Bandh and Mudra
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 18 Dec 2021 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: बन्ध व मुद्रा (प्राणमयकोश)
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
आ॰ योगाचार्य लोकेश चौधरी जी (चित्तौड़गढ़, राजस्थान)
शारीरिक क्रिया (प्राणायाम, बन्ध व मुद्रा आदि) के अभ्यास में हमारे ‘भाव‘ (श्रद्धा विश्वास, सहजता व सजगता) महत्वपूर्ण है । शरीर और चेतना की तालबद्धता स्थापित होना ‘क्रियायोग’ के मूल उद्देश्यों में एक ।
Spritual journey में ‘चिन्तन’ (सोच/ दृष्टिकोण), ‘परतंत्र’ (गुलाम) नहीं प्रत्युत् ‘स्वतंत्र’ होनी चाहिए । ‘अध्यात्म’, जीव (ईश्वरांश) का जन्मसिद्ध अधिकार है; इस पर किसी का copyright ©️ युक्तिसंगत नहीं हो सकता ।
Demonstration:-
मूलबंध
उड्डियान बंध
जालंधर बंध
महाबंध
खेचरी मुद्रा
वज्रोली मुद्रा
‘महामुद्रा + महाबंध + महाबेध‘
विपरीतकर्णी मुद्रा (शीर्षासन)
जिज्ञासा समाधान
‘क्रियायोग‘ अभ्यास का मुख्य उद्देश्य शरीर को स्वस्थ रखना व चेतनात्मक उन्नयन (आत्मसत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण) है ।
‘आसन‘ के अभ्यास में शारीरिक स्थिति को प्राथमिकता दी जाती है । ‘मुद्रा‘ के अभ्यास में शारीरिक स्थिति संग भाव की महत्ता बढ़ जाती है ।
‘कुंभक‘ (अंतः कुंभक व बाह्य कुंभक) के दौरान ‘बंध‘ का अभ्यास किया जाता है ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ लोकेश जी योगा के प्रोफेसर (योगाचार्य) व इनके अनुभव हम सभी हेतु प्रेरणास्रोत हैं ।
‘प्राणाकर्षण प्राणायाम‘ के अभ्यास से ‘पूरक, कुंभक व रेचक’ पर नियंत्रण/ संतुलित रखा जा सकता है । ‘बंध’ का अभ्यास ‘कुंभक’ के दौरान किया जाता है । ‘प्राणायाम, बंध व मुद्रा’ के अभ्यास के दौरान (षट्) चक्रों का ध्यान किया जा सकता है ।
हस्तमुद्राओं के अभ्यास से पंचतत्त्व संतुलन व संबंधित चक्रों पर प्रभाव डाला जा सकता है ।
आत्मसाधक, स्वयं की शारीरिक बनावट व मनोभूमि को ध्यान में रखते हुए क्रियायोग का चुनाव करें एवं उनके अभ्यास के तरीके में स्वयं की सहजता – सजगता महत्वपूर्ण है; प्रगति बनी रहे (आत्मपरिष्कार = आत्मनिरीक्षण + आत्मसुधार + आत्मनिर्माण + आत्मप्रगति) ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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