Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Scientific Aspects of Spiritual Sex Element – 4

Scientific Aspects of Spiritual Sex Element – 4

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 27 Dec 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

Please refer to the video uploaded on youtube. https://youtu.be/2VSdBY8Dekg

sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: काम वासना का रूपांतरण

Broadcasting: आ॰ अंकुर जी

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

Transmutation of Sex Energy _ काम वासना का रूपांतरण _ आत्म साधना हेतु critical subject है। मानव शरीर धारण करने के दो उद्देश्य:-
१. मनुष्य में देवत्व का अवतरण
२. धरती पर स्वर्ग का अवतरण

निरालम्ब उपनिषद्. स्वर्ग इति च सत्संसर्गः स्वर्गः। नरक इति च असत्संसारविषयजनसंसर्ग एव नरकः॥
‘सत्’ का समागम ही स्वर्ग है। ‘असत्’ संसार के विषयों का संसर्ग ही नरक है॥१७॥
‘आत्मिकी’ का अंतिम लक्ष्य आत्म-परमात्म साक्षात्कार है अर्थात् absolute truth का बोधत्व है।

मुण्डक उपनिषद. ब्रह्मैवेदममृतं पुरस्ताद् ब्रह्म पश्चाद् ब्रह्म दक्षिणतश्चोत्तरेण । अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतं ब्रह्मैवेदं विश्वमिदं वरिष्ठम्॥११॥
II-ii-11: यह अमृत स्वरूप ‘ब्रह्म’ ही सामने है, ‘ब्रह्म’ ही पीछे है, ‘ब्रह्म’ ही दक्षिण और उत्तर में है, यही ऊपर-नीचे फैला हुआ है। ‘ब्रह्म’ ही सारा विश्व है। वही सर्वश्रेष्ठ है॥
‘ईश्वर’ सर्वत्र (omnipresent) हैं। हम सभी शांति/सौहार्द्र/आनन्द की तलाश में रहते हैं। विषयों पर आधारित आनंद ‘प्रेय’ मार्ग पर ले जाते हैं वे अस्थायी (unstable) हैं और ईश्वर ‘प्रेम’ – ‘श्रेय’ मार्ग पर जो अखंड/ स्थायी (stable) हैं। “काम की चरम परिणति ईश्वर ‘प्रेम’ के रूप में होती है।”

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः। महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्॥
अर्थात् हे अर्जुन! ‘काम’ ‘क्रोध’ जो कि रजोगुण से उत्पन्न हुए हैं भय देने वाले हैं और इन्हीं से प्रत्येक पाप में प्रवृत्ति होती है। ये ही सब से बड़े शत्रु हैं। जहाँ तक हो सके इनके विनाश का उपाय करो।
काम‘ अर्थात् कामनाएं – विषयों के प्रति आनंद में जब आसक्त ‘मन’ को बाधा होती है तो ‘क्रोध‘ की उत्पत्ति होती है। ‘क्रोध’ सात्विक भी होते हैं जो आदर्शों की रक्षार्थ हैं उसे ‘मन्यु’ की संज्ञा दी जाती हैं; जिसके देवता ‘शिव’ हैं। संतुलन हेतु अथवा नवसृजन हेतु भी विनाश माध्यम बनता है।
‘रजोगुण’ से उत्पन्न ‘काम’ व ‘क्रोध’ हमें पाप की ओर उन्मुख करते हैं अतः परम बैरी (शत्रु) हैं। परम चेतना श्री कृष्ण ‘अर्जुन’ को कहते हैं – सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।18.66।। अर्थात् सम्पूर्ण धर्मों का आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर।

