पंचकोश जिज्ञासा समाधान (30-09-2024)
आज की कक्षा (30-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
आत्म अनुभूति का प्रभाव स्थूल शरीर के किस अंग को सबसे ज्यादा प्रभावित कर्ता है कृपया प्रकाश डाला जाय
- मस्तिष्क वाला Area जिसे हम हृदय (अतःकरण [मन, बुद्धि, चित्त, अंहकार]) कहते है, को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है
- यह Neurotransmitter पर Control करता है, जीवन में उत्साह आनंद यही Neuro Transmitter ही देता है
- Oxytocine, Dopamine, Cerotonin, ProLactine -> ये सब बुद्धि, सहृदयता, करुणा, ममत्व और यही रसायन आत्मज्ञान प्रदान करते है, इन रसायनो पर फिर अपना command हो जाता है
- Brain में Pineal Gland पर भी प्रभाव डालता है जिससे व्यक्ति की दूरदर्शिता बढ़ जाती है तथा स्थिरप्रज्ञता आने लगती है, यह बहुत जरूरी है
- प्रसन्नता शरीर का सबसे बड़ा पौष्टिक आहार है तब तत्वज्ञान मिलता रहेगा तथा तत्वज्ञान से ही बंधन मुक्ति होगी
गीता का आठवा अध्याय के 26वे श्लोक में आया है कि यह देव यान व पितृ यान, यह मार्ग सनातन कहलाते है, शुक्ल मार्ग से अनावृति तथा कृष्ण मार्ग से दुख पाते है, का क्या अर्थ है
- शुक्ल मार्गी = जो आध्यात्म का मार्ग अपनाते है, आध्यात्म को ही शुक्ल कहा जाता है
- कृष्ण मार्गी = रचा पचा भौतिक वादी
- पंचकोश का Refinement या कुण्डलिनी जागरण की साधना -> ये सभी शुक्ल पक्ष में आती है, मूलाधार से सहस्तार की तरफ हमारी चेतना बढने लगेगी
- यही देवयान मार्ग / उत्तरायण / शुक्ल पक्ष कहलाता है
- चेतना धीरे धीरे परिष्कृत होने लगती है तथा पदार्थ पर अपना प्रभाव डालने लगती है, पदार्थ से प्रभावित नहीं होगी
- जैसे यदि अति मानसिक Layer अंतःकरण की यदि व्यक्ति सफाई कर ले तो फिर संसार का प्रभाव उस पर नहीं पड़ेगा, वह संसार पर प्रभाव डालेगा तथा अब वह साधक परिस्थितियो का दास नहीं रहेगा अपितु परिस्थितियों का निर्माता बन जाएगा
नचिकेता जब बच्चे थे तो किस अवस्था में यमराज से प्रश्न किए रहे होगे, क्या उस समय उनकी समाधि की अवस्था थी
- उस समय वाल्यवस्था में 12 वर्ष के रहे होगे
- उस समय स्वर्ग में / हिमालय क्षेत्र, जो धरती का स्वर्ग कहा जाता है , वहा गए
- यमराज न्यायपालिका के Head थे
- ऋषि उन दिनो पैदल भी उस क्षेत्र में जाते थे, मौसम के अनुकूल, उन क्षेत्रों में जाते थे
- अनादि काल से उन क्षेत्रों में यह आवागमन बना रहता था
- कम उम्र में ज्ञान कैसे आ गया तो समझे कि आत्मा की उम्र नही होती है, केवल शरीर बदलता है तथा पिछले जन्म की तप साधना अगले जन्म में भी साथ रहती है जैसे शुकदेव मुनि / श्वेतकेतु / शंकराचार्य जन्म से ही बह्मज्ञानी थे
- शरीर तो बदलेंगे परन्तु आत्मा नही मरती
- न्याय पालिका का व्यक्ति (यम) आत्म रूप में थे तथा आत्मा का कोई नाम नही होता, कोई जन्म लेगा तभी तो उसका नामकरणा संस्कार करेंगे तो
- जैसे दादा गुरु अभी जन्म मरण के बंधन से परे है, वे छाया शरीर से कभी Hard Mass / भौतिक शरीर के रूप आ तथा जा सकते है
