Shabd Brahm and Naad Brahm – 2
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 05 Sep 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
SUBJECT: शब्द ब्रह्म व नाद ब्रह्म – 2
Broadcasting: आ॰ नितिन जी
श्रद्धेय लाल बिहारी बाबूजी
पंचकोश – आत्मा के 5 आवरण है। इसमें विकृति आ जायें तो यह बन्धन कारी @ ‘भक्षक’ की भूमिका में होते हैं। दूसरी तरफ परिष्कृत पंचकोश survival हेतु ‘रक्षक’ की भूमिका में होते हैं।
१. अन्नमय कोश
लाभ: निरोगिता, दीर्घ जीवन व चिर यौवन
उपाय – योगासन, उपवास, तत्त्वशुद्धि व तपश्चर्या।
२. प्राणमय कोश
लाभ – ऐश्वर्य, पुरूषार्थ, ओज-तेज व यश।
उपाय – प्राणायाम, बंध व मुद्रा।
३. मनोमय कोश
लाभ – आकर्षक व्यक्तित्व, धैर्य,। मानसिक संतुलन व एकाग्रता – बुद्धिमत्ता
उपाय – जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना।
४. विज्ञानमय कोश
लाभ – अतीन्द्रिय क्षमता, दिव्य दृष्टि, दैवीय गुण व सज्जनता – सहृदयता।
उपाय – सोऽहं साधना, आत्मानुभूति योग, स्वर संयम व ग्रन्थि भेदन।
५. आनन्दमय कोश
लाभ – आत्मदर्शन, ईश्वर आनंद व अखंडानंद।
उपाय – नाद साधना, बिन्दु साधना, कला साधना व तुरीय स्थिति।
पंचकोश साधना के लाभ (रिद्धि – सिद्धि) जीवन-यापन के ‘साधन’ मात्र हैं। इसमें ‘आसक्त’ (attached) होकर ‘साध्य’ समझने की भूल ना की जाए। ‘साधना’ = ‘साधक – साधन – साध्य’ @ ‘त्रैत’ (तीनों) में सर्वप्रथम साधन-भाव तिरोहित होता है, साधक व साध्य – ‘द्वैत’ भाव रह जाता है। समर्पण, विलय – विसर्जन उपरांत साधक-भाव तिरोहित हो जाता है और साध्य @ ‘अद्वैत’ भाव रह जाता है।
मांडूक्य उपनिषद् में उल्लिखित है कि ‘ॐ’ अर्थात् प्रणव ही पूर्ण अविनाशी परमात्मा है, जो जड़ और चेतन में सृष्टि के कण-कण में संव्याप्त है। सर्वत्र वह नादरूप में गुंजायमान है।
आहत ध्वनियां वे हैं, जो किन्हीं पदार्थों या प्राणियों के हलचल के कारण उत्पन्न होती हैं।
अनाहत वे हैं, जो प्रकृति प्रवाह एवं सूक्ष्म जगत से संबंधित हैं।
नादयोग से सूक्ष्म जगत की दिव्य ध्वनियों के साथ संपर्क बनाया जाता है। नादयोग से ग्रहण और मंत्रयोग से प्रेषण की क्षमता उत्पन्न होती है। ये दोनों धाराएं मिलकर ‘शब्दब्रह्म’ की समग्र क्षमता प्रस्तुत करतीं हैं।
स्वे महिम्नि स्वयं स्थित्वा स्वयमेव प्रकाशते। नाद और बिंदु का साधक अपनी महिमा में स्वयं स्थित होकर स्वयं प्रकाशता है।
संगीत व अध्यात्मिकता का घनिष्ठ संबंध है। संगीत से सरसता की अभिवृद्धि होती है। संगीत सृष्टि का भाव भरा उल्लास है। संगीत की जीवनदायक सामर्थ्य है। नादयोग एवं संगीत की प्रभावोत्पादक सामर्थ्य है।
मूण्डक उपनिषद् – प्रणवो धनुः शारो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते। अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत् तन्मयो भवेत्॥2-2-4॥ भावार्थ: प्रणव – धनुष है, आत्मा – बाण है और ब्रह्म उसका लक्ष्य कहा गया है। बाण की तरह तन्मय हो और प्रमाद रहित होकर उसका वेधन कर ॥४॥
आत्मबोध का प्रथम सोपान – ‘सोऽहं साधना’ (हंसयोग)।
जिज्ञासा समाधान
Angle of vision @ दृष्टिकोण के परिष्करण हेतु प्रज्ञा जागरण @ third eye opening @ ‘आज्ञा चक्र’ की साधना की आवश्यकता होती है। इसे विवेकशीलता, दूरदर्शिता, तत्त्वदृष्टि आदि के रूप में समझा जा सकता है।
‘साधन‘ की महत्ता ‘साधक‘ व ‘साध्य‘ की सामीप्य, समर्पण – विलय – विसर्जन में है। साधक के मनोभूमि के अनुरूप साधन अपनी महत्ता परिलक्षित करती हैं। Nothing is useless in the world. सदुपयोग का माध्यम बनकर व बनाकर सार्थक जीवन व लक्ष्य संधान किया जा सकता है।
जन्म – मरण अर्थात् शरीर धारण व छोड़ने का क्रम – आवागमन से ‘जीवात्मा’ आबद्ध है। जीवात्मा – पंचकोश युक्त व आत्मा – पंचकोश मुक्त से समझा जा सकता है @ न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु: न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष:। न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु: चिदानंद-रूपं शिवोऽहं शिवोऽहं॥ २ ॥
ॐ – भूः, भुवः, स्वः (तीन व्याहृतियां)
१. भू: – तत्सवितुर्वरेण्यं
२. भुवः – भर्गो देवस्य धीमहि
३. स्वः – धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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