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Chakra Dhyaan

Chakra Dhyaan

PANCHKOSH SADHNA – Gupt Navratri Sadhna – Online Global Class – 17 Jul 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌|

SUBJECT:  CHAKRA DHYAAN

Broadcasting: आ॰ नितिन जी

श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी

सुषुम्ना के भीतर रहने वाली तीन नाड़ियों में सबसे भीतर स्थित ब्रह्म नाड़ी से षट् चक्र संबंधित हैं।

षट् चक्र एक प्रकार की सुक्ष्म ग्रंथियां हैं। इन षट् चक्र में साधक जब अपना ध्यान केंद्रित करता है तो उसे वहां की सुक्ष्म स्थिति का विचित्र अनुभव होता है।

1. मूलाधार चक्र – तत्त्व पृथ्वी। रंग – पीला। तन्मात्रा – गंध। ध्वनि – लं। भूलोक (स्थूल शरीर)। स्थान – मल मूत्रों के छिद्र मध्य (योनि की सीध में)। प्रतीकात्मक जीव – कच्छप (अलंकारिक)। यन्त्र – चतुष्कोण। ज्ञानेन्द्रिय – नासिका, कर्मेंद्रिय – गुदा।  आध्यात्मिक उपलब्धि – शम (शान्ति – उद्वेगों का शमन)। ध्यान का फल – वक्ता, विनोदी, आरोग्य, आनन्द चित्त, काव्य व लेखन का सामर्थ्य।

2. स्वाधिष्ठान चक्र – तत्त्व जल। रंग – सफेद। तन्मात्रा – रस। ध्वनि – वं। भुवः लोक (सुक्ष्म शरीर)। स्थान – पेड़ू के सीध में। प्रतीकात्मक जीव – मत्स्य (अलंकारिक)। यन्त्र – चन्द्राकार। ज्ञानेंद्रिय – रस‌। कर्मेंद्रिय – लिंग। आध्यात्मिक उपलब्धि – दम (इन्द्रिय निग्रह)। ध्यान का फल – अहंकार विकारों का नाश, मोह निवृत्ति, रचना शक्ति।

3. मणिपुर चक्र – तत्त्व अग्नि। रंग – लाल। तन्मात्रा – रूप। ध्वनि – रं। स्वः लोक (कारण शरीर)। स्थान – नाभि के सीध में। यन्त्र – त्रिकोण। ज्ञानेंद्रिय – चक्षु। कर्मेंद्रिय – चरण। आध्यात्मिक उपलब्धि – दम (इन्द्रिय निग्रह)। ध्यान का लाभ – संहार व पालन का सामर्थ्य, वचन सिद्धि।

4. अनाहत चक्र – तत्त्व वायु। रंग – धूम्र। तन्मात्रा – स्पर्श। ध्वनि – यं। महः लोक। स्थान – हृदय के सीध में। प्रतीकात्मक जीव – हिरण (अलंकारिक)। यन्त्र – षट्कोण। ज्ञानेंद्रिय – त्वचा, कर्मेंद्रिय – हाथ‌। आध्यात्मिक उपलब्धि – तितीक्षा (धैर्यपूर्वक प्रतिकूलताओं को सहन करना )। ध्यान का फल – स्वामित्व, योग सिद्धि, ज्ञान जाग्रति, इन्द्रिय – जय, परकाया प्रवेश।

5. विशुद्धि चक्र – तत्त्व आकाश। रंग – नीला। तन्मात्रा – शब्द। ध्वनि – हं। जनः लोक। स्थान – कंठ मूल के सीध में। प्रतीकात्मक जीव – हाथी (अलंकारिक)। यन्त्र – शून्य (गोयाकार)। ज्ञानेंद्रिय – कान, कर्मेंद्रिय – वाक्। आध्यात्मिक उपलब्धि – श्रद्धा (सन्मार्ग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता @ निष्ठा – विश्वास)। ध्यान फल – चित्त शांति, त्रिकाल दर्शन, दीर्घ जीवन, तेजस्विता, सर्वहित परायणता।

6. आज्ञा चक्र – तपः लोक। ध्वनि – ॐ। रंग – श्वेत। स्थान – भृकुटियों के मध्य। यन्त्र – लिंगाकार। आध्यात्मिक उपलब्धि – समाधान (वासना, तृष्णा व अहंता – शांत)। ध्यान फल – सर्वार्थ साधन।

