चीज को महत्व देंगे तो बढ़ेगा परन्तु उपेक्षा (महत्व न देंगे) तो समाप्त हो जाएगा
- श्रद्धा या उपेक्षा (श्रद्धा का आभाव)
- श्रद्धा तत्व की मात्रा नारी शक्ति में अधिक है
- नारी में करुणा संवेदना ममत्व अधिक है तथा ममत्व से माँ बन गई
- पुरुषो में पराकम्र मन्यु संघर्ष कठोरता
- दोनो मिलकर ही कोई तत्व बनता है
- वामाचार = नारी शक्ति को महत्व देना
वामाचार के एक ही अर्थ में हम जीते है, इसके भी अनेक अर्थ है तथा हर सकारात्मक अर्थ को हम ले सकते हैं - बिना वामाचार के आत्मा नही मिलेगा
श्रदा व प्राण किस प्रकार सम्बंधित है क्या श्रद्धा प्राण से ही उत्पन्न हुआ
- आदर्शो को प्राण कहा गया
- आदर्शो के प्रति अटूट प्रेम को श्रद्धा कहा गया
- श्रद्धा की अग्नि से आत्मा प्रदीप्त होती है
Endocrine system पर दवाओ का control नही है तो फिर Endocryonologist करते क्या है
- Endocryonologist यह बता देगे कि कौन से Hormones की कमी से कौन सा रोग होता है
- Hormones की खोज चल रही है तथा कुछ Hormones की properties देख ली गई है
- Hormones के न निकलने पर क्या समस्या आ रही है यह देख लेता है
- वे Hormones या तो बाहर से या जानवरो से लेकर inject कर सकते है
- फिर वे बताते है कि भीतर से Hormones निकाल पाना संभव नही है तो जीवन भर दवा खाना होगा
- भीतर से Hormones निकालने के लिए गुरूदेव ने बताया कि Endocrine System और Autonomous Nervous System पर अन्य किसी भी तरीके से Commond नही किया जा सकता लेकिन प्राण को यदि जगा लिया जाए तो यह कठिन काम अत्यंत सरल हो जाता है
- विचारो व भावनाओ से प्राण का जागरण होता है यहा विचार व क्रिया दोनो मिलती है
- यदि हम यौगिक क्रिया भी करे तो ध्यान दे कि हमारे Hormones केंद्र के पास जो भी चक्र है जैसे आज्ञा चक्र के पास Pineal व Pitutary दोनो को Activate कर ले
- चक्रो का जागरण के लिए 2 काम करने होते हैं
-> यौगिक क्रिया + Meditation (विचार)
तब वहा क्रिया में बंध से Heat पैदा होगा व ध्यान केंद्रित किया जाए तो चक्र जागृत होने लगते है - प्रज्ञा पुराण के अनुसार रोगो का 2 मुख्य कारण है -ve Thought और -ve Action
- Action वाला तो रसायन से कुछ contol किया जा सकता है
- पूरी तरह से Cure करना है तो यौगिक क्रिया से किया जा सकता है
ॐ का हरश अंश पापो का दहन करता है तथा दीर्घ अंश अमृत तत्व रूप अक्षय सम्पदा को प्रदान करता है तथा अर्धभाष / अर्धमात्रा से युक्त प्रणव मोक्षदायक है, का क्या अर्थ है
- अर्धमात्रा = चंद्रबिंदु
- कभी कभी हमे आत्मा को जानने के बारे में उमंग उठता है बाकी समय स्थूल सूक्ष्म कारण का ही उमंग उठता है
- भावना विचार क्रिया में फंसे रहते है यही अ उ म कहा गया है
- कभी-कभी आत्मा को जानने का विचार भी आता है क्योंकि ऐसा लगता है कि वहां बहुत शांति है इसी को अर्धमात्रा कह दिया
- कुछ आगे भी सोचे केवल इतना जानना ही दुनिया नही है
- आत्मा को जानना = अर्धमात्रा है
- शिवरात्रि के बारे में बताएं, शिवरात्रि को शिवरात्रि ही क्यों बोलते हैं और जल दूध बहुत सी चीजों से अभिषेक करने का क्या महत्व है
- जिनसे अभिषेक किया जाता है, सब औषधियां है
- दूध को देसी गाय का दुध समझे -> ये सभी आत्मा को शुद्ध कर देती हैं ताकि प्रेत योनि में न भटकना पड़े, सारे भूत प्रेत भी शिव के साथ जुडकर तर गए
- शर्करा (गन्ने का रस), बेलपत्र ->सभी औषधियां है
- डाक्टरो के डाक्टर को शिव जी कहते है
- किस महीने में क्या खाए यदि इन सभी चीजो का जो शिव जी पर चढ़ाई जाती है का सेवन करना हो तो डाक्टर की सलाह ले
शिवरात्री = >
- आत्मा से परमात्मा के मिलन का समय = शिवरात्री = आत्मा को जगाने का मूहर्त
- रात्री इसलिए लिया जाता है कि हम संसार के भाव में लगातार जगे नहीं इसीलिए योगियो के लिए रात्रि का समय लिया जाता है, संसार जहा जगता है वहां योगी सोता है तथा संसार जहां सोता है वहां योगी जगता है
- शिव = सहस्तार व पार्वती = कुण्डलिनी
- इस रात्री को दोनो को मिलाने की प्रक्रिया की जाती है इसी प्रक्रिया को शिवरात्री कहते है
- यौगियो का मैथुन भी इसे कहा जाता है 🙏
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