नवरात्री में मंत्र साधना में कितना जप का संकल्प लेना चाहिए
- अपनी क्षमता के अनुसार ले, आरम्भ में लघु अनुष्ठान करे, 24000 मंत्र जप करे
- यदि यह भी न हो पाए तो प्रति दिन 3 माला या 6 माला का जप करे
- यथासामर्थ संकल्प ले सकते है
- जप ध्यान स्वाध्याय मनन चिंतन करे
- गायंत्री हृदयम को हृदयंगम करने में 60 लाख गायंत्री मंत्र जप करने जितना लाभ मिलता है, यह केवल नौ पेज का है, प्रत्येक एक पेज को भी यदि एक साल में भी हद्वयगंम करे तो भी 9 साल में 60 लाख गायंत्री मंत्र जप का की उर्जा मिलेगा, यदि मंत्र जप नवरात्री में करेंगे तो 120 वर्ष लग जाएगा
- इसलिए स्वाध्याय व Practical उर्जा का अधिक लाभ व महत्व है
गायंत्री गीता के पहले मंत्र में परमात्मा की व्याख्या में आया है कि जिसे वेद, न्यायकारी, सच्चिदानंद, नियामक निराकार कहते है तथा जो विश्व में आत्मा के रूप में उस बह्म के समस्त नामों के रूप में श्रेष्ठ नाम पापरहित, पवित्र व ध्यान करने योग्य है, वह ॐ के नाम से जाना जाता है, यहा ॐ को किस प्रकार व्याखित किया गया है
- ॐ = परमात्मा के नाम का सूचक है
- जब भी संसार उत्पन्न होता है तो प्रकृति स्वंय इस नाम की घोषणा करती है तथा प्रकृति ने यह नाम ॐ स्वयं दिया
- ॐ एक ध्वनि उर्जा है तथा यही Sound Energy पूरे विश्व को चला रहा है
- मंत्राधीनम् च देवता -> देवता का अर्थ इस संसार में जितनी थी शक्तिया है, दिखाई देने वाली या न दिखाई देने वाली
- सम्पूर्ण संसार को चलाने वाली शक्ति है ध्वनि विज्ञान तथा ध्वनि विज्ञान ॐ से ही निकला है तथा ॐ निकला है ईश्वर से, जहा बह्म व प्रकृति का मिलन होता है
- हर जीवो के भीतर या हर Particle के Nucleus में आत्मा / परमात्मा का वास है
जब मंत्र जप करते है तो मेरा speed बहुत ज्यादा है तो उससे भी क्या कुछ फर्क पड़ता है या उसे धीरे करने होगा
- आप देखे कि एक माला जप में (108 बार में) कितना समय लग रहा है
- यदि 5 से 6 मिनट में एक माला जप चल रहा है तो वह speed, ध्वनि विज्ञान के आधार पर ठीक है
- धीमा है तो बढाया जा सकता है
- 3 Second में एक बार तथा 5 मिनट तक Harmonically लगातार करे तो अपनी आभामंडल से एल्फा Radiation निकलने लगती है, उस समय हमारे शरीर में प्रत्येक परमाणु एक Second में ~34 अरब कंपन उत्पन्न करता है
- यह मंत्र की उर्जा शरीर के भीतर ईथर परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है तो यही Vibration हमारे मस्तिष्क से Radiation बनकर Frontal Lobe से एलफा बीटा थीटा डेल्टा के रूप में निकलता है
- यही मंत्र जप की वैज्ञानिकता भी है
कौशितिकीबाह्मणोपनिषद् में आया है कि इस लोक में ऐसा कौन आवरण युक्त स्थान है जिसमें मुझे ले जाकर रखोगे या फिर उसमें से भी कोई पृथक – सवर्था विलक्षण आवरण शून्य पद है, जिसको जानकर के तुम मुझे उसी विशिष्ठ लोक में प्रतिष्ठित करोंगे, यज्ञ / अग्निहोत्र करते समय स्वर्गलोक / चंद्रलोक की प्राप्ति का वर्णन आया है, का क्या अर्थ है