7. सहस्रार चक्र – सत्य लोक। आकृति सहस्र दल कमल। रंग – स्वर्णिम। मस्तिष्क मध्य Reticular activating system से इसकी संगति बैठती है। यन्त्र – पूर्ण चन्द्रवत्। आध्यात्मिक उपलब्धि – अखंडानंद। ध्यान का फल – भक्ति, अमरता, समाधि।

कुण्डलिनी शक्ति का स्रोत है। वह हमारे शरीर का सबसे अधिक समीप चैतन्य स्फुल्लिंग है, उसमें बीज रूप में इतनी रहस्यमयी शक्तियां गर्भित हैं, जिनकी कल्पना तक नहीं हो सकती। कुण्डलिनी शक्ति के इन 6 केन्द्रों में, षट्चक्रों में उसका काफी प्रकाश है।

वेध‘ शब्द का सामान्य अर्थ ‘छेद’ कर देना होता है। पर आध्यात्म की परिभाषा में उसे ‘जागरण’ अर्थ में प्रयोग किया गया है।

शब्द सिद्धि अर्थात् शब्दों के साथ जुड़ी हुई भावना का आभास। कहने वाले की भावना का सही अनुमान वही लगा सकता है जिनका अन्तः करण पवित्र हो। कोई सिद्धान्त या प्रतिपादन सार्वभौम या सर्वकालीन नहीं होता। यह शास्त्र वचन किस प्रकार प्रयुक्त करना चाहिए। यह सूक्ष्म ज्ञान होना ही शब्द की सिद्धि है।

आत्मानँ रथितं विद्धि शरीरँ रथमेव तु। बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च॥1-III-3॥ भावार्थ: आत्मा को रथी जानो और शरीर को रथ । बुद्धि को सारथी जानो और इस मन को लगाम॥
इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयाँ स्तेषु गोचरान्। आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः॥४॥ भावार्थ: इन्द्रियाँ घोडों के सामान हैं। विषय उन घोड़ों के विचरने के मार्ग हैं। इन्द्रियों और मन के साथ युक्त हुआ वह आत्मा ही भोक्ता है। ऐसा ही मनीषी कहते हैं॥

ध्यान धारणा में क्रमशः एक एक चक्र की सत्ता विलीन हो जाती है। समर्पण – विलयन विसर्जन। वासना – शांत … तृष्णा – शांत, … अहंता – शांत … उद्विग्नता – शांत, … भावातीतं त्रिगुणरहितं सर्वधासाक्षीभूतं …।

जिज्ञासा समाधान

सेवा परमो धर्मः। सेवा परम धर्म है। सारी उपलब्धियों की सार्थकता मानवता की सेवा (service) में सन्निहित है। … आत्मकल्याणाय लोककल्यणाय वातावरण परिष्कराये ….।

श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा संग – 1 घंटे स्वाध्याय व 1 घंटे क्रियायोग के नियमित अभ्यास संग dutifulness से लक्ष्य बोध किया जा सकता है।

मंत्र जप में उसके किसी भी एक वर्ण/ अक्षर के अर्थ के चिंतन मनन निदिध्यासन कर तदनुरूप लाभ लिये जा सकते हैं। ध्वनि विज्ञान भी tuning अर्थात् सायुज्य बिठाने में help करते हैं। स्मरण रहे हमें सुक्ष्मातिसुक्ष्म में जाना है क्योंकि वो सबसे परे हैं @ अद्वैत।

अहरह स्वाध्याय। मन का भोजन विचार हैं। मन को नियंत्रित @ संतुलित @ स्वस्थ बनाए रखने हेतु आ रहे विचारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए। इसमें स्वाध्याय व सत्संग की भूमिका अप्रतिम है। हम जैसा सोचते हैं वैसा करते हैं और वैसे ही बनते हैं। अतः हमें सर्वप्रथम चिंतन के प्रति सजग/ जागरूक हो जाना चाहिए। इसे “इच्छा/आकांक्षा – विचारणा – क्रिया” से समझा जा सकता है। अचिन्त्य चिंतन एवं अयोग्य आचरण ही सारे कष्टों का मूल है। इनके परिष्करण के लिए गायत्री साधना व सावित्री साधना के समन्वय से साधना को समग्रता प्रदान की जा सकती है।

शरीर भाव में रहने से विषय जनित आनंद (स्वार्थ) सुख का पर्याय हैं तो आत्म भाव में रहने से त्याग (परमार्थ) सुख देते हैं। विषयासक्ति से सुख-दुखात्मक स्थिति बनती है। आत्मसाधक हर हाल मस्त रहते हैं ।

ॐ  शांतिः शांति शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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