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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (11-09-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (11-09-2024)

आज की कक्षा (11-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

शिवोपनिषद् में आया है कि जल, मंत्र, दया, दान, सत्य, इंद्रिय संयम, ज्ञान तथा भाव शुद्धि, ये 8 प्रकार के शौच है, का क्या अर्थ है

  • शौच = शुद्धिकरण = चेतना का शुद्धिकरण = मन की शुद्धि = पाचो कोशों की शुद्धि
  • जल = स्नान के लिए = बाह्य शुद्धि के लिए
  • मंत्र = मंत्र से मन शुद्ध होता है
  • दया = विज्ञानमय कोश / भाव शरीर शुद्ध होता है / हृदय शुद्ध होगा
  • दान = लोभ से शुद्धि (लोभ में व्यक्ति बटोरता है) दान में व्यक्ति बाटता है
  • ये सभी उपाय अपने व्यक्तित्व को शुद्ध बनाने के है, यही तीनो शरीरों को शुद्ध बनाने के उपाय है
  • सत्य = भेद दृष्टि खत्म होगा
  • इद्रिय संयम = रोग भागेगा
  • ज्ञान = अज्ञानता हटेगा
  • आत्म शुद्धि = आत्म भाव में रहने से शरीर भाव हटता है

याज्ञवल्कयोपनिषद् में आया है कि यदि जितेन्द्रिय हो जाए तो चाहे बह्मचर्य से ही संन्यास ले ले या फिर अपनी इच्छा अनुसार गृहस्थ आश्रम के बाद ले, . . . जिस दिन संसार से सर्वथा वैराग्य हो जाए, उस दिन संन्यास ले लेना चाहिए चाहे व्रती हो अथवा नहीं, स्नातक हो अथवा नही, अग्नि की सेवा कर चुका हो अथवा नहीं, जिस क्षण वैराग्य का भाव उत्पन्न हो जाए उसी क्षण संन्यास ले लेना चाहिए, का क्या अर्थ है

  • व्रती हो या नही = अपने को अच्छा बनाने के लिए व्यक्ति व्रत लेकर संकल्प करता है, अनुष्ठान करना होत है
  • यदि वैराग्य हो गया तो इसी के लिए व्रतशीलता थी, तब इसका जरूरत नहीं पडेगा
  • मुख्य उद्देश्य था कि वैराग्य को हटाने / आसत्ती को हटाने के लिए सभी साधनाएं की जाती थी
  • सांसारिक थपेडो से लहुलुहान हुआ व्यक्ति, वैराग्य ले सकता है
  • स्नातक = जो गुरुकुल से पढ़कर लौटा हो, 15 क्रिया योग, जो विज्ञानमय कोश तक की साधना कर लिया उसे स्नातक कहते थे
  • अग्नि की सेवा = वेदाध्यन करना = अग्निध्येनम + वेदाध्यनम् + उपनयनम्

आत्मोपनिषद् में आत्मा अन्तरात्मा व परमात्मा के स्वरूप का वर्णन है, हाथ पैर सिर आख नाक कान व जन्म मरण के चक्कर में जो पडता है, वह आत्मा है, अन्तरात्मा वह है जो पृथ्वी जल सुख दुख आदि काम लोभ स्मृति लिंग आदि स्खलित गर्भित मुदित मोदित . . . आदि के द्वारा रस लेने वाला मनन करने वाला जानने वाल कार्य करने वाला विज्ञानात्मा धर्म शास्त्रों का ज्ञाता . . . कार्यविशेष को पूर्ण करता है, का क्या अर्थ है

  • यहा आत्मा = जीवात्मा के लिए आया है, जो शरीर के भीतर है = सभी जीवो की आत्मा -> यहा जीवात्मा को आत्मा कहा जा रहा है
  • पूरे संसार की समष्टि की आत्मा = सारी प्रकृति मे घुली आत्मा = अन्तरात्मा
  • प्रकृति से परे = परमात्मा जो प्रकृति को अपने सै प्रसंवित किया

निरालम्बोपनिषद् में आया है कि सबके अन्दर में स्थित आत्म तत्व के विज्ञानमय स्वरूप को जानने वाला ही विद्वान है, में विज्ञानमय स्वरूप का क्या अर्थ है

  • संसार के सभी परिवर्तन शील वस्तुओ में एक ही अपरिवर्तनशील सत्ता दौड रही है, इसके साक्षात अनुभव को ही ज्ञान कहा जाता है, इसके साक्षात अनुभव को जानने का Practical
  • प्रत्येक जीव 5 आवरणो से घिरा रहता है
  • सबके भीतर की आत्मा को जो देखने लगेगा तो वह kind Hearted हो जाएगा

छान्दग्योपनिषद् में द्वादश खण्ड में उदगीध के वर्णन में आया है कि मैत्रेय जलाशय के समीप गए, . . . कुछ अन्य श्वान वहा जाने लगे, आप हमारे नियमित अन्न प्राप्ति के लिए उदगीथ का गान करे . . . करने लगे कि हम भूखे है . . . तदन्तर वे वहा बैठकर हुंकार करने लगे, का क्या अर्थ है

  • एक बार एक महिला ने बताया कि उनके वहा कुत्ते भी आरती के समय हुंकार करने लगते है
  • यहा पर उपमा अलंकार का उपयोग किया हे
  • उपमा अलंकार में सांसारिकता व आत्मीयता
  • अपने शरीर में प्राण अपान को तथा अपान प्राण को खीचता है, इस रूप में भी यहा लिया है
  • दोनो मे संतुलन बैठाने की प्रक्रिया
  • जलाशय में जाना = तालाब के निकट जाकर ध्यान करते थे
  • वहा जलाशय के पास शांतिमय Negative Ions अधिक होते हैं, वहा ध्यान करने के लिए उपयुक्त वातावरण होता है
  • यदि भीतर जलाशय देखे तो त्रिकुटि में या बह्मरंध्र को जलाशय मानकर वहा ध्यान करे, वहा के Ventricals , सागर कहलाते है, बह्मरंध्र को भी जलाशय कहते हैं, भीतर में भी वही सारी बातें हैं
  • बाहर जब तक है तब तक प्रकृति का लाभ ले तथा भीतर का भीतर के अनुरूप लाभ ले

क्या हमारे बह्मरध्र में उल्टा कमल ही है तथा अष्टदल का क्या अर्थ है

  • अष्टदल कमल की Philosphy के अनुरूप हमारी रीढ की हड्डी में भी 8 चक्र है, उन्हे भी अष्ट दल कहा जाता है
  • उल्टा कमल = सहस्तार चक्र (कमल) पूरी अष्टधा प्रकृति का नियंत्रण करता है तथा उल्टा का अर्थ यहा अधोमुखी से है, हमारी कामनाए/भावनाएं केवल संसार / स्वार्थ मे खर्च हो रही है
  • जब हमारी भावनाएं ईश्वर की तरफ होने लगती है तथा उन्हें हम आत्मिकी के क्षेत्र में खर्च करने लगते है तब कमल सीधा (उधर्वमुखी) कहलाता है ।
  • 8 पंखुडियो वाला कोई कमल नहीं है
  • अष्ट कमल इसलिए कहा गया क्योंकि हमें सपूर्ण अष्टधा प्रकृति से / अष्ट चक्रो से संबंध रखना है

शास्त्र में तीर्थ यात्रा का बड़ा महत्व है, वर्तमान समय में कैसे इसका लाभ लिया जाए

  • वर्तमान में तीर्थ क्या है, क्या थे व क्या होने चाहिए, इस पर पूज्य गुरुदेव का साहित्य पढ़े
  • पहले लोग तीर्थ यात्रा के लिए निकलते थे तो सीधा तीर्थ नही जाते थे तथा पैदल यात्रा भी करते थे तथा रास्ते में गांवों सत्संग का लाभ देते जाते थे
  • गुरुदेव की भी यही इच्छा थी कि हमारे शिष्य भी ढपली लेकर भजनों के माध्याम से ज्ञान का प्रचार प्रसार देश भर में करते चले
  • हर व्यक्ति एकाकी निकले तथा दो व्यक्तियों की भी जरूरत ना पडे
  • इस तरीके से प्रत्येक गांवों को तीर्थ कहा गया
  • इस प्रकार बीच में मन्दिर पर कही रुके तथा उस गाँव वालोको भी लाभ देते चले
  • इस प्रकार विभिन्न संस्कृतियो को समझना, उनसे सीखना व उन्हे लाभ देना सब होता है तथा आत्मीयता का विस्तार भी होता जाता है
  • बाहर के तीर्थो में कल्प साधना करवाई जाती थी, जैसे गुरुदेव अपने यहा प्राण प्रत्यावर्तन, कल्प साधना (च्रादायण व्रत) तथा कुछ औषधिया भी दी जाती है, इसका उद्देश्य अपना शुद्धिकरण, भारतीय संस्कृति का विस्तार व रक्षा करना रहता था
  • सभी संस्कृति निष्ठ बने तथा केवल पूजा पाठ करना ही उद्देश्य नहीं रहता था

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में मन को वश में करने के दो उपाय अभ्यास व वैराग्य बताए है तो वैराग्य को कैसे समझे, वैराग्य कैसे हो सकता है तथा वैराग्य वास्तव में क्या है

  • वैराग्य=चिपकाव = Addiction = राग से विरक्ति
  • वस्तुओ से / संबंधो से / मान्यताओ से / विषयो से चिपकाव हटाने के लिए अभ्यास किया जाता है
  • घर – परिवार – संसार छोड़ने की बात यहा नही की गई अपितु विषयों से वैराग्य ले तथा मन को विजयी बनाए, यह केवल ज्ञान से ही संभव है
  • यह नियंत्रण आत्मज्ञान से होगा / प्रज्ञा बुद्धि से होगा -> अपने भीतर रितम्बरा प्रज्ञा को जगाने से वैराग्य होता है
  • जब जब चिपकाव हो तो ज्ञानपरक तन्मात्राओं का Practical करके उसे हटाएं
  • पांचो कोशों के 19 क्रिया योगो का अभ्यास निरन्तर करते रहे

