Kundalini Science – 1
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 01 Nov 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram – प्रशिक्षक Shri Lal Bihari Singh
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: कुंडलिनी साइंस – 1 (A . कुंडलिनी जागरण क्यों? & B. गायत्री सावित्री एवं कुंडलिनी)
Broadcasting. आ॰ अंकुर जी
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी बाबूजी
आज से ‘विज्ञानमयकोश‘ के 2nd semester की कक्षा शुरू हो गई है आत्मा के उपर चढ़े 5 चेतनात्मक आवरण @ पंचकोश – मानवीय चेतना को 5 भागों में विभक्त किया गया है। 1. अन्नमयकोश (Physical/ Bioplasmic body), 2. प्राणमय कोश (Etheric body), 3. मनोमयकोश (Astral body), 4. विज्ञानमयकोश (Cosmic body) एवं 5. आनंदमयकोश (Causal body)
पंचकोश – अन्नमय कोश अर्थात् इन्द्रिय चेतना, प्राणमय कोश – जीवनी शक्ति, मनोमय कोश – विचार बुद्धि, विज्ञानमय कोश – अचेतन सत्ता व भाव प्रवाह एवं आनन्दमय कोश – आत्म बोध/आत्म-जागृति।
सारे कलह क्लेश, दुःख – कष्टों आदि का मूल कारण अचिंत्य चिंतन व तदनुरूप अयोग्य आचरण हैं। प्रज्ञोपनिषद् में कहा गया है – “अचिंत्यचिन्तयाजाता अयोग्याचरणास्तथाआ। फलतः रोगशोकार्दि कलहक्लेशनाशजम्।।”
१. सोऽहं साधना, २. आत्मानुभूति योग, ३. स्वर संयम व ४. ग्रन्थि भेद की सिद्धि से विज्ञानमयकोश – प्रबुद्ध होता है।
‘सोऽहम‘ – ‘सो’ अर्थात् वह, ‘अहम् अर्थात् मैं – वह मैं हूं। ‘वह’ अर्थात् परमात्मा और ‘मैं’ अर्थात् जीवात्मा – दोनों का एकीकरण, विलय, विसर्जन @ अद्वैत।
‘आत्मानुभूति‘ – आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सह पण्डितः। अहं जगद्वा सकलं शुन्यं व्योमं समं सदा। आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः …. श्रोत्रव्यः …. द्रष्टव्यः।
‘स्वर संयम‘ – न ठंडा न गर्म। जीवित वही है जिसका मस्तिष्क ठंडा व रक्त गर्म है। ‘सुषुम्ना’ में जीना @ समत्वं योग उच्यते @ स्थित-प्रज्ञ।
‘ग्रंथि भेदन‘ – त्रिगुणात्मक (सत्व, रज व तम) संतुलन। ईश्वर की सर्वव्यापकता यह दर्शाता है कि nothing is useless. We don’t know right process that’s why we have negative aspects about something or someone.
निम्नांकित वांग्मयों का स्वाध्याय महती है:-
वांग्मय – 4 (साधना पद्धतियों का ज्ञान विज्ञान),
वांग्मय – 5&6 (साधना से सिद्धि),
वांग्मय – 13 (गायत्री की पंचकोशी साधना),
वांग्मय – 15 (गायत्री सावित्री कुण्डलिनी तंत्र)
वांग्मय – 20 (व्यक्तित्व विकास की उच्च स्तरीय साधना)
कुंडलिनी जागरण क्यों? – आज आपातकाल (emergency) की स्थिति है जिस हेतु ‘प्राणवान’ बनने की अनिवार्यता है। प्राणों का जागरण महा जागरण है, जिस हेतु कुण्डलिनी जागरण की आवश्यकता है।
‘अप्प दीपो भव’ – अपना प्रकाश स्वयं बनें और प्रकाश-स्तंभ बनकर प्रकाश/ प्रेरणा बांटें। आत्मा के प्रकाश में ही आत्मा का अनावरण होता है।
गायत्री सावित्री एवं कुंडलिनी. कुण्डलिनी (विश्व-व्यापार जननी) – चेतना महाकुण्ड की 5 अग़्नि ~ प्राणाग्नि (अन्नमय कोश), जीवाग्नि (प्राणमय कोश), योगाग्नि (मनोमय कोश), आत्माग्नि (विज्ञानमय कोश) व ब्रह्माग्नि (अन्नमय कोश)।
इन ‘पंचाग्नि’ को प्रज्वलित करने हेतु कुण्डलिनी जागरण की आवश्यकता होती है। ‘गायत्री‘ विशुद्ध आत्मिकी/ चेतन पक्ष हैं। ‘सावित्री‘ – आत्म-भौतिकी।
प्रश्नोत्तरी सेशन
प्राणाकर्षण प्राणायाम में cleaning व healing का process चलती है। अवांछनीयता की सफाई व वांछनीयता की अभिवृद्धि/ सत्प्रवृत्ति संवर्द्धनाय – दुष्प्रवृत्ति उन्मूलनाय/ ‘भेदत्व’ मिटाते चलें – ‘अद्वैत’ को धारण करें। कर्मकाण्ड के साथ उसकी आत्मा – ‘भाव पक्ष’ महत्त्वपूर्ण है।
गुरूदेव ~ ध्यान की विधा में सर्वप्रथम शांत शरीर – शांत मन के संग इष्ट के संग सायुज्यता – ‘भक्त – भगवान एक’ / ‘सविता – साधक एक’ भाव संवेदना जगाते हैं। मूलाधार में ‘मूल उर्जा’ (sex energy) है जिसके उर्ध्वगमन के बाद हम आत्म शक्ति का नाम दे देते हैं। संयम के अभ्यास से मूल उर्जा का क्षरण रोककर उसे हम उर्ध्वगामी बनाकर ‘ओजस् – तेजस् – वर्चस’ में रूपांतरित करते हैं।
‘सूर्यभेदन प्राणायाम’ साइनस के रोग में लाभकारी है, कफ संबंधी रोगों के निदान हेतु प्रभावी है। ‘कुण्डलिनी’ जागरण में यह प्राणायाम लाभकारी है। ‘पंचाग्नि प्रदीपनं’ में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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