Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
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Jap Dhyan Tratak Tanmatra-Sadhna

Jap Dhyan Tratak Tanmatra-Sadhna

Jap Dhyan Tratak Tanmatra-Sadhna

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 22 Jan  2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: जप एवं ध्यान का महत्व

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

आ॰ प्रतिभा मूले जी व आ॰ पद्मा हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)

पंचकोश साधना अन्तर्गत मनोमयकोश को परिष्कृत करने के साधन:-
1. जप
2. ध्यान
3. त्राटक
4. तन्मात्रा साधना

हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल चुके हैं (आत्मविस्मृति) । अपने वास्तविक स्वरूप भान हेतु (बोधत्व) हेतु हम अपने मूल स्वरूप का बारंबार स्मरण करते हैं । बारंबार स्मरण की प्रक्रिया ‘जप’ है । @ आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः … श्रोतव्यः  … द्रष्टव्यः ।

विषयासक्त बहिर्मुखी मन को अंतर्मुखी (तन्मे मनः शिवशंकल्पमस्तु @ आत्म-स्थित) बनाने हेतु हमें बारंबार ईश्वरीय गुणों (अहं ईश्वरांशोस्मि । @ सोऽहम् । @ एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति । @ ॐ @ इष्ट देव गुणावली) का “श्रद्धापूर्वक स्मरण, प्रज्ञा युक्त चिंतन – मनन – मंथन व एक निष्ठ विलय विसर्जन (अद्वैत)” हेतु हमें ‘जप व ध्यान’ की समन्वित प्रक्रिया को साधना होता है ।

विषयासक्त मन की शक्तियां इन्द्रियों के विषय @ पंचमहाभूत की पंच तन्मात्राएं:-
1. आकाश का शब्द,
2. अग्नि का रूप,
3. जल का रस,
4. पृथ्वी का गंध 
5. वायु का स्पर्श
गमन में बिखरी रहती हैं फलतः शरीरगत चेतना (जीव) की प्राण शक्ति क्षीण होती रहती है । मन की प्रचंड शक्ति को एकाग्र करने हेतु हमें सर्वप्रथम ‘जप‘ का सहारा लेना होता है फिर जप ही गहनता में प्रवेश करते हुए क्रमशः अगले सोपानों में ‘ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना‘ में परिलक्षित होता है ।
http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.92

गुरूदेव कहते हैं “मनुष्य एक भटका हुआ देवता ।” …. भटका हुआ क्यों? … क्योंकि हम अपने वास्तविक स्वरूप को गरिमा को भूल चुके हैं (आत्मविस्मृति/ भुलक्कड़ी) ।
प्रज्ञावतार गुरूदेव कहते हैं कि “मैं व्यक्ति नहीं विचार हूं ।” विचार क्रांति अभियान (प्रज्ञा अभियान) का उद्देश्य मनुष्य को उसके वास्तविक स्वरूप (आत्मस्वरुप) की जानकारी व उसके गरिमा के अनुरूप आचरण सिखाना है ।
जानकारी को अनुभव के स्तर (बोधत्व) तक ले जाने का पुरूषार्थ, साधक को स्वयं करना होता है । (आत्मसाधक) शिष्य (आत्मवेत्ता) गुरू के शिक्षण-प्रशिक्षण में  श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठापूर्ण साधना से लक्ष्य का वरण करते हैं ।

संत तुलसीदास जी कहते हैं – सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥ आतम अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥1॥
भावार्थ: ‘सोऽहमस्मि’ (वह ब्रह्म मैं हूँ) यह जो अखंड (तैलधारावत कभी न टूटने वाली) वृत्ति है, वही (उस ज्ञानदीपक की) परम प्रचंड दीपशिखा (लौ) है। (इस प्रकार) जब आत्मानुभव के सुख का सुंदर प्रकाश फैलता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो जाता है,॥1॥

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ प्रतिभा दीदी व आ॰ पद्मा हिरास्कर दीदी ग्लोबल स्तर की शिक्षिका व इनके अनुभव युक्त शिक्षण हेतु सस्नेह साभार ।

मन की दो स्थिति:-
1. संतुलित (अनासक्त/ निष्काम मन – सकारात्मक, प्रसन्न व शांत)
2. असंतुलित (विषयासक्त मन)

मनोमयकोश साधना की परिपक्वता तन्मात्रा साधना की प्रवीणता में है । इससे हम संसार की परिवर्तनशीलता (झंझावात, उतार – चढ़ाव, सुख-दुःखात्मक आदि) से एक कुशल खिलाड़ी की तरह कुशलतापूर्वक खेलना सीख जाते हैं और playground (संसार) में अपना best performance देकर निकलते हैं (मुक्ति) ।

साधना में कर्मकाण्ड, बहिर्मुखी मन को एक साधना पद्धति पर एकाग्र करने हेतु है । तदोपरांत निष्काम मन अंतः साधना में प्रवृत्त होता है और शाश्वत सत्य (बोधत्व) तक अनवरत अपनी यात्रा जारी रखता है ।
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।”  शांत चित्त ही आत्म-स्थित हो पाता है ।

कठोपनिषद्

इन्द्रियों की अपेक्षा उनके विषय श्रेष्ठ हैं और विषयों से मन श्रेष्ठ है । मन से बुद्धि श्रेष्ठ है और बुद्धि से भी वह महान आत्मा (महत) श्रेष्ठ है ॥1-III-10॥
महत से परे अव्यक्त (मूलप्रकृति) है और अव्यक्त से भी परे और श्रेष्ठ पुरुष है । पुरुष से परे कुछ नहीं । वह पराकाष्ठा है । वही परम गति है ॥1-III-12॥
बुद्धिमान वाक् को मन में विलीन करे । मन को ज्ञानात्मा अर्थात बुद्धि में लय करे । ज्ञानात्मा बुद्धि को महत् में विलीन करे और महत्तत्व को उस शान्त आत्मा में लीन करे ॥1-III-13॥

हमारा उच्च चेतन ही अद्भुत क्षमताएं http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/April/v2.26

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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