Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (13-09-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (13-09-2024)

आज की कक्षा (13-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

सर्वाइकल समस्या में माता जी को हाथ में दर्द रहता है , उसके लिए क्या करना चाहिए

  • शरीर में जहा पर दर्द हो या समस्या हो, उस अंग में बिजली या रक्त की Supply नही पहुंच रही है
  • समस्या का मूल कारण जानने के लिए यह देखना होता है कि मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी के किस जोड से Nerve Fiber (स्नायु तन्त्र) उस अंग तक बिजली लेकर गया है, किस तार के द्वारा बिजली की supply किस Area तक गई है
  • हाथो में जो Nerve / नाड़ियां गई है वे सब गर्दन के पास सर्वाइकल से गई है, गर्दन से ही थाईराईड पैराथाइराईड, VocalCord, Brain व Heart के नीचे भी गया है
  • गर्दन के जोड के पास कुछ Toxines जमा है तो वहा का Cleaning करना होगा
  • कोहनी तक दर्द नही तो वहा तक बिजली / प्राण का supply सही से जा रहा है
  • हाथ में दर्द है तो कोहनी के नीचे बिजली की Supply ठीक से नहीं जा रही है, इसलिए Survical में कंधे – हाथ में या Lumbor Region (L1 – L5) व पैरो में दर्द होगा
  • विशुद्धि चक्र वाला प्राण शरीर के प्रत्येक जोडों में अपनी पहुंच रखता है
  • Survical की समस्या के लिए यदि गर्दन झुकाने में कोई समस्या न हो तो इसकी Exercise करे, गर्दन में दर्द हो तो पास की केवल मासपेशियो को दबाएं या हल्का फुलका गर्दन घुमाए
  • सूर्यभेदन प्राणायाम इन कचरो की सफाई करता है , दो बंध लगाए, जालान्धर बंध मानसिक करे
  • 25 Round से शुरू करे, 1 हफते तक बढाते हुए 50 Round तक ले जाए तथा एक महीने तक 50 Round ही करे फिर 80 तक पहुच जाएं, इस प्रकार 6 महीना 80 Round तक करने से प्राणायाम सिद्ध होता है तथा cleaning अच्छी होती है
  • गिलोय व मुलहेठी भी अच्छा काम करेगा
  • चिकित्सक की सलाह भी लेते रहे

क्या रक्त का प्रवाह, प्राण के प्रवाह से ही जुडा है या यह भिन्न है

  • प्राण Nerve Fiber से जाता है
  • रक्त का प्रवाह Blood Vessel (Artery [शुद्ध] या Vein [अशुद्ध]) से जाता है
  • दोनो का अलग अलग Pipe है
  • Blood के माध्यम से भोजन / औषधिया पूरे शरीर में जाती है
  • जैसे Heart की समस्या में अर्जुन की छाल का काढ़ा तथा कफ निसारक साग सब्जी अधिक ले तो वह Blood के माध्यम से Blockage को साफ करती है

शिवोपनिषद् में आया है कि ना कोई किसी का पुत्र है ना माता है ना पिता है जो अपना पिछला कर्म है, वही माता पिता कहा गया है, पिछले कर्म को कैसे माता पिता व पुत्र समझे

  • पुत्र वो कहलाता है जिसे कोई उत्पन्न करे
  • उपनिषद् आत्मा की बात करता है और आत्मा को कोई उत्पन्न नही करता है, वह अपनी स्वेच्छा से ही जन्म लेगा किसी के बुलाने पर नही आएंगा
  • आत्मा मरती नही इसलिए जन्म नही लेती
  • हमारा शरीर ने कर्मफल के आधार पर जन्म लिया है, .इसलिए सभी आत्माएं स्वतंत्र है
  • पति पत्नी या अन्य रूपों में ईष्या द्वेष के कारण भी जन्म मृत्यु का चक्र चलता रहता है
  • मोक्ष या मुक्ति पाने के लिए, प्रेम के सिवाय कोई अन्य उपाय नही है
  • शरीर को ही पिता पुत्र कह दिया जाता है तथा यह कर्मफल के आधार पर मिलता है इसलिए कर्मफल ही माता पिता बनता है