Sex’ शब्द जिन अर्थों में प्रयुक्त है वह ‘काम’ का स्थूल धरातल है। ‘काम’ की परिष्कृत धारा ‘प्रेम’ है। शौर्य, साहस, पराक्रम, जीवट, उत्साह व उमंग उसकी ही विभिन्न भौतिक विशेषताएँ हैं।
काम की कालिमा काली मां हैं। मधु – कैटभ अर्थात् वासना – तृष्णा हैं। ‘काम’ (sex energy) को खत्म नहीं किया जा सकता है। ‘शरीर, मन व बुद्धि’ तीनों में ही ‘काम’ शक्ति क्रियाशील है। ‘संयम’ व ‘ऊर्ध्वगमन’ की साधना द्वारा ‘काम’ का रूपांतरण होता है। ‘रूपांतरण’ का अर्थ है सम्पूर्ण व्यक्तित्व में उल्लास का समावेश हो जाना।

काम‘ के संयम का अर्थ है – उसे रचनात्मक दिशा (creative direction) देना @ आदर्शों के प्रति प्रेम @ उपासना – साधना – आराधना। ‘दमन‘ से तो विकृति उत्पन्न होती और अनेकानेक मनोरोगों को जन्म देती है।
काम की चरम परिणति ईश्वर ‘प्रेम’ के रूप में होती है। भक्त – भगवान के बीच भाव – तादात्म्य घनिष्ठता आत्मीयता, से अखंडानंद प्रवाहित होने लगती है जिसके समक्ष सभी विषयानंद तुच्छ पड़ते हैं। इसे ही काम बीज का ज्ञान बीज में ‘रूपांतरण’ कहते हैं। इस अवस्था में ही साधक ‘अच्युत’ हो जाते हैं।

संत तुलसीदास, सुरदास, जार्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी, सेक्सपियर, नेपोलियन आदि काम वासना (Sex Energy) के प्रचंड प्रवाह के रूपांतरण से देवमानव/ महामानव बनें।
ऋषि/देवता सपत्नीक रहे अर्थात् शक्ति/ प्रकृति के संग हैं। ‘शिव’ – ‘शक्ति’ के बिना शव के समान हैं।
संसार से भागिये मत वरन् ‘तत्सवितुर्वरेण्यं’ चराचर जगत में आधारभूत अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता के दर्शन के दृष्टिकोण को विकसित करें। उदार दृष्टिकोण, आत्म-निर्भरता, रचनात्मकता आदि रूपांतरण के साधन हैं।

काक चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं॥ विद्यार्थी @ आत्मसाधक को कौए की तरह जानने की चेष्टा करते रहना चाहिए, बगुले की तरह मन लगाना (ध्यान करना) चाहिए, कुत्ते की तरह सोना चाहिए, आवश्यकतानुसार खाना चाहिए और गृह-त्यागी होना चाहिए।

प्रश्नोत्तरी सेशन

दमन‘ से विकृति उत्पन्न होती और अनेकानेक मनोरोगों को जन्म देती है। ‘संयम’ व ‘रूपांतरण’ से बात बनती हैं।

ईश्वरीय साक्षात्कार/ आत्मानुभूति अखंडानंद होती हैं। विषयों के आनंद क्षणभंगुर होते हैं। ‘तन्मात्रा साधना’ से विषयों पर नियंत्रण और वो भी आत्मिकी प्रगति के साधन बन जाते हैं।

आत्मा‘ नैसर्गिक रूप से मुक्त/ स्वतंत्र हैं। अतः प्राण हर जगह घुले रहने के बावजूद स्वतंत्र है। हम घुले हुए तो हैं मुक्त करने व होने की कला जाननी, सीखनी व प्रयोग में लानी है।

रजोगुणी क्रोध से बचें। सात्विक-क्रोध – मन्यु को धारण करना मानवीय आदर्श/ गुण हैं। पराक्रम – सज्जनता युक्त हो तो बात बने अर्थात् सौजन्य व पराक्रम का समन्वय हो।

सही व गलत सापेक्षतः होते हैं। इसके हेतु बुद्धि/ विवेक की शक्ति परमात्मा ने सभी को दी हैं। सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी ‘गायत्री’ हैं।

आत्मा‘ का स्वभाव मित्रता मित्रता/आत्मीयता का है अतः सभी मित्रता चाहते हैं – हम साथ साथ हैं।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment