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Trishikhibrahman Upanishad – 7

Trishikhibrahman Upanishad – 7

त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 7

PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Sadhna Satra) –  Online Global Class – 08 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद् – 7 (मंत्र संख्या 129-147)

Broadcasting: आ॰ नितिन जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकूर जी

भावार्थ वाचन: आ॰ ऊषा शुक्ला जी (वृंदावन, उ॰ प्र॰)

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

मनसा परमात्मानं ध्यात्वा तद्रुपतामियात् । अर्थात् मन के द्वारा परम पिता परमात्मा का चिन्तन करते हुए तदनुरूप बनने का प्रयत्न करते रहना चाहिए ।
समर्पण – चिंतन मनन मंथन – विलय विसर्जन ।
उपासना (approached) – साधना (digested) – अराधना (realised)
रचाना – पचाना – बसाना अर्थात् जीना ।
चिंतन – चरित्र – व्यवहार ।
ज्ञानयोग – कर्मयोग – भक्तियोग ।
गायत्री – सावित्री – सरस्वती ।

प्रत्याहार साधना का स्वरूप और उद्देश्य – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1986/June/v2.14

शाण्डिल्योपनिषद्  – 5 प्रकार के प्रत्याहार:-
1. विषयेषु विचरतामिन्द्रियाणां बलादाहरणं प्रत्याहारः । अर्थात् विषयों में विचरण करती हुई इन्द्रियों को बलपूर्वक अपनी ओर आकृष्ट कर लेने को प्रत्याहार कहते हैं ।
2. यद्यत्पश्यति तत्सर्वमात्मेति प्रत्याहारः । अर्थात् जो जो दिखाई देता है, वह सब आत्मा है, ऐसा समझना चाहिए यही प्रत्याहार है ।
3. नित्यविहितकर्मफलत्यागः प्रत्याहार: । अर्थात् नित्य किये गए कर्मों के फल (आसक्ति) का परित्याग ही प्रत्याहार है ।
4. सर्वविषयपराङ्मुखत्वं प्रत्याहारः । अर्थात् समस्त प्रकार के विषय – वासनाओं से रहित होना, यह प्रत्याहार है ।
5. अष्टादशसु मर्मस्थानेषु क्रमाद्धरणं प्रत्याहारः । अर्थात् 18 मर्म-स्थलों में क्रमशः धारणा करना, यह प्रत्याहार है ।

पंच भौतिक शरीर के 18 मर्म स्थल:-
1. पैर का अँगूठा
2. एड़ी
3. जाँघ का मध्य भाग
4. उरू का मध्य भाग
5. गुदा का मूलभाग
6. हृदय
7. उपस्थ
8. देह का मध्य भाग नाभि
19. कण्ठ
10. कोहनी
11. तालू मूल
12. नासिका का मूल
13. आँखों का मण्डल
14. भौंहों का मध्य
15. ललाट
16. मस्तक का मूल भाग
17. घूटने का मूल भाग
18. हाथों का मूल भाग

आत्मानुभूति योग – http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.105

कुण्डलिनी जागरण और चक्र वेधन – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/June/v2.6

कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा – http://literature.awgp.org/book/kundlini_jagran_ki_dhyan_sadhnayen/v1.44

जिज्ञासा समाधान

सार्थक व प्रभावी उपदेश (motivation) वह है जो केवल वाणी से ही नहीं प्रत्युत् स्व आचरण से दिया जाए । @ Action speaks louder than speech.
आत्मीयता (प्रेम) संप्रेषण का सर्वश्रेष्ठ माध्यम अर्थात् सर्वोत्तम भाषण है । मां का पुत्र के प्रति आत्मीयता केवल दुलार तक ही सीमित नहीं प्रत्युत् शिक्षण प्रशिक्षण अनुशासन तक भी है ।

चक्र (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत व विशुद्धि) में पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश) की प्रधानता अनुसार उस शक्ति केन्द्रों में तत्त्व चिह्नित हैं । बांकी पंचीकरण प्रक्रिया अनुसार संपूर्ण शरीर में हैं ।
“तारा बिकल देखि रघुराया । दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया ॥ छिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित अति अधम सरीरा॥”

साक्षी चैतन्य भावेण – उद्विग्नता शांत । ग्रन्थि भेदन से साधक त्रिगुणातीत ।

दस प्राण – दस महाविद्याएं

पदार्थ जगत की इन्द्रियजन्य अनुभूतियों (पंच तन्मात्राओं – शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श) से आसक्ति  (वासना, तृष्णा व अहंता) @ पदार्थ जगत का आत्मसत्ता पर नियंत्रण ‘भुलक्कड़ी’ (आत्मविस्मृति – मैं केवल शरीर हूं ।) का कारण है । आत्मसत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण “बोधत्व” (आत्मस्थिति – मैं आत्मा हूं, शरीर मेरा वाहन है)।

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते । वासुदेव: सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभ: ।। गीता 7/19 ।। भावार्थ : अनेक जन्मों के अंत में जो ज्ञानवान मेरी शरण आकर ‘सब कुछ वासुदेव ही है’ इस प्रकार मुझको भजता है वह महात्मा अत्यंत दुर्लभ है । @ एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति । @ अद्वैत ।
बोधत्व उपरांत भेद दृष्टिकोण नहीं रहता @ अभेद दर्शनं ज्ञानं ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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