पंचकोश जिज्ञासा समाधान (05-08-2024)
आज की कक्षा (05-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
प्रश्नोपनिषद् में आया है कि मरण काल में इस आत्मा का जिस प्रकार मनः संकल्प होता है उसी प्रकार के संकल्प के साथ वह प्राण को प्राप्त करता है वह प्राण के तेज से सम्पन्न होकर जीव के संकल्पना अनुसार उसे भिन्न लोकों में ले जाते है / लोक या योनि में ले जाते है तो मरने के समय कैसा अनुभव होता है
- विचार भाव क्रिया -> सब प्राण है
- जब कोई प्राणी विचार कर रहा है तो उसकी प्राणिक उर्जा Thought के रूप में काम कर रही है
- कोई स्नेह प्रेम आत्मियता की भावनाएं दे रहा है तो वह प्राण भी आत्मियता का ही रूप है
- जब शरीर छूटा तो उसमें से निकलने वाला जीवात्मा कहा गया -> जो जिस भाव को लेकर शरीर छोड़ा तो वही अन्त समय की भावनाएं उन भावनाओं को पूरा करने के लिए ही विभिन्न योनियो में ले जाएगी
- जीवन भर में जो भी कोई कर्म किया यदि वह अपने अवचेतन मन में नहीं जाएगा तब तक वह संस्कार नहीं बनेगा
- यदि वह अवचेतन मन में नही गया तब तक वह नही माना जाएगा कि कुछ किया भी है
- संस्कार (Traveler Cheque) बनना चाहिए
- Traveler Cheque में केवल संस्कार ही जाते है
- जो ज्ञान अनुभव से युक्त हो, संस्कार कहलाता है
- ज्ञानयुक्त अनुभव ही संस्कार है तथा अनुभव तभी आएगा जब Repeat & Repeat करेंगे तथा जितना भी Repeat करेंगे उतना ही गहरा अनुभव आएगा
- यदि अच्छा अनुभव लेना है तो हमें अच्छे Practicals पर लंबा अभ्यास करना पड़ेगा
- इसलिए श्री कृष्ण ने गीता में कहा कि यदि हमारी दोस्ती (सामीप्यता) चाहते हो तो उसके लिए हमारी विचार भावनाओं में लंबे समय तक रहने का 24 घंटे बार बार अभ्यास करो तभी वह संस्कार बनेगा
- जब शरीर छोड़ने की बारी आती है तो व्यक्ति की सभी ज्ञानेंद्रिय धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं
- बाहर वाला मन जो खाने पीने व अन्य बाहर के विषयो को ध्यान कर रहा था वह Sleeping Mode में चला जाता है / सो जाता है, तब भीतर वाला ही मन कार्य करता है तथा जन्म जन्मातरो के भी पिछले सारे सीन हमें फिल्म की तरह दिखाता है
- यदि पिछले प्रश्नो का समाधान नही लिया गया तो वह भी याद दिलाएगा तथा वही अवचेतन मन में आता रहेगा जो भी भाव अधिक Emotional या प्रभावशाली (Resultant) रहा, वही हमें आगे की भिन्न योनियो में लेकर जाएगा, यही Resultant भाव ही हमें अगली योनि में लेकर जाएगा जैसे Film देखने के बाद हमारा चेहरा रो रहा था या हस रहा था या शांत था, उसी अन्त समय के भाव के अनुसार आगे की यात्रा चलती रहेगी / योनियां मिलती रहेगी
- इसलिए इस जन्म में हम हमें अच्छे संस्कार भी डालने हैं और पूर्व जन्म के गलत संस्कारों को भी समाप्त करना है
कुण्डलिनी साधना व सावित्री साधना में क्या अन्तर है
- सवित्री = पदार्थ विज्ञान
- गायंत्री = आध्यात्म विज्ञान
- कुण्डलिनी इन दोनो को जोडती वाली शक्ति है
- कुण्डलिनी वह शक्ति है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़े
- कुण्डलिनी से ही गायंत्री की उत्पत्ति हुई
- सारे विश्व बह्माण्ड ( पदार्थ विज्ञान व आध्यात्म विज्ञान), सभी को चलाने वाली बिजली ही कुण्डलिनी शक्ति है वही सारे बाह्मण्ड की शक्ति का आधार है, इसी प्रकार शरीर रूपी बह्माण्ड की कुण्डलिनी शक्ति मूलाधार में स्थित है
