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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (14-08-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (14-08-2024)

आज की कक्षा (14-08-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

योगशिखोपनिषद् में आया है कि संसार में दो प्रकार के सिद्धो का वर्णन है कल्पित सिद्ध व अकल्पित सिद्ध परन्तु महायोगी जीवनमुक्त हो जाते हैं इसमें संशय नहीं है, का क्या अर्थ है

  • अकल्पित सिद्ध -> एक स्वभाव से ही शांत है / संत है तथा अपने स्वभाव को निर्मल बनाए रखने में इस जन्म में कोई साधना नही की जैसे गुरुदेव या शुकदेव मुनि -> दोनो जन्म से ही सिद्ध संत थे, पिछले जन्मों से ही वे संस्कार लेकर आएं थे क्योंकि आत्मा की यात्रा तो अनन्त की है तो पिछले जन्मों में साधना की होगी तभी इस जन्म में साधना नही करनी पड़ी
  • कल्पित सिद्ध -> जो साधना करके संत बने तथा क्रोध को शांत करने के लिए विचार या साधना का सहारा लेना पड़ा या अपने आपको समझाना पड़ा या मन को शांत करना पड़ा

कलाएं क्या है जैसे कृष्ण 16 कला युक्त थे तो 16 कलाओ से युक्त पुरुष को कैसे समझे

  • कला को शक्ति / Wattage समझ सकते है
  • देवताओ के पीछे की चमक / आभा को कला कहते हैं
  • IQ Level, EQ Level जिसका जितना अधिक होगा वह उतनी ही अधिक कलाओं से सम्पन्न है
  • 16 कलाओं वाला पूर्ण पुरुष इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि सम्पूर्ण सृष्टि 16 Phases में बनी है या 16 मुख्य घटक है इसलिए भी कहा जाता है
  • संसार को बदल सकते थे जैसे कृष्ण ने जयद्रथ वध के लिए सुर्यास्त को रोक दिया था, अपने Magnetic field से प्रकृति के Magnetic field को बदलने की क्षमता उनमें थी
  • पूज्य गुरुदेव 24 कलाओं से युक्त थे, प्रकृति को 24 सूक्ष्म घटको में बाटकर समझ सकते है ये ओर भी अधिक शक्तिशाली थे

क्या प्रकृति की प्रतिक्रिया समूह मनोभूमि एवं कर्मों के परिणाम पर निर्भर करती है कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • समूह मन =सभी मनुष्यों को प्रभावित करने वाली
  • समूह मन चाहे तो प्रकृति को प्रभावित कर सकता है / प्रकृति में हेर फेर कर सकता है
  • जैसे सभी ग्रह एक रेखा में आ गए तो उनका Resultant Magnetic Field पूरे पृथ्वी को उन ग्रहों के Individual Magnetic Field की तुलना में अधिक प्रभावित करेगा
  • यदि मनुष्य साधना करे तो पृथ्वी के Magnetic Field को काट सकता है, इसी को ऋक कहते है, वह चाहे तो प्रकृति के प्रकोपो को हटा सकता है
  • तीनों प्रकार के कष्टो को व्यक्ति का समूह मन काट सकता है गुरुदेव ने इस युग में इसका Practical भी करवाया था जब Sky Lab पृथ्वी पर गिरना था तब सबसे गांयत्री मंत्र का जप करवाया था कि उसे पृथ्वी पर नही गिरने देना
  • गायत्री मंत्र की सामूहिक साधना वह समूह मन के प्रभाव से एक ऐसा सुरक्षा कवच बन गया था कि स्काई लैब ने धरती पर टकराने से ठीक पहले अपना रास्ता बदल लिया और समुद्र में जा गिरा

भूत प्रेत पिशाच में क्या अन्तर है

  • पचंतत्वो / भौतिक तत्वों से बने जीव भूत कहलाते है, हम सब भी भूत है
  • प्रेत = अशरीरी है / भटकती आत्माएं है, जिनकी वासना तृष्णा अहंता शांत नही हुई रहती तब उसे पृथ्वी के Magnetic Field में कष्ट व झटके महसूस होते है
  • प्रेत भी एक योनि है, गुरुदेव प्रेतो से भी बातचीत करते थे
  • प्रेतो का भी Photo लिया जा सकता
  • पिशाच -> शरीरी या अशरीरी, जो रक्त पिए / खून चूसे जैसे कुछ कीटाणु जो प्लेटलैस खाते है या वायरस, जिन्न भी पिशाच ही होते है