- यज्ञ में ज्ञानयज्ञ ही मुख्य है, परन्तु हम केवल ध्रुम यज्ञ को ही यज्ञ मानते हैं, यही भूल है
- यहा शिष्य यह भी जांच कर रहा है कि जितना ज्ञान हमारे पास है, उससे कम ज्ञान तो शिक्षक के पास कही नही है, यदि उतना ज्ञान भी नही है तो उन्हे गुरु / शिक्षक के रूप में कैसे माना जा सकता है, शिक्षक को शिष्य से अधिक ज्ञानी होना चाहिए
- ज्ञान की साधना से उधर्वगति होती है
- ज्ञान की साधना आत्म साधना है
- शिष्य ऐसा स्थान जानना चाह रहे कि मुझे कहा ले जाओगे जहा संसार का प्रभाव न पड़े, जहा क्रिया की प्रतिक्रिया ना हो, ऐसा एक धरातल विज्ञानमय कोश है
- जब विज्ञानमय कोश पक जाए तो बाहर का प्रभाव नही पड़ेगा तथा पुर्नजन्म नही होगा, सारे कर्म (क्रियमाण / संचित / प्रारब्ध), सब भस्म हो जाते है तो वहा तक ले जाने की जानकारी तुम्हारे पास (गुरू के पास), है या नहीं, यह बात शिष्य जानना चाह रहे है या कम से कर्म फल का प्रभाव वहा उस स्थान पर (चेतना का स्तर) न पडे
- पितरलोक तथा बह्यालोक तक भी लौटकर आना पडता है तो इस लोक से उपर जाने की विद्या आपके पास है या नहीं, यह बात शिष्य जानना चाह रहे है
- विश्वामित्र इस गायंत्री मंत्र विद्या के दृष्टा है जिसमें भौतिकी भी है तथा आत्मिकी भी, केवल आत्मा को ही लेकर नही चलना अपितु दोनो को साथ लेकर आगे बढ़ना है
- उच्च कोटि के वैज्ञानिक को महर्षि कहते हैं
महर्षि = महान वैज्ञानिक - जिसे अहंकार नही हो ब्राह्मण कहलाता है
शाण्डिल्योपनिषद् में आया है कि ध्यान के 9 प्रकार बताए गए है -> र्निगुण – . . . .
- दो पहियो के संतुलन से ही गाडी चलता है, एक पहिए से गाडी नही चलता है
- ज्ञान भी तथा उर्जा भी चाहिए, दोनो को जगाना पड़ेगा
- आध्यात्म / वेद में भी आया है कि परा व अपरा दोनो विद्याओं को जानना होगा
जिह्वा का चटोरापन कामुकता भटकाता है कृपया प्रकाश डाला जाय
- जैसा अन्न वैसा मन
- रजोगुणी तमोगुणी सतोगुणी भोजन प्रभाव डालता है
- भोजन Chemical हैं तथा शरीर भी Chemical है, प्रत्येक भोजन का मन पर प्रभाव पड़ता है
- चटोरापन रजोगुणी के अन्तर्गत आता है
- लहसुन – प्याज तमोगुणी में आता है तथा वह शरीर में Inertia पैदा करता है, शरीर के रोग तो हटाएगा परन्तु चेतना में जडत्व पैदा करेगा
मैं प्रतिवर्ष घर या किसी गायत्री मंदिर में पितृपक्ष में तर्पण करता हूँ , तो
(१)क्या गया में भी जाकर तर्पण करना आवश्यक है ?
(२)क्या गया में तर्पण करने के बाद आगे भी तर्पण करते रहना चाहिए या बंद कर देना चाहिए ।
- आवश्यक नहीं है, आपकी श्रद्धा के उपर है, यदि आपकी श्रद्धा है तो गया जाकर करे
- पितृ पक्ष एक पर्व हे तो पर्व मनाना ही चाहिए जैसे Daily नहाते है, Daily बलि वैश्य यज्ञ करते है तो यह भी प्रत्येक वर्ष करना चाहिए
- हमें पितरो का सहयोग चाहिए तो पितरो के लिए सदभावना श्रद्धा देने से हमें शक्ति मिलती रहेगी 🙏
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