Gayatri Geeta
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 12 Dec 2020 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
Please refer to the video uploaded on youtube.
sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: गायत्री गीता
Broadcasting. आ॰ अंकुर जी
आ॰ विष्णु आनन्द जी. Please listen/ watch on https://youtu.be/D1wE3MBR5B8
प्रश्नोत्तरी सेशन विद श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
‘प्रगति‘ का आधार – स्पष्ट concept व सतत practical पर निर्भर करता है। दोनों की गुणवत्ता बढ़ाने से प्रगति बढ़ाई जा सकती है।
ब्रह्म की स्फुरणा प्रकृति की दो शक्ति जड़-चेतन परा व अपरा प्रकृति हैं। श्रद्धा विज्ञानमयकोश का पक्ष हैं। ‘श्रद्धा, जो स्वयं और संसार का यथार्थ ज्ञान से उत्पन्न हुई है। आत्मीयता का विस्तार प्रज्ञा अभियान है। उदार चित्त से चित्त का शोधन होता है।
ईश्वरीय अनुशासन में ईश्वर के सहचर बन ईश्वर के पसारे इस संसार का सदुपयोग करें अर्थात् सदुपयोगी बनें।
ग्रंथि भेदन साधना में हम मूल प्रकृति को समझते हैं जिसकी सत्, तम् व रज से जाना जाता है।
सांसों को गहरा करना – ‘प्राणायाम’ व जब हम इसे भावना युक्त कर आयाम देना प्रारंभ कर देते हैं तो यह ‘प्राणाकर्षण प्राणायाम’ बन जाता है। यह किसी भी posture में किया जा सकता है। जब क्रिया सहजता पूर्वक की जाये तो वह क्रिया-योग बन जाती है।
‘शीर्षासन‘ दीवार के सहारे एवं ध्यान/ भाव युक्त हो। समय का निर्धारण सहजता पूर्ण (जब तक अच्छा लगे) तब तक हो। भोजन में शाक् सब्जियों को प्रमुखता दी जाये। कुंभक में परेशानी हो सांसों को गहरा लें व छोड़ें। नाक से लेकर मूंह से छोड़ने में अभ्यास क्रम में सहजता होती है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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