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शिवसंकल्प उपनिषद – मनोमय कोश – 09/04/2019

शिवसंकल्प उपनिषद – मनोमय कोश – 09/04/2019

शिवसंकल्प उपनिषद – चैत्र नवरात्र – मनोमय कोश की प्रारंभिक कक्षाएं

🌞 09/04/2019_प्रज्ञाकुंज सासाराम_ नवरात्रि साधना_ शिवसंकल्प उपनिषद् _ पंचकोशी साधना प्रशिक्षक बाबूजी “श्री लाल बिहारी सिंह” एवं आल ग्लोबल पार्टिसिपेंट्स। 🙏

🌞 ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो नः प्रचोदयात् 🌞

🌻 ॐ येनेदं भूतं भूवनं भविष्यत् परिगृहीतममृतेन् सर्वम।
येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु।।

अर्थ: जिस अमृत मन के द्वारा यह भूत भविष्य एवं वर्तमान जाना जाता है तथा जिससे सप्तहोतागण यज्ञ का विस्तार करते हैं, ऐसा मेरा मन शुभ संकल्पों वाला हो।

🌞 बाबूजी:-

🌻 यदि हम मनोमयकोश को खुब रिफाइन करे चमकावें तो सभी क्षेत्र मे रिसर्च किया जा सकता है, समष्टि चेतना से रेजोनेंस स्थापित किया जा सकता है। यह अंतिम सीढ़ी है समष्टि चेतना से रेजोनेंस स्थापित करने की।

🌻 हम सामान्य साधक, गृहस्थ कम से कम पहले हम क्या थे @ भूत, अभी हम क्या हैं @ वर्तमान और हम क्या बनना चाहते हैं @ भविष्य; इसका चिंतन तो कर ही सकते हैं।

अचिनत्यचिंतनाजाता अयोग्याचरणास्तथा, फलशः शोक रोगादि कलह क्लेश नाशजम्। सर्वप्रथम हमे अपने चिंतन को दिशा धारा देने होगी। आत्मिक चिंतन मनन।
(🐵 ऋषि-मुनि, यति तपस्वी योगी, आर्त अर्थी चिंतित भोगी। जो जो शरण तुम्हारी आवें, सो सो मन वांछित फल पावें।)

🌻 सिया राम मे सब जग जानी। ईश्वर सर्वव्यापक। इसी मनोभूमि पर ईश्वरीय चेतना की लैंडिंग (अवतरण) होता है।

🌻 प्रज्ञावतार भगवान बुद्ध का उत्तरार्द्ध। पांचो कोश को रगड़ रगड़ कर साफ कर चमका दिया जाए। भर्गो @ पापनाशक भूंज दिया जाए तभी देवस्य धीमहि होगा।आलस्य, प्रमाद, काम, क्रोध, मद, लोभ, दंभ, दुर्भाव और द्वेष को रगड़ रगड़ कर साफ कर दिया जाए।

🌻 मनोमयकोश की साफ सफाई के चार टूल्स – जप, ध्यान, त्राटक एवं तन्मात्रा साधना।

🌻 स्वामी विवेकानंद कहते हैं की भारत के हर एक युवा को उपनिषद् का स्वाध्याय करते रहना चाहिए। इसमे सभी समस्या का समाधान है, शांति का समावेश है।

🌻 विकार मे भी ब्रह्म देखने के शोध क्रम जारी रहे। सुक्ष्म से सुक्ष्मतर स्तर पर त्राटक चलता रहे। अध्यात्मिक और वैज्ञानिकी का समन्वय। विद्या अविद्यां च। वर्तमान मे हम पेंडुलम बन गये हैं अतः बैलेंस, रेजोनेंस स्थापित करना है।

🌻 पांचो कोश प्राण के ही स्वरूप क्रमशः प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि, आत्माग्नि, ब्रह्माग्नि। यज्ञ करें। गुरूदेव कहते हैं की प्राण का जागरण ही महा जागरण है।

🔥 अग्नि पुराण के अनुसार अग्नि देव सात जिह्वओं से युक्त हैं – कराली, धूमिनी, श्वेता, लोहिता, नीललोहिता, सुवर्ण तथा पद्मरागा। यह सातों, अग्नि की सात ज्वालाये हैं।

🌞 श्री विष्णु पुराण के तृतीय अंश व दूसरे अध्याय मे लिखा है की प्रत्येक चतुर्युग के अंत मे वेदों का लोप हो जाता है, तथा उस समय सप्तॠषिगण स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरण होकर उनका प्रचार करते हैं। वेदों का ज्ञान यज्ञ एवं संस्कृति का पोषक है। इस प्रकार वे सप्तॠषि यज्ञ कर्मों का विस्तार करते हैं।

निर्मल मन जो सो मोहि पावा। मोहि छल कपट छिद्र ना भावा।।

🔥 यज्ञ करने वाले होता या ऋषि वही होते हैं जो पाप रहित विशुद्ध चित्त वाले हों।

इस मंत्र मे कहा गया जिस मन से सप्तहोता यज्ञ का विस्तार करते हों वह मन शुभ संकल्पों वाला हो। होता अर्थात यज्ञ का पुरोहित।

🔥 यज्ञो वा देवानामात्मा (शतपथ ब्राह्मण मे यज्ञ को देवों की आत्मा कही गयी है।)
यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्मं (श्रेष्ठतम कर्म भी यज्ञ ही हैं।)
🔥 केवल अग्निहोत्र करना ही यज्ञ नही है। परम चैतन्य व उसके अंश रूप लोकसेवा भी यज्ञ है। धर्म व समाज की रक्षा करना, मानवीय मूल्यों की रक्षा करना भी यज्ञ है। वेदों ने इस सृष्टि को यज्ञमय कहा है।

संकलक – श्री विष्णु आनन्द जी

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