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Introduction to Indian Philosophy and Vedant Darshan

Introduction to Indian Philosophy and Vedant Darshan

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 11 Sep 2021 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌।

SUBJECT: भारतीय दर्शन‌ का परिचय व वेदान्त दर्शन

Broadcasting: आ॰ अमन जी

आ॰ सुभाष सिंह जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)

दर्शन‘ का मुख्य उद्देश्य – दृष्टिकोण का परिमार्जन। भारतीय दर्शन‌ के दो पक्ष – अंतरंग परिष्कृत व बहिरंग सुव्यवस्थित, जीवन साधना की समग्रता/ पूर्णता का मार्ग प्रशस्त करती है।

अवैदिक दर्शन:-
१. चावार्क दर्शन
२. जैन दर्शन
३. बौद्ध दर्शन
४. आजीविक दर्शन

वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन:-
१. सांख्य दर्शन (प्रणेता – कपिल ऋषि, सिद्धांत – पुरूष, प्रकृति, गुण, सत्कर्म …)
२. योग दर्शन (प्रणेता – पतंजलि ऋषि, सिद्धांत – अष्टांग योग …)
३. न्याय दर्शन (प्रणेता – गौतम ऋषि, सिद्धांत – प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान …)
४. वैशेषिक दर्शन (प्रणेता – कणाद ऋषि, सिद्धांत – पदार्थ, द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव …)
५. मीमांसा दर्शन @ पूर्व मीमांसा (प्रणेता – जैमिनी ऋषि, सिद्धांत – अपौरूषेयत्व, अर्थापत्ति, अनुपलब्धि, सतहप्रामाण्यवाद …)
६. वेदान्त दर्शन @ उत्तर मीमांसा  (प्रणेता – बादरायण ऋषि, सिद्धांत – महावाक्य, साधन चतुष्टय, तीन सत्य ….)
प्रत्येक दर्शन का आधारग्रंथ एक दर्शनसूत्र है। 

वेदान्त का मूल ग्रन्थ – उपनिषद्। वेदान्त दर्शन 4 अध्यायों एवं 16 पादों में विभक्त है।
प्रथम अध्याय में वेदान्त संबंधी समस्त वाक्यों का मुख्य आशय प्रकट कर उन समस्त विचारों को समन्वित किया गया है, जो बाहर से देखने पर भिन्न एवं अनेक स्थलों पर तो विरोधी भी प्रतीत होते हैं।
द्वितीय अध्याय का विषय ‘अविरोध’ है।
तृतीय अध्याय की विषय वस्तु ‘साधन’ है।
चतुर्थ अध्याय साधना का परिणाम होने से ‘फलाध्याय’ है।

वेदान्त का वैलक्षण्य: १. अद्वैत वेदान्त (प्रतिपादक – आद्य शंकराचार्य)
२. विशिष्टाद्वैत वेदान्त (प्रतिपादक – श्री रामानुजाचार्य)
३. द्वैताद्वैत वेदान्त (प्रतिपादक – श्री निम्बार्काचार्य)
४. द्वैत वेदान्त (प्रतिपादक – श्री माध्वाचार्य)
५. शुद्धाद्वैत सिद्धांत (प्रतिपादक – श्री वल्लभाचार्य)
६. अचिन्त्य – भेदाभेद सिद्धांत (प्रतिपादक – श्री चैतन्य महाप्रभु)

अथ वेदान्त दर्शनम् प्रथमध्याये प्रथम पादः

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।।१।। अब यहां से ब्रह्म को जानने की इच्छा का विवेचन किया जाता है।

जन्माद्यस्ययतः ।।२।। इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति एवं प्रलय का जो‌ नियामक चेतन तत्त्व है, वही ब्रह्म है।

शास्त्रयोनित्वात् ।।३।। वेद में उस ब्रह्म को जगत का कारण कहा गया है।

………………..

चतुर्थाध्याये चतुर्थः पादः – अनावृत्तिः शब्दादनावृत्तिः शब्दार्थ ।।२२।। ब्रह्मलोक को प्राप्त हुए मुक्तात्मा का पुनः आगमन नहीं होता, यह बात श्रुति वचन से स्पष्ट होती है।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ सुभाष सिंह जी को आभार।

वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी @ परमपूज्य गुरुदेव ने सभी आर्ष ग्रन्थों के भाष्य संग विश्व वसुधा को ‘प्रज्ञोपनिषद्’ रूपी अद्भुत अप्रतिम सार्वभौम सर्वोपयोगी दर्शन दिया जो सर्वांगीण विकास (व्यक्तिगत जीवन, सांसारिक जीवन व अध्यात्मिक जीवन में प्रगति) का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

गहन शांति – आत्मानुभूति है। जो किसी बैसाखी (विषय) का सहारा नहीं लेती प्रत्युत् स्वानुभूत है। @ आत्मावाऽरे ज्ञातव्यः। आत्मावाऽरे श्रोतव्यः। आत्मावाऽरे द्रष्टव्यः।

अज्ञान @ आसक्ति से लोभ, मोह व अहंकार उत्पन्न होते हैं जो त्रिविध दुखों का मूल है। ‘आत्मज्ञान’ से त्रिविध तापों से निवृत्ति @ मोक्ष लभ्य होता है @ ‘ऋते ज्ञानान्नमुक्तिः’।

भारतीय दर्शन का अंतिम लक्ष्य आत्मबोध @ परमात्म बोध है @ ‘आत्मशोधन + परमार्थ’।

साधक‘ स्वयं को role model (प्रेरणास्रोत) बनावें। ‘प्रेरणा’ (motivation) – आत्मीयतापूर्ण होती है। अतः शिक्षण का माध्यम प्रेरणा हो। @ अपने लिए कठोरता व दूसरों के लिए उदारता।
‘भाषणबाजी’  अर्थात् अपनी बातों को लादने (impose) करने से बचा जाए।
सार्थक और प्रभावी उपदेश वह है जो वाणी (बैखरी) से नहीं प्रत्युत् अपने आचरण से प्रस्तुत की जाती है। @ Action speaks louder than speech.

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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