Dhyan Bindu Upanishad – 2
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 20 June 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्|
SUBJECT: ध्यान बिन्दु उपनिषद् – 2
Broadcasting: आ॰ अंकुर जी
भावार्थ वाचन – आ॰ किरण चावला जी (USA)
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
सोऽहं साधना @ हंस – हंस – अजपा गायत्री। गायत्री उच्चस्तरीय साधना के दो पक्ष – १. पंचकोशी साधना & २. कुण्डलिनी जागरण साधना। प्रथम चेतना परिष्करण हेतु व द्वितीय ऊर्जा के अभिवृद्धि हेतु। एक पक्षीय साधना से पूर्णता की प्राप्ति संदिग्ध हो जाती है।
ईशावास्य उपनिषद – विद्यां च अविद्यां च यः तत् वेद उभयम् सह। अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्यया अमृतम् अश्नुते।।११।।
सम्भूतिं च विनाशं च यः तत् वेद उभयम् सह। विनाशेन मृत्युं तीर्त्वा सम्भूत्या अमृतम् अश्नुते।।१४।।
कुण्डलिनी जागरण साधना – अखण्ड-ज्योति जनवरी 1987 का स्वाध्याय सभी साधक कर सकते हैं। http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1987/January/v1
‘प्राणायाम‘ निश्चय ही लाभ देते हैं। ‘बन्ध’ युक्त प्राणायाम से लाभ में कई गुना अभिवृद्धि हो जाती है। एवं इसमें ‘मुद्रा’ जोड़ दी जाए अर्थात् ‘प्राणायाम + बन्ध + मुद्रा’ के समन्वित अभ्यास से आशातीत सफलता प्राप्त की जा सकती है। “महामुद्रा + महाबंध + महावेध” के अभ्यास से साधकों को महती लाभ मिले हैं।
बन्ध – मूल बन्ध, उड्डियान बन्ध व जालन्धर बन्ध। ‘योनि’ शब्द को यहां मूलाधार चक्र के अर्थ में लें। प्राण के उर्ध्वगमन में ‘प्राणायाम, बन्ध व मुद्रा क्रियायोग’ की भूमिका महती है।
कुण्डलिनी शक्ति जागरण अर्थात् संकीर्णता को विस्तृत होने के अर्थों में ले। वासना का रूपांतरण भावना में। क्षुद्रता का रूपांतरण महानता में। व्यष्टिगत चेतना, समष्टि गत चेतना से तादात्म्य … resonance/ tuning बनाने लगती है – सायुज्यता … विलय – विसर्जन।
अनासक्त @ निष्काम भाव से रति क्रिया (कर्म क्षेत्र/ सांसारिकता/ विषय वासना आदि) में वीर्य (प्राण) का क्षरण (निम्नगामी) नहीं होता है। खेचरी व वज्रोली मुद्रा के mental practice के युगानुकुल अभ्यास को प्राथमिकता दी जा सकती हैं।
जिज्ञासा समाधान
‘शीर्षासन‘ में जिनकी सहजता हो। वो इसमें Meditational process से महती लाभ ले सकते हैं।
‘जप‘ व ‘ध्यान‘ के समन्वित अभ्यास से लाभ मिलते हैं। इसमें APMB संग अभ्यास से लाभ जल्दी मिलते हैं। क्रिया संग भाव-पक्ष अहम है।
प्राण तत्व एक है। क्रियाशीलता के आधार पर उसे भिन्न-भिन्न स्थान पर भिन्न-भिन्न नाम दिये गये हैं। अतः नाम की विविधताओं में ना उलझ कर, क्रियायोग के practice में ‘प्राणाकर्षण’ @ समष्टिगत प्राण के Meditational भाव से cleaning & healing process को सन्निहित रखा जा सकता है। चित्त वृत्ति का निरोध ‘कुंभक’ है। योगश्चचित्तवृत्तिनिरोधः।
विषयासक्त बुद्धि का रूपांतरण ईश्वरासक्त भाव में। जीव भाव का रूपांतरण शिव भाव में।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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