सर्वोपनिषद् में आया है कि उन महान बलवान परमेश्वर ने सर्व का घोर रूप धारण करके नरसिंह को मारा, जब नरसिंह अवतारी पुरुष थे तो सर्व ने उन्हे कैसे मारा

  • आत्मा की मृत्यु नहीं होती परंतु फिर भी संसार में  जिनकी ड्यूटी पूरी हो गई उन्हें मारा जा सकता है
  • शिव जी का काम संहार करना है, यदि अवतारी चेतना का काम खत्म हो गया तो उसे मारकर ले जा सकते है
  • नरसिंह मनुष्य और पशु का मिश्रण थे, नरसिंह को मारने के लिए इससे भी अधिक ताकतवर अवतार सर्व (पशु पक्षी व नरसिंह तीनो का मिश्रण) ने जन्म लिया
  • न्यायपालिका को ये अधिकार है कि Duty खत्म होने पर वह उस आत्मा या अवतारी चेतना को भी लेकर जा सकते है
  • एक बार विष्णु को भी वराह अवतार से मारकर अपने साथ वैकुण्ठ लोक में ले गए थे क्योंकि विष्णु वराह अवतार में पृथ्वी पर वैकुण्ठ लोक से अधिक सुख महसूस कर रहे थे, अवतारी चेतना को भी जीव भाव आ सकता है

पिपलाद ऋषि बह्मा जी से पूछते है कि बह्मा विष्णु व महेश में से श्रेष्ठ कौन है तब उत्तर मिला कि रुद्र सबसे श्रेष्ठ है तो यहा रुद्र का अर्थ शिव से है या परमपिता परमेश्वर को यहा बता रहे है

  • ज्ञान कर्म व भक्ति में से ज्ञान को श्रेष्ठ कहा जाता है यहां शिव या रुद्र का अर्थ विशुद्ध ज्ञान के रूप में समझ सकते हैं
  • ज्ञान को श्रेष्ठ कहा गया है इसी को योगेश्वर भी कहते है
  • तीनो देवताओ में शिव को यदि श्रेष्ठ कहा जा रहा है तो उसे ज्ञान रूप में समझे / सुष्मना के रूप में समझे

रुद्र भगवान समस्त सिद्धियों को देने वाले व सबके पूज्य हैं, जिन्होंने बह्मा के पांचवें मुख को समाप्त कर दिया उनको नमन है तो बह्मा का पांचवा मुख का क्या अर्थ है

  • ज्ञान के 4 स्तंभ धर्म अर्थ काम मोक्ष ही काफी है

नारदपरिव्राजकोपनिषद् में संन्यासी को कभी भी तैरकर नदी पार नही करना चाहिए, वृक्षो पर न चढ़े, क्रय – विक्रय न करे, किसी भी वस्तु की अदला बदली ना करें यह सब किस परिपेक्ष में कहा गया है

  • सन्यासी 75 वर्ष Old Age में Risky काम न करे, अपने को थोडा सभाल कर रखे, जोखिम वाला काम अधिक न करें
  • वैज्ञानिको को अपने आप को संभाल कर रखना होता है, उनकी समाज को जरूरत होती है
  • क्रय विक्रय में अधिक उर्जा खर्च न करे
  • अब इस उम्र सांसारिक कामो को गौण करे
  • आत्मिकी का क्षेत्र बहुत अधूरा है जबकि उसी में काम करने की अधिक जरूरत है ताकि ऋषि परम्परा बनी रहे

गायंत्री रहस्योपनिषद् में आया है कि गायंत्री की 24 शक्तियो में प्रहलादिनी प्रज्ञा विलासिनी स्पर्शा दुर्गा सरस्वती विरजा विलासिनी का क्या अर्थ है

