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Trishikhibrahman Upanishad – 5

Trishikhibrahman Upanishad – 5

त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 5

PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Sadhna Satra) –  Online Global Class – 06 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 5 (मंत्र संख्या 83-105)

Broadcasting: आ॰ नितिन जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकूर जी

भावार्थ वाचन: आ॰ मीना शर्मा जी (नई दिल्ली)

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

गायत्री मंजरी

ऐश्वर्यं पुरूषार्थश्च तेज ओजो यशस्तथा । प्राणशक्तया तु वर्धन्ते लोकानामित्यसंशयम् ।।19।। अर्थात् प्राण शक्ति से मनुष्य का ऐश्वर्य, पुरूषार्थ, तेज़, ओज एवं यश निश्चय ही बढ़ते हैं ।

पंचभिस्तु महाप्राणैर्लघुप्राणैश्च पंचभिः । एतैः प्राणमयः कोशो जातो दशभिरूत्तमः ।।20।।  अर्थात् 5 महाप्राण और 5 लघु प्राण, इन दस से उत्तम प्राणमयकोश बना है ।

बन्धेन मुद्रया चैव प्राणायामेन चैव हि । एष प्राणमयः कोशो यतमानं तु सिद्धयति ।।21।। अर्थात् बन्ध, मुद्रा और प्राणायाम द्वारा यत्नशील पुरुष को यह प्राणमयकोश सिद्ध होता है ।

पांच प्राण – पांच शक्ति धारायें http://literature.awgp.org/book/panch_pran_panch_dev/v2.5

प्राण और अपान वायु के संयोग को प्राणायाम कहते हैं । साधारणतया इसमें तीन क्रियायें होती हैं:-
1. पूरक – श्वास को खींचना
2. रेचक – श्वास को बाहर निकालना
3. कुंभक – श्वास को रोके रखना (पूरक उपरांत अंदर रोकना – अंतः कुंभक व रेचक उपरांत बाहर रोकना – बाह्य कुंभक)
Right nostril से श्वास चलने को पिंगला नाड़ी का चलना कहते हैं।
Left nostril से श्वास चलने को इड़ा नाड़ी का चलना कहते हैं तथा
Both nostrils से जब श्वास निकलती है, तो उसको सुषुम्ना नाड़ी का चलना कहते हैं।
सुषुम्ना नाड़ी मूलाधार (गुदा) से प्रारम्भ होकर मेरुदण्ड (रीढ़) के बीचों बीच छिद्र में होती हुई ब्रह्मरन्ध्र तक जाती है ।
सुषुम्ना नाड़ी के बाँयी ओर इड़ा नाड़ी (चन्द्र नाड़ी) left nostril तक चली गई है ।
सुषुम्ना के दायीं ओर पिंगला नाड़ी (सूर्य नाड़ी) right nostril तक चली गई है ।

प्राणायाम
स्थान – स्वच्छ, हवादार, शान्तिमय व पवित्र ।
समय – प्रातः व सायंकाल उपयुक्त । पेट खाली हों (सामान्यतया भोजन के 6 घंटे उपरांत)
आसन (meditational) – सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन आदि ।
जीवनशैली – सादा जीवन उच्च विचार अर्थात् संतुलित आहार विहार ।
त्रिबंध (मूलबंध, उड्डियान बंध व जालंधर बंध) आवश्यकतानुसार लगाया जाए ।
भाव – प्राणों का आकर्षण, संधारण व विनियोग ।
अंतराल – सहज – संयमित (जितना अच्छा लगे – आलस्य प्रमाद व अतिशय रहित)।
अभ्यास – नाड़ी शोधन, अनुलोम विलोम, सूर्यभेदन, भस्रिका, भ्रामरी, उज्जायी प्राणाकर्षण प्राणायाम आदि । चुनाव में अपनी सहजता, सजगता व प्रगति का ध्यान रखें ।
पात्रता – श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा । प्रज्ञा हेतु गुरू अनुशासन/ संरक्षण में शिक्षण प्रशिक्षण ।

ततः क्षीयते प्रकाश वरणम् ।” प्राणायाम से अन्धकार का आवरण क्षीण होता है अर्थात् आत्म-ज्योति का प्रकाश जगता है व अज्ञान का नाश होता है ।

मुद्रायें – महामुद्रा, खेचरी मुद्रा, विपरीतकर्णी मुद्रा, योनि मुद्रा, शांभवी मुद्रा, अगोचरी मुद्रा, भूचरी मुद्रा आदि ।

जिज्ञासा समाधान

क्रियायोग के अभ्यास में सहजता का ध्यान रखा जाए। शारीरिक लोच व संतुलन (flexibility & balance) के हिसाब से body posture बनाया जाए ‌। विशेष अभ्यास मानसिक संतुलन व विस्तार का है । शरीर को स्वस्थ रखते हुए मन की परतों को खोलते व सुव्यवस्थित करते हुए शांत चित्त – आत्मस्थित हो पाता है । तदुपरांत आत्म-परमात्म साक्षात्कार संभव बन पड़ता है @ अध्यात्म रस – गूंगे की गुड़ की मिठास ।

रब/ इष्ट/ अराध्य केवल व्यक्तित्व विशेष में ही नहीं प्रत्युत् सर्वत्र साक्षीभूत ब्रह्म को देखने में है ।

प्रारंभ में प्राणायाम में पसीना आना – cleaning,
शरीर की कंपकंपी  – प्राणों का संचरण,
शरीर का उर्ध्व उठना – चेतनात्मक उन्नयन (divinity) ।

शरीर के टूट फूट रोगादि में आध्यात्मिक healing process के साथ जहां medical intervention की जरूरत हो, वहां आवश्यक रूप से लें । रामायण में लक्ष्मण जी के अचेत होने के उपरांत उनके स्वस्थ सचेत होने में वैद्यराज सुषेण (doctor) एवं संजीवनी बूटी (medicine ) की भूमिका अहम रही ।
महाभारत में बर्बरीक केवल सिर के साथ महाभारत के मूल दृष्टांत (मरने वाले श्रीकृष्ण .. मारने वाले श्रीकृष्ण … सर्वत्र साक्षीभूत ब्रह्म दर्शन) ।
अष्टावक्र गीता के रचनाकार अष्टावक्र जी – 8 अंगों से टेढ़े ।
शारीरिक विकलांगता से संघर्ष बढ़ सकता है किन्तु मानसिक संकीर्णता प्रगति पथ को अवरूद्ध कर देती है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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