याज्ञवल्कयोपनिषद् में आया है कि क्रोध करने वाले आदमी से ही पूछना चाहिए कि क्रोध पर ही तुम क्रोध क्यो नही करते हो जो समस्त दुःखों का मूल कारण है व धर्म अर्थ काम मोक्ष का घोर वैरी है, अपने स्वयं के ही आधार को नष्ट कर देने वाले क्रोध को बारम्बार नमन वंदन, मुझे वैराग्य प्रदान कराने वाले एवं दोषो को बोध कराने वाले कोप को बारम्बार नमस्कार नमन वंदन, का क्या अर्थ है

  • आदमी अक्सर बात बात पर क्रोधित होता है व दूसरे पर होता है
  • ऋषि उसे सुधारने के लिए कहते है कि तुम क्रोध बंद मत करो व क्रोधी ही रहो परन्तु अपने क्रोध पर ही क्रोध करो क्योंकि यह तुम्हारे भीतर विष भर रहा है, पता नही चल रहा परन्तु यही क्रोध शरीर में जहर घोलकर तुम्हे मार रहा है, यह अधिक खतरनाक है, अपने इस क्रोध को मारने वाले क्रोध को यहा नमन किया जा रहा है
  • अपने क्रोध के दोष दुर्गुणो को जानेंगे तो क्रोध नहीं करेंगे
  • अपने क्रोध को यदि हमने सुधारने के लिए लगा दिया तो यह परमार्थ के लिए किया गया क्रोध मन्यु कहलाता है क्योंकि इससे पूर्व वह स्वार्थपरक क्रोध अपनी बुद्धि को भ्रमित कर रहा था, शिव जी मन्यु है तथा मन्यु से व्यक्ति मनुष्य कहलाएगा
  • अपने स्वार्थपरक क्रोध को इस तत्वज्ञान वाले क्रोध से मारा जाता है
  • भगवान बुद्ध ने क्रोध से अगुलिमाल को मारे परन्तु यह शांतिमय क्रोध था, उसकी असुरता को मारे
  • क्रोध को मारने का ईजैंक्शन -> शांति है -> शांति तत्व ज्ञान से मिलता है
  • यदि तत्व ज्ञान होते हुए भी क्रोध आ रहा है तो इसका अर्थ है कि अभ्यास कम है या ज्ञान कम है -> सामने वाला कुछ अटपटा किया है तभी क्रोध आता है प्रत्येक व्यक्ति अपने ही mind के अनुसार ही जिएगा, हमारे ढंग से संसार का कोई भी आदमी कभी नही जीने वाला, हम उसे अपने ढंग से Control करना चाहते है, यह Operation का तरीका गलत है
  • हम बदलेंगे युग बदलेगा तथा दूसरे को केवल प्रेरणा दे सकते है, कोई किसी से आज तक नहीं, Motivation भले ही किसी ने दिया हो परन्तु जो भी बदला स्वंय से बदला है
  • यहा किसी को मार भी नहीं सकते क्योंकि आत्मा तो अमर है, गलती अक्सर मन करता है परन्तु हम दण्ड किसी और (शरीर) को देते है, यह समझना ही तत्वज्ञान विकसित करना है

आत्मोपनिषद् में आया है कि जिस प्रकार प्रत्येक पदार्थ तो सामने दिखाई दे रहा है तो उसका प्रमाण के लिए ज्ञान हो जाता है, किसी प्रमाण की आवश्यकता नही होती, उसी प्रकार आत्मा प्रत्यक्ष रूप से प्रकाशित हो रही है तथा प्रत्येक वस्तु में ब्रह्म है परन्तु यह अनुभव नहीं हो रहा है तथा हम वस्तु को बह्म न समझकर वस्तु समझ लेते है

  • अनुभव तो हो रहा है, भीतर से हमें पता चलता है कि हम सोच रहे हैं
  • जड़ वस्तु के भीतर भी Electron व Nucleus में गतिविधियां चल रही है तो वह स्वंय से नही चलेगा, कोई न कोई इसे चला रहा है, वह दिख नही रहा परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि उसका अस्तित्व नहीं है, किसी न किसी की सत्ता अवश्य है
  • कुण्डलिनी जागरण से वह भुल्लकडी धीरे धीरे समाप्त होती जाएगी

जिस प्रकार देवदत्त आदि नाम के प्रति विज्ञानी निरपेक्ष हो जाता है, उसी प्रकार वह आत्म तत्व, देश काल व किसी की प्रकार अपेक्षा नहीं रखता, का क्या अर्थ है

  • जैसे पहले से परिचित व्यक्ति की केवल नाम से ही जानकारी मिल जाती है
  • तथा जिस प्रकार किसी नाम संबोधन से बिना नाम बताए भी जान जाते है कि वह कौन है
  • इसी प्रकार आत्मा भी Proved है उसे Proove करने की जरूरत नहीं है
  • आत्मा की पहचान ज्ञान गति व उर्जा है
  • हर वस्तु में, प्राणी में -> आत्मा के ये तीनो गुण मिलते हैं
  • चींटी में भी तीनों गुण है
  • जड़ पदार्थो में देखे तो परमाणुओ में ज्ञान है, गति है व उर्जा भी है, जड़ रूपी पृथ्वी भी 66000 miles प्रति घंटे की रफ्तार से सुर्य के चारो ओर घूम रही है तथा अपनी धुरी पर भी 1000 miles प्रति घटें की रफ्तार से चल रही है तथा ज्ञान व उर्जा भी इसके साथ है -> यही पहचान है कि इसमें आत्मा है
  • इसी को बह्मा (ज्ञान) विष्णु (गति) महेश (उर्जा) कहते है -> इससे लगता है कि कण कण में ईश्वर / आत्मा विद्यमान है

गुरुदेव के लेख में आया है कि स्वयं से झूठ बोलना बंद करे, स्वंय को समग्र रूप से जान लेना ही आध्यात्म है, दूसरे से झूठ बोलना बंद किया जा सकता है, स्वयं से झूठ कैसे बोलना कैसे बंद करे, इसे कैसे समझे

  • लिपा पोती नही करना तथा अपने भीतर जो भी गलती / पाप हुई उसे स्वीकार करे -> इसे कहते है स्वयं से झूठ न बोले
  • अक्सर यह होता है कि ना हम गलती स्वीकारते है ना निकालते है तभी भीतर दद्ध होकर कैंसर तक रोग उत्पन्न होते है इसी को झूठ बोलना कहते है

स्वयं को समग्र रूप से जान लेना आध्यात्म है, का क्या अर्थ है

  • अपने को समग्र रूप से जाने वो Angle of Vision विकसित करे
  • प्रत्येक की अपनी जीवन शैली है, उसमें रुकावट न डाले अपितु उसे उसके ढ़ंग से जीने में उसकी मदद करे
  • शासन न बने यह उपनिषद का यह आदेश है
  • राजा शासक नही अपितु प्रजा का सेवक होता है

समग्र रूप से जान लेने का क्या अर्थ है

  • अपने बारे में अपना मन क्या है, मन पर नियंत्रण कैसे किया जाए, मन की ताकत क्या है, संसार कैसे बना तथा कैसे नियंत्रण में आता है, कैसे समेटा जाता है -> इसी को कहा जाता है सब कुछ जानना, जब सब जान लेते है तब हमारे भीतर डर भी समाप्त हो जाता है
  • साप से वही डरेंगे जो उसे नही जानते जैसे बन्दर नही डरता है तथा पकड़कर घिस घिसकर मारता है या साप की खेती करने वालो के बच्चे भी साप को पकड़ पकड़ कर खेलते रहते है, हम केवल साप का नाम सुनकर डर जाते है क्योकि हमें जानकारी नहीं है कि यह जीव कैसे Control होता है इसी का हमें डर है