  • गायंत्री के अनेक नाम है
  • जैसे बच्चे के अनेक नाम होते है
  • सब ईश्वर के ही नाम है तथा प्रत्येक में एक ही प्राण विद्यमान है
  • विरजा = संसार में हर हाल मस्त रहना
  • स्थूल से स्थूल तथा सूक्ष्म से सूक्ष्म में भी वही एकमात्र ईश्वर प्राण रूप में विद्यमान है
  • आनन्द तभी संभव है जब आत्मा में रहेंगे व संसार में खेलेंगे
  • सारी शक्तियां यहा गुण के आधार पर बताई गई है, गुण के आधार पर ईश्वर का नाम बदल जाता है
  • जैसे कृष्ण पहाड उठाने के बाद गिरिधर कहलाए, उन्हे मुरलीधर, मधुसुदन आदि किसी भी नाम से पुकार सकते है

संन्यासी के विषय में स्वामी विवेकानंद जी जब कन्याकुमारी में तप कर रहे थे तब उन्होंने नाव में तैरकर पार किया तथा वे कभी अस्वस्थ भी नही थे तथा संकट में भी नही थे, इसका अर्थ यहा किस प्रकार लेगे

  • जो नंपुसक होते है या Handicap है उन्हे संन्यास की दीक्षा नही दी जाती उन्हे एकाकी यात्रा में दिक्कत होगी
  • यह नियम विवेकानंद के लिए नही है अपितु 75 वर्ष की आयु में सकल्पित संन्यास जो धारण किए यह उनके लिए है
  • संन्यास का अर्थ आत्मा अनुसंधान से है तथा सन्यास हम किसी भी उम्र में ले सकते हैं
  • संन्यासी किसी भी उम्र में बन सकता है तथा इसके लिए उम्र का कोई बंधन नहीं है

सामवेद में एक मंत्र में कोई पूर्ण विराम नही है

क्या ये तीनो एक ही मंत्र है

  • अक्षरो की सख्या के आधार पर पढने के लिए चरण बनाए जाते है
  • इतने चरणों में हमें उसे विराम ले लेकर पढ़ना है

चरक चिकित्सा में आया है कि मन से गायंत्री का बह्मचर्य पूर्वक 1 वर्ष तक ध्यान करता हुआ, वर्ष के उपरान्त में . . . माघ / फालगुन मास की 3 दिन उपासना के उपरान्त आवले के वृक्ष पर चढ़कर जितने आवले मनुष्य खाएंगा उतने वर्ष वह जीवित रहेगा का क्या अर्थ है

  • अक्षय नवमी पर उस मौसम में आवले का सेवन करना चाहिए, उस समय आंवले का औषधीय गुण बढ़ जाता है
  • यहा अतिश्योक्ति अलंकार भी उपयोग किया हैं ताकि कुछ अधिक लोभ देंगे तो अधिक लोग इसका सेवन करेंगे
  • आंवला पेट में उपरी पाचन संस्थान व वात पित कफ तीनो को शान्त करता है

संन्यासियों की 2 प्रकार की प्रवृति होती  है वानरी व मार्जरी, जो ज्ञान का प्रयास करते हैं उनमें मार्जरी शक्ति अधिक होती है और गौण रूप से वानरी प्रकृति होती है

  • जिसकी ईश्वर में अटूट श्रद्धा है, ऐसे व्यक्ति भी अंत में ईश्वर का सहारा पा ही लेते हैं
  • दो प्रकार के भक्त होते है
  1. बिल्ली के बच्चे
  2. बन्दर का बच्चा
  • कर्मयोगी अपना भाग्य स्वयं बनाते है
  • जो भगवान भरोसे है उन्हे कष्ट भी अधिक हो सकता है
  • आलसी व्यक्ति भी जी ही लेता है
  • दो प्रकार के भक्त होते हैं एक भगवान के भरोसे रहने वाले तथा दूसरे अपना भाग्य खुद बनाने वाले तो यहां जो अपना भाग्य खुद बनाते हैं को श्रेष्ठ कहा जाता है       🙏

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