- वही ज्ञानयुक्त उर्जा भी है
राधोपनिषद् में परमदेव/सर्वदेव कृष्ण को व परम शक्ति राधा को बताया है तो फिर शिव पार्वती नारायण लक्ष्मी कहा है
- ज्ञान पक्ष = कृष्ण = शिव = विष्णु
- उर्जा पक्ष = राधा = पार्वती = लक्ष्मी
- राधोपनिषद् में राधा इसलिए कहा गया कि राधा को मानने वालो की श्रद्धा न टूटे
लसद भाल व मृगादिश का क्या अर्थ है
- लसद = चमक रहा है
- भाल = ललाट
- दोनो शब्दो को मिला देंगे = Cool Mind चमक रहा है परन्तु आवेश ग्रस्त अवस्था में यह अवस्था संभव नहीं
- मृगादिश = मृग की छाल पर विराजमान कर के ध्यान लगाते है
- मृग एक कारुणिक जीव होता है
- जो हिरण स्वेच्छा से शरीर छोडे रहते है उनके (हिरण के) शरीर में संस्कार दयालुता का रहता है
- प्रसिद्धा = आप प्रसन्न हो ऐसा Prayer करना है
- जैसे कहा जाता है कि कामदेव को भस्म करने वाले हे शिव आप प्रसन्न हो
कोशितिकीबाह्मणोपनिषद् में पिता पुत्र के सप्रदान कर्म का मान करते है जब पिता यह निश्चय करे कि मुझे अब शरीर का परित्याग करना है तब वह पुत्र को बुलाए . . . पुत्र को घर का स्वामी बनाकर उसके साथ निवास करे या सब कुछ त्याग कर स्वयं घर का त्याग कर संन्यासी बने तो आज के समय यह कैसे पता चलेगा कि मृत्यु कब आएगी तो ऐसा कब आता है कि घर त्याग कर सन्यासी बन कर त्याग करे
- जीवन के उतरार्थ (Retirement) के बाद का जीवन समाज में लागना ही लगाना है, जब घर के लड़के युवा हो गए तो भी घर का पूरा Control अपने हाथ में लेकर क्यो घूम रहे है
- वानप्रस्थ में 9 महीने बाहर तथा 3 महीने घर में रहकर देखिए कि घर वालो को कोई दिक्कत तो नही हो रही
- फिर 75 वर्ष के बाद 100 % का समय समाज को देना है साधु बनकर या बाह्मण बनकर
वसुदेव कुटम्बकम का यह भाव अन्त में आना ही चाहिए तब हम विश्व मानव बनेगे - यदि नही करेंगे तो विश्व मानव नही बनेगे तथा पितर योनि में जाएंगे
ज्ञान व उर्जा में से एक को पकड ले तो दूसरा अपने Control में आएगा या नहीं जैसे
- नही पकड़ में आएगा
- Unipole Magnet Exist नही करता दोनो Pole रहेगा ही रहेगा
- दोनो शक्तियां साथ साथ रहेगी
- प्राण जड व चेतन का मिश्रण है
- प्राण = कुण्डलिनी = गायंत्री
- हम प्राणी भी प्राण का स्वरूप है, प्राण निकलने पर ही दाह संस्कार किया जाता है
- Quanta = Energy with Dual Nature = भारतीय ऋषियों ने इसे प्राण कहा है
- यह उर्जा Wave व Energy दोनो रूप में रहेगा
- प्राण = ज्ञानयुक्त उर्जा है केवल उर्जा मात्र नही है
- ज्ञान = शिव
- शक्ति = पार्वती
- प्राण को ही रुद्र भी कहते है
- प्राण का केंद्र मूलाधार है
राधा भक्त व कृष्ण भक्त केवल एक पक्ष को मानने वाले शक्ति या ज्ञान के माध्यम से कैसे ईश्वर को पाते है
- यह एकांगी साधना से बात बन जाती है, राधा ही कृष्ण है तथा कृष्ण ही राधा है
- अभेद दर्शनम् ज्ञानम, एको बह्म द्वितियो नास्ति , जब केवल एक ही बह्म यहा है तो उसे राधा कहे या कृष्ण कहे कोई फर्क नही पड़ता
- प्रेमानन्द जी महाराज यदि एक पक्ष राधा रानी को लेकर चल रहे है तो
- उनके उर्जा पक्ष का अर्थ समझना होगा
- Cosmic Body के ही दो भाग -> Cosmic Body व Spritual Body होते है
- संत अपनी कुण्डलिनी शक्ति को जगाकर पूरे विश्व बह्माण्ड में परिवर्तन कर सकते थे
- ईश्वर में ही सदैव बना रहेगा
- सुदुराचारी भी यदि ईश्वर की शरण में आ जाए तो भी संत मानने योग्य है तथा वह भी ईश्वर को पा लेगा
बह्मचर्य क्या है उस का कैसे पालन करे
- विद्यार्थी जीवन में रहते हुए 3 कार्य करे
- Physical Fitness बनाए रखे
- अपना Mental Level बढ़ाए, IQ बढ़ाए
- आत्मा को चमकाओ, इसका अर्थ है कि अच्छी आदते व अच्छे संस्कारो को अपनाएं
- रज व वीर्य की शक्ति को बढ़ाए
- नारी शक्ति में रज का वास है तो उस उर्जा को हम आगे बढने में लगाए, एक दिन भी तबीयत खराब ना हो तथा IQ Level बढ़ाते रहे
- पुरुष में वीर्य का वास है तो इसका तेज भी बढ़ाते रहे
- IQ Level बढाने के लिए सविता के तेज का ध्यान व 15 मिनट गायंत्री जप करना चाहिए तथा अपने विषय पर 45 मिनट medlitation करे
- आपका विषय ही आपका देवता है, यदि उसे विषय में हम Concentrated मन लगाकर कार्य करेंगे तो वैज्ञानिक बन जाएंगे, उस विषय का मनन चिंतन करे व उसे Share करे, कोई Share करने वाला ना मिले तो वह ज्ञान पौधों को सुनाएं तब वह संस्कार बन जाएंगा
- IQ Level तन्मात्राओं (रूप रस गंध शब्द स्पर्श) के नियंत्रण से भी बढ़ता है, यह मानना कि मै एक आत्मा हूँ तथा अपनी भाव संवेदना भी Universal हो तथा अपनी भाव संवेदना किसी खास व्यक्ति तक या खास Range तक सीमित न हो
क्या हम एक ज्ञान पक्ष या उर्जा पक्ष की उत्पत्ति ईश्वर से ही मानवर पूर्ण नही हो सकते क्योंकि ज्ञान व उर्जा दोनो एक मात्र ईश्वर से ही निकले है
- यदि एक से ही पूर्ण मान रहे तो कोई शब्द (राधा कृष्ण या राम) उपयोग न करे क्योंकि ईश्वर अशब्दम् है और ईश्वर शब्दों से परे है तथा वह मौन भी है तो उसे शब्दो में नही बांध सकते
- शब्द या अनुभव की भला क्या व्याख्या की जा सकती है, वह ईश्वर अपरिभाषित है
- To Define God is to Denying God ❤️
- जब हम एक ही को सब कुछ मान रहे हैं तो यह भी माने कि वही राधा है, वही कृष्ण है, वही शिव है वही राम है, तो ऐसा मानकर वह ईश्वर को पा लेगा
- जितने भक्त होंगे उतने ही भगवान होगे, ब्रह्म केवल एक ही है परंतु हर एक भक्त का अपना एक भगवान होता है क्योंकि उसका अपना गुरु अपनी Thought, अपनी दुनिया / मन में अपना ही Creation बनाकर जी रहा होता है तथा प्रत्येक को यह छूट है अपने ढंग से आनंद लेने की क्योंकि ईश्वर आनन्दमय है शांतिमय है
- अपने मन से कोई भी नाम दे सकते हैं परंतु राधा को मानने वाले यदि शिव भक्तों के बीच में जाएं तो वहां वे राधा को शिव का ही नाम दें तो किसी को आहत नही होगा ताकि हम सबको प्रसन्न रखे तथा सबके वरणीय हो जाए
वामाचार के बिना आत्मा नही मिलेगी इसे स्पष्ट करे
- वेदाचार + वैष्णवाचार + शैवाचार + दक्षिणाचार + वामाचार
- वामाचार इन सबमें श्रेष्ठ है
- सभी को साथ लेकर चलना है
- कुछ ने वामाचार का दुरूपयोग किया तो वामाचार इससे बुरा साबित नही हो जाता
- जैसे चाकू को सब्जी काटने के रूप में या किसी की हत्या करने के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है परंतु इससे चाकू बनाने वाले के विषय में यह नहीं कह सकते कि चाकू का निर्माण गलत है
- वाम = पदार्थ विज्ञान
- चार / दक्षिण = आध्यात्म विज्ञान
- इन दोनो पर अपना नियंत्रण हो 🙏
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