क्या पश्यन्ति वाणी से देवताओं से सम्पर्क किया जा सकता है

  • किया जा सकता है
  • परा वाणी से और भी अच्छे से Control होता है तथा यह परा वाणी देवताओ को भी घसीटकर ले जाएगी
  • परा वाणी से पुकारा तो भगवान दौडकर गए
  • कबीर दास ने कितना बाध्य किया कि पाछे पाछे हरि फिरे वाली स्थिति आ गई -> यह सब परा वाणी से होता है
  • पश्यन्ति वाणी संसार की सेवा करने के लिए होती है तथा जब बैखरी भी जुड जाती है तो सभी के हृदयों के साथ जुड जाती है
  • परा व पश्यन्ति के द्वारा फिर भावनाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है
  • परा वाक में जाए क्योंकि पश्यन्ति से श्रेष्ठ परा वाक होता है

जो मनुष्य प्राण तत्व की उत्पत्ति – आगमन – स्थान – व्यापकतत्व बाहरी व आन्तरिक, इन पांच भेदों को भलि भांति जान लेता है, वह अमृतपद प्राप्त कर लेता है, का क्या अर्थ है

  • प्राण मूलतः परबह्म / आत्मा के भीतर है तभी निकालेगे
  • ईश्वर के भीतर में संसार है तभी निकालेंगे
  • जैसे जादूगर अपने पिटारे में से कई चीजे निकालता हैं तो सभी उसके भीतर थी तभी निकाला, नही है तो नहीं निकालेगा
  • बह्मा का 1 दिन 1 हजार देव युग के बराबर होता है -> 12000 वर्ष का एक युग देवताओ का होता है तथा वैसा जब 1000 युग बदलेगा तब उस बह्मा का एक दिन होता है
  • जब वह बह्मा सोता है तो सारी किरणो को भीतर समेट लेता है फिर भीतर से बाहर निकाल देता है
  • प्राणो भवेत परबह्मा = यह प्राण ही Refine होते होते तथा सूक्ष्म होते होते, परब्रह्म में बदल जाएगा तभी उस अवस्थ में कहेंगे कि सब जगह बह्म है -> कही ठोस रूप में है तथा कही सूक्ष्म रूप में है
  • जगत का कारण भी प्राण है वह अविनाशी है
  • प्राण ही मंत्र (ध्वनि) के रूप में है जो संसार को चला रहे है, ज्ञान भी प्राण ही कहा जाता है, ज्ञान (प्राण) ही पंच कोश है
  • प्राण की साधना किया जाए तो सबसे बड़ी साधना है तथा प्राण का जागरण महान जागरण है

हमारा एक दिन व सिद्ध योगी का एक दिन तथा बह्मा का एक दिन -> इनमे जो अन्तर प्रतीत हो रहा है क्या यह चेतना के स्तर का अन्तर है या कुछ और अन्तर है

  • यह परिवर्तन का अंतर है
  • समय = अवस्था का परिवर्तन
  • जैसे एक कीडा (राम जी का घोडा) बरसात में झुंड के रूप में आता है, उनका जीवन 8 घंटा होता है तथा उसी जीवन में बचपन, जवानी, बच्चे पैदा करना, बुढापा सब देख लेते है व पूर्ण जीवन का आनन्द लेते है -> इसी प्रकार का अंतर हममे व योगी व देवताओं में होता है
  • यह देवताओ का पलक झपकते ही हमारा लंबा समय बीत जाता है -> Durability के आधार पर अवस्था परिवर्तन होता है
  • सरसो का बीज हाथ पर ही एक दिन में उग जाएगा
  • नारियल का बीज एक दिन में नही उगेगा, उसे उगने में समय लगता है
  • सभी के कर्मो का फल मिलने में परिपाक अवधि अलग अलग होती है, उसी के आधार पर समय की अवस्थाएं बनाई गई है
  • जहा कोई परिवर्तन नही होता, वहा Time व Space शून्य है     🙏

No Comments

Add your comment