Experience Sharing – 2
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 03 Apr 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
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sᴜʙᴊᴇᴄᴛ: जिज्ञासा समाधान/ अनुभव शेयरिंग
Broadcasting: आ॰ अमन जी
आ॰ सुभाषचन्द्र सिंह (IES, गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
बाबूजी के मार्गदर्शन में पंचकोशी साधना अनवरत जारी है। 4 वर्ष से systematic classes चल रही हैं।
सन् 2013 से गायत्री साधना शुरू की। अनुष्ठान, जप आदि चलते रहे। किंतु आत्मसंतोष नहीं मिल पा रहा था। गुरूदेव के अंग अवयव बनने की शुभेच्छा को पूर्णता नहीं मिल पा रही थी।
सन् 2015 से गायत्री पंचकोशी साधना शुरू की। पंचकोश में अनंत ऋद्धियां सिद्धियां भरी परी हैं। इसका साक्षात्कार किया गया।
अन्नमयकोश की साधना से शारीरिक स्वास्थ्य को पाया गया। रोगों को दूर भगा कर निरोगी काया को पाया गया। शारीरिक बल में अभिवृद्धि हुई।
प्राणमयकोश की साधना से प्राणशक्ति अभिवृद्धि हुई।
मनोमयकोश की साधना से विक्षोभ शांत होता गया। मन शांत व प्रसन्नचित्त रहता है। समस्याएं/ चुनौतियों प्रगति का मार्ग अवरूद्ध नहीं प्रत्युत् प्रगति को गति प्रदान कर रहीं हैं।
विज्ञानमयकोश की साधना से आत्मबोध (स्वयं का यथार्थ ज्ञान) व तत्त्वबोध (संसार को तत्त्वतः जानना) सधता जा रहा है।
गायत्री पंचकोश साधना से व्यक्तित्व विकास संग पारिवारिक व सामाजिक जीवन की उपलब्धियों संग जीवन अखंड आनंद का स्रोत बनता जा रहा है।
आ॰ प्रज्ञा शाण्डिल्य जी (वैज्ञानिक, गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
गायत्री पंचकोशी साधना से आत्मविश्वास में अभिवृद्धि हुई। जीवन में निरोगिता, अनुशासन, नियमितता में निरंतर अभिवृद्धि होती जा रही है। निर्णय लेने की क्षमता में सुधार व वृद्धि हुई।
आ॰ हेमन्त जोगलेकर (Chief General Manager, पुणे, महाराष्ट्र)
गायत्री साधना के practical को गायत्री पंचकोशी साधना से आत्मसात करना सहज व सुबोध हुआ।
शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक समग्र विकास संभव बन पड़ा।
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को क्रमशः पंचकोश साधना के माध्यम से रचाना (approached), पचाना (digested) व बसाना (realised) संभव बन पड़ता है।
आ॰ अश्वनी कुमार गुप्ता (शिक्षक, योग-शिक्षक, कुशीनगर, गोरखपुर, उ॰ प्र॰)
गायत्री पंचकोशी साधना अप्रैल 2017 से बाबूजी के मार्गदर्शन में अनवरत जारी है। पंचकोशी क्रियायोग का अभ्यास निर्बाध रूप से जारी है।
शरीर स्वस्थ है। चिंतन उत्कृष्ट होता जा रहा है। कार्य करने की क्षमता बढ़ती जा रही है। व्यवहार शालीन होता जा रहा है। आत्मविश्वास में अभिवृद्धि होती जा रही है। सम भाव/ आत्म भाव में स्थिति अनवरत बनी रहती है।
आ॰ विरेन्द्र कु॰ त्यागी जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
सन् 1993 में गायत्री परिवार से जुड़े।
सन् 2017 से पंचकोशी साधना का अभ्यास शुरू की। ओजस, तेजस् व वर्चस में निरंतर अभिवृद्धि होती जा रही है। आत्मानंद में रमण करता हूं।
आ॰ विजय कु॰ प्रसाद (शिक्षक, प्रज्ञाकुंज सासाराम)
गायत्री पंचकोशी साधना पिताजी (बाबूजी) के मार्गदर्शन में शुरू की। नित्य उपनिषद स्वाध्याय, joint movements, warm-up, प्रज्ञा योग, आसन, प्राणायाम, बंध-मुद्रा का अभ्यास करता हूं। शरीर को निरोग बनाया गया है। चरित्र आदर्श है। व्यवहार में शालीनता बढ़ती जा रही है।
आ॰ श्री नागेन्द्र सिंह जी (NCR दिल्ली)
गुरूदेव की असीम कृपा मुझ पर बनी रही। सन् 2015 में बाबूजी से मुलाकात हुई। तब से आज तक गायत्री पंचकोशी साधना अनवरत जारी है।
रोगों को दूर भगाया गया। वृद्धावस्था (90 वर्ष) में सारे lab reports normal हैं। जीवन साधनामय होता जा रहा है। सामाजिक उत्थान @ अराधना जारी है।
आ॰ डा॰ तत्त्वदर्शी जी (देहरादून, उत्तराखंड)
सन् 1991 ई॰ से गायत्री परिवार से जुड़ा। सन् 2017 में देहरादून के कार्यक्रम में आ॰ बाबूजी से मुलाकात हुई। तितीक्षा तप जीवन का अनिवार्य अंग है। प्रज्ञायोग, प्राणाकर्षण प्राणायाम, बंध – मुद्रा का नित्य अभ्यास करता हूं। शरीर स्वस्थ है। मन शांत व प्रसन्नचित्त रहता है। श्रद्धा निष्ठा नित नये आयाम ले रहे हैं।
आ॰ कुमारी माधुरी सिंह (गृहिणी कटिहार, बिहार)
मैं सन् 2015 से अपने पति (विष्णु आनन्द) संग गायत्री पंचकोशी साधना शुरू की। प्रज्ञायोग, आसन, प्राणायाम, जप व ध्यान नित्य नियमित रूप से करती हूं।
शारीरिक रोगों (सिर दर्द, अपच, low blood pressure, weakness, fat after pregnancy) को दूर भगाया गया। मन शांत रहता है। खुश रहती हूं। मैं, मेरे husband & दोनों बच्चियां साथ में पंचकोशी क्रियायोग का अभ्यास करते हैं। बहुत अच्छा लगता है। परिवार स्वर्ग बनता जा रहा है।
आ॰ विश्वजीत आनन्द जी (student, मधेपुरा, बिहार)
पंचकोशी क्रियायोग के अभ्यास से अध्यात्म गुण, कर्म व स्वभाव में जीवंत होता जा रहा है। शीर्षासन क्रियायोग में नित्य परिपक्वता बढ़ती जा रही है। स्वाध्याय जीवन का नियमित अंग है।
जिज्ञासा समाधान – आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह बाबूजी
पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए व्यक्तित्व विकास @ आत्मिकी विकास की पूर्णता पंचकोशी साधना की विशेषता है।
अपनी विशिष्टता को जाने पहचाने व सम्मान दें। प्रेरणा ली जाती है उसका क्रियान्वयन अपनी विशिष्टता संग किया जाता है।
एक सधे सब साधे सब जाय …. पंचकोशी साधना आकाशीय विद्या है। क्रियायोग की परिपक्वता में नियमितता संग स्वाध्याय की भूमिका अहम है।
गुरू के साथ रहकर प्रशिक्षण प्राप्त करने में प्राण प्रत्यावर्तन की प्रक्रिया सहज रहती है। ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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