Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Chakshushopanishad

Chakshushopanishad

चाक्षुषोपनिषद्

PANCHKOSH SADHNA (Gupt Navratri Sadhna Satra) –  Online Global Class – 10 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

SUBJECT:  चाक्षुषोपनिषद्

Broadcasting: आ॰ नितिन जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकूर जी

भावार्थ वाचन: आ॰ नीलम जी (गुड़गांव, हरियाणा)

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

गायत्री का देवता ‘सविता’ – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1961/June/v2.7

गायत्री का शक्ति स्रोत – सविता देवता – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1967/September/v2.26

अध्यात्मिक दृष्टिकोण से नेत्र रोग अर्थात् वासना, तृष्णा व अहंता पूर्ण मलिन/ संकीर्ण/ अपरिष्कृत दृष्टिकोण @ परदोष दर्शन @ अज्ञानता रूपी अन्धकार में नेत्रहीन ।

स्वस्थ नेत्र अर्थात् ज्ञान चक्षु (प्रज्ञा) जाग्रत @ परिष्कृत दृष्टिकोण – मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत् । आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति सः पण्डितः ।।

चाक्षुषी विद्या से प्रज्ञा जागरण (प्रज्ञानं ब्रह्म) । इस विद्या के:-
मन्त्र-द्रष्टा – ऋषि अहिर्बुधन्य
छन्द – गायत्री
देवता – सूर्य (सविता) भगवान ।

सूर्य गायत्री मंत्र – ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

अन्धा न होना अर्थात् अज्ञान रूपी अन्धकार से दूर @ असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अमृतं गमय ।

यजुर्वेद संहिता – वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि  सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुष्वा कामधुक्षः॥१.३॥

सविता साधक/ सूर्योपासक को नेत्र रोग (मलिन/ संकीर्ण/ अपरिष्कृत दृष्टिकोण) नहीं होते हैं ।

पाठ करना अर्थात् अराध्य के गुण धर्म को स्वयं में रचाना (approached), पचाना (digested) व बसाना (realised) = जीना (एकत्व/ सायुज्यता/ तादात्म्य) ।‌ मंत्र क्रमशः ‘चिंतन, चरित्र व व्यवहार’ में अवतरित हों @ ‘ज्ञान, कर्म व भक्ति’ @ “theory practical & application”.

जिज्ञासा समाधान

सौजन्य युक्त पराक्रम । आत्मरक्षा प्राणिमात्र का स्वाभाविक धर्म है । Survival of the fittest.
स्वस्थ कौन (fittest) ? जो शारीरिक (स्थूल शरीर), मानसिक (सुक्ष्म शरीर) व भावनात्मक (कारण शरीर) रूपेण स्वस्थ हों । स्थूल शरीर – कर्मयोग, सुक्ष्म शरीर – ज्ञानयोग व कारण शरीर – भक्तियोग से स्वस्थ शरीर, शांत – संतुलित मनःस्थिति व उदार भक्ति भाव के धारक @ ओजस्वी, तेजस्वी व वर्चस्वी बनते हैं ।

प्रतिरोध अनिवार्य रूप से आवश्यक – http://literature.awgp.org/book/anachar_se_kaise_nipate/v2.5

अपने ब्राह्मण एवं संत को जिंदा रखें –  http://literature.awgp.org/book/apane_brahman_evan_sant_ko_jinda_keejie/v2

सूर्य त्राटक में सूर्य के अध्यात्मिक शक्तियों का आकर्षण, संदोहण व विनियोग किया जाता है । गायत्री महामंत्र सविता संदोहण का मंत्र है ।

सूर्य (सविता देवता) की शक्ति स्थूल शरीर में ओजस्, सुक्ष्म शरीर में तेजस् व कारण शरीर में वर्चस् रूपेण संस्थिता । http://literature.awgp.org/book/kundlini_jagran_ki_dhyan_sadhnayen/v1.44

गायत्री की 24 शक्तियां –  http://literature.awgp.org/book/gayatri_ki_24_shikshaye/v2.1

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment