Gayatri Ramayan
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 27 Nov 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: गायत्री रामायण (अन्नमयकोश)
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
आ॰ किरण चावला जी (USA)
वाल्मीकि रामायण में – 24000 श्लोक । एक – एक हजार श्लोकों के उपर गायत्री के एक – एक अक्षर का सम्पुट ।
1. तप व स्वाध्याय की महत्ता । शास्त्र का चिंतन । मनन करने वाले ‘मुनि’ । प्रेरणा/ शिक्षण – हम तपस्वी व स्वाध्यायशील बनें ।
2. तीन तथ्य:-
(क) ‘यज्ञ’ नष्ट करने वालों को ‘राक्षस’ मानना ।
(ख) राक्षसों को मारना ।
(ग) राक्षसों को मारने के लिए विवेकशीलों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना ।
3. “हिम्मते मरदां मददे खुदा” – ईश्वर उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी मदद आप करते हैं। कठिनाइयों को देखकर हमें विचलित नहीं होना चाहिए प्रत्युत् उनके समाधान हेतु प्रयासरत रहें ।
4. प्रशंसा की महत्ता का वर्णन @ तत्सवितुर्वरेण्यं । आदर्शों को देखने का क्रम @ सकारात्मकता @ आत्मीयता।
5. दूरदर्शी विवेकशीलता – भविष्य में आने वाले कठिनाइयों को ध्यान में रखकर, उनके लिए समुचित तैयारी करना @ पुण्य संचय ।
6. “सत्यं शिवं सुन्दरं ।” – राज्य भक्ति @ देश भक्ति @ समाज भक्ति @ राष्ट्रीयता ।
7. भारतीय जीवनशैली – सादा जीवन – उच्च विचार। विवेकवान् व्यक्ति अपने:-
दृष्टिकोण को भरत सा,
अन्तःकरण को सरलतामयी कुटिया सा,
तब उसे जटाधारी राम के दर्शन होंगे @ सियाराम मय सब जग जानी …।
8. वर्तमान सबसे मूल्यवान् समय है । काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ Great says – if you kill time time will kill you in return.
9. “जितना मिले उसे लो और अधिक के लिए कोशिश करो ।” Something is better than nothing. प्रतिभावान बनें । प्रतिभावान, शक्तिशाली व धनवान बनें । अर्थात् त्रिपदा गायत्री (ज्ञान, कर्म व भक्ति) की ‘उपासना, साधना व अराधना’ को जीवन में आत्मसात करें ।
10. “जैसा संग वैसा रंग ।” – हमें जिस क्षेत्र में लाभान्वित होना हो, उसे उसी क्षेत्र में अपने से बलवान् शक्तियों के साथ शीघ्र ही मैत्री स्थापित करनी चाहिए ।
11. ” .. समत्वं योग उच्यते ।” – प्रिय अप्रिय, सुख दुःख में मनुष्य को विचलित नहीं होना चाहिए प्रत्युत् मन को एकरस कर अपनी मानसिक स्वस्थता (संतुलन) का परिचय देना चाहिए ।
12. आत्मज्ञान का शिक्षक 3 गुणों से संपन्न हों – (क) निष्पाप (ख) अनुभवी व सफल (ग) तपस्वी – @ गुरू । विश्वसनीय पथ प्रदर्शक प्राप्त होने पर, उन्हें प्रणाम करके विनय पूर्वक प्रश्न करना चाहिए @ शिष्य समर्पण भाव ।
13. ब्रह्मचर्य तप की महत्ता ।
14. आत्मवत् सर्वभूतेषु य पश्यन्ती से पण्डित: । दिव्य नेत्र का जागरण – एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति @ अद्वैत ।
15. अग्नि – जीवन शक्ति @ तपोबल @ क्रियाशक्ति । जिसमें पर्याप्त मात्रा में उष्णता है, तेजस्विता है, उसका हर प्रकार से मंगल ही होगा ।
16. “अन्धे के आगे रोवे अपना नयना खोवे ।” जो लोग मदोन्मत हो रहे हैं, वो दूसरों के उचित बात को भी नहीं समझते । उनको समझाने का रास्ता दूसरा है ।
17. विभीषण की भांति न्यायपूर्ण दृष्टि रखकर हम सर्वप्रिय रह सकते हैं और उनके हृदयों पर शासन कर सकते हैं ।
18. आत्मप्रताड़ना (अंतःकरण की एक चीत्कार एक हुंकार) से बड़े-बड़े पाषाण हृदय भी विचलित हो जाते हैं । ईश्वरीय कोप – दैवीय दण्ड (गहणाकर्मणोगति) को ध्यान में रखते हुए अपने आचरण को ठीक रखना चाहिए ।
19. सौजन्य युक्त पराक्रम – उस वीर पुरुष का पराक्रम धन्य है, जो स्वयं निष्पाप रहता है और कषाय कल्मषों को मार भगाता है @ आत्मपरिष्कार ।
20. व्यक्ति विशेष – व्यक्तित्व अनुरूप ही स्वयं की (अनुकूल/ प्रतिकूल) परिस्थितियों हेतु जिम्मेदार है । स्वयं के पाप ही स्वयं का नाश करते हैं @ भस्मासुर ।
21. अग्नि (अन्तः ज्योति @ आत्मा) – सर्वत्र साक्षीभूत हैं अतः वहां सत्य का आश्रय लेना ही उचित है ।
22. अन्तः दृष्टि के कांपने से बाह्य जीवन का सारा महल कांपा जाता है ।
23. समाजवाद – परमार्थी बनें @ अपने लिए कठोरता व अन्यों के प्रति उदारता @ वसुधैव कुटुंबकम् ।
24. अनासक्त प्रेम (आत्मीयता) @ सीता, दो पुत्र (आत्मोत्कर्ष की दो परम सिद्धावस्थाएं) उत्पन्न करती हैं – (क) लव अर्थात् सद्ज्ञान्, (ख) कुश अर्थात् सत्कर्म ।
चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी बनें ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ किरण दीदी, गुरूदेव की शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए ग्लोबल स्तर पर उनका प्रसार कर रही हैं यह गुरूदेव की प्रसन्नता व हम सभी हेतु गर्व का विषय है ।
नित्य स्वाध्याय (अध्ययन, मनन चिंतन व निदिध्यासन), सत्संग व ईश्वर प्राणिधान हमारे ध्यान को नित नए आयाम (गहराई) देते हैं ।
जब स्वयं के हित, अन्यों (सर्वहारा वर्ग) के लिए हितकारी ना हों तो वैसे हित स्वार्थ के category में आ सकते हैं । अतः दूरदर्शी विवेकशीलता को अपनाया जाए ।
मन को शांत (संतुलित) रखने हेतु ४ साधन – “मैत्री, करूणा, मुदिता व उपेक्षा” ।
काम ऊर्जा का ज्ञान ऊर्जा में रूपांतरण (transmutation of sex energy) से कामवासना रूपी लंका को जीता जा सकता है ।
महामंत्र जितने जग माहीं, कोऊ गायत्री सम नाहीं । ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी, आर्त अर्थी चिंतित भोगी । जो जो शरण तुम्हारी आवें, सो सो मनोवांछित फल पावें ।।
“एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ।” – सविता सर्वभूतानां सर्वभावश्चसूयते । लक्ष्य – अद्वैत ।
संसार की विविधता @ ब्रह्माण्ड – ईश्वरीय पसारा । ईश्वरीय अनुशासन में इसे सजाने संवारने (आनंद) में लगा रहा जा सकता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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