यह हम कहते है कि घर परिवार में रहते हुए भी वैरागी / संन्यासी हुआ जा सकता है परन्तु जितने भी आदर्श वैरागी हुए है उन्हे सभी को परिवार छोडना ही पड़ा, राजा जनक को छोड़कर यह बात व्यवहार में नही आती, पूज्य गुरुदेव को भी घर परिवार छोड़ना पड़ा तथा वे भी दोबारा परिवार में लौटकर नही आए

  • घर परिवार यदि छोडा तो लाखों करोड़ो का बड़ा परिवार बना लिया तथा अनासक्त प्रेम करते रहे
  • गुरुदेव ने फिर गांयत्री परिवार बना लिया
  • विद्यार्थी भी वैरागी होता है, जो कुछ समय के लिए घर छोड़ता है
  • हिमालय से साधना करने के बाद ऋषियो को फिर से संसार में ही Practical/सेवा देने आना पड़ता है

गुरुदेव यदि लौटकर वापस भी आए तो घर में नही आए बल्कि गायत्री परिवार में आए

  • इसलिए नही आए क्योंकि अपने परिवार में उनकी उपयोगिता नहीं रही तथा उनको सारा संसार अपना घर दिखता था
  • परिवार छोडा नही बल्कि परिवार को और बड़ा / विशाल कर लिए

गायंत्री महाविज्ञान भाग 3 में आया है कि समान प्राण उदर में नाभी के नीचे रहता है, जिनका प्राण कम होगा, वे सर्दी बर्दाश्त न कर सकेंगे, जाड़ों में देह लुंज – पुंज सी हो जाएगी, गर्मी व सर्दी सहन न होगी, यह अवस्था मेरे साथ भी हो रही है तथा जाँच में भी कुछ नहीं आता तथा एक रोग के बाद दूसरा घेर लेता है, साल भर यही चलता है, अब समान प्राण को कैसे ठीक किया जाए

  • जब आप सासाराम आएगे तब आपके अनुरूप योग का पूर्ण तरीका आपको बता दिया जाएगा
  • महामुद्रा महाबंध महावेध को मिलाकर अभ्यास करेंगे तो सब ठीक हो जाएगा तथा जीवन भर के लिए ठीक हो जाएगा
  • जब रोग दुख होता है तब प्रकृति भी दण्ड देती है तथा लाचारी में सब करना पडता है
  • यदि कोई व्यक्ति अपनी गलत आदत नही सुधारता / छोडता तो प्रकृति दण्ड देकर छुडवा देती है या सुधार देती है
  • डाक्टर भी अन्त में कह देता है कि यदि परहेज न करो तो मेरे पास मत आना
  • लाचारी भी आपको मजबूत बनाने के लिए आती है, यदि आपको पकवान खाना है तो पेट मजबूत करना ही पड़ेगा
  • हिमालय पर साधना का सुख लेना है तो शरीर को पहले स्वस्थ बनाना ही होगा

सांख्ययोग और कर्म योग में क्या अंतर है

  • योग दोनो में common है
  • सांख्य = ज्ञान को बढ़ाना (Theory)
  • कर्मयोग = Practical करके उस ज्ञान को पचाना
  • Theory भी बहुत जरूरी है नही तो Practical उल्टा पुल्टा होगा
  • केवल Theory पढ़ेंगे तथा Practical नही करेंगे तो ज्ञान मे नही उतरेगा
  • कर्म करने से ज्ञान व्यवहार में आ जाता है

मेरे सीधे हाथ के बीच की अंगुलि में कटकट की आवाज के साथ दर्द हो रहा है, कुछ काम नही कर पा रहे है तो क्या इसको प्राणायाम का side effect समझे या कुछ और समस्या भी हो सकता है

  • पंचगव्य का सेवन करे, अर्जुन की छाल का पाऊडर सेवन करे
  • सूक्ष्म व्यायाम, प्रज्ञा योग, महामुद्रा करते रहने से ठीक हो जाता है

क्या पितृ पक्ष में केवल पितरो का ही पूजन होता है, देव संस्कार नही किए जा सकते

  • किए जा सकते है -> पहले देवताओ का ही पूजन होता है तथा फिर पितरो का पूजन करते है जैसे घर में भोजन बनाने से पूर्व नित्य बलिवैश्य कर लिया जाता है तथा नित्य हवन भी किया जाता है
  • नामकरण संस्कार भी किया जा सकता है
  • हम सूर्य उपासक है तथा हमारे लिए हर दिन शुभ है अशुभ नाम की कल्पना भी ना करे
  • जहा गायंत्री यज्ञ कर लिया गया तो वहा 33 कोटी देवता उपस्थित रहते है, गायंत्री यज्ञ करने के बाद सभी मूहर्त दोष समाप्त हो जाते है व कोई भी शुभ कार्य कभी भी किया जा सकता है     🙏

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