Paramhans Upanishad
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 27 Feb 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: परमहंसोपनिषद्
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
भावार्थ वाचन: आ॰ रीता सिंह जी (दरभंगा, बिहार)
परमहंसोपनिषद् – http://literature.awgp.org/book/upanishad_bahma_vidhya_khand/v2.52
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
इस उपनिषद् में 4 मंत्र हैं । परमहंस एक degree नहीं प्रत्युत् चेतना की वह परिष्कृत अवस्था है जिसमें वह अद्वैत भाव @ आत्मभाव @ अहैतुक प्रेम @ ‘आत्मीयता = उत्कृष्ट चिंतन + आदर्श चरित्र + शालीन भाव’ में जीता है ।
“मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति सः पण्डितः ।”
“विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ।।”
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च । अहमेवाक्षयः कालो धाताऽहं विश्वतोमुखः ।।10.33।। भावार्थ: मैं अक्षरों में अकार और समासों में द्वन्द्व समास हूँ; मैं अक्षय काल और विश्वतोमुख धाता हूँ ।।
हमारा सौभाग्य, डॉ॰ रीता सिंह, double Phd, न्यास योग गुरू, आज हमारे बीच हैं । आत्मिकता में इनकी अच्छी पकड़ – हम सभी के लिए आदर्श ।
सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वाद: प्रवदतामहम् ।।32।। भावार्थ: हे अर्जुन ! सृष्टियों का आदि और अन्त तथा मध्य भी मैं ही हूँ । मैं विद्याओं में अध्यात्म विद्या अर्थात् ब्रह्म विद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्त्व निर्णय के लिये किया जाने वाला वाद हूँ ।।
हमें आत्म विद्या (ब्रह्म विद्या) पर चर्चा परिचर्चा करती रहनी चाहिए । पूर्व में ऋषियों के confrence लगते थे । राजा जन भी ऐसे confrence आयोजित करवाते । जनमानस सत्संग से आत्म विद्या/ ब्रह्म विद्या का लाभ लेते अर्थात् जीवन में उतारने की विधा सीखते ।
आत्मसाधना पथ पर हमें धीरे धीरे सारे सहारों (बैशाखियों /आसक्ति) को छोड़ना होता है अर्थात् त्रिगुणातीतं (त्रिगुण की साम्यावस्था) ।
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला । समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ।।53।। भावार्थ: भाँति – भाँति के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जायेगी, तब तू योग को प्राप्त हो जायेगा अर्थात् तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जायेगा ।।
परमहंस स्थिति – अंतःकरण अद्वैत भाव (उद्विग्नता – शांत) । आचरण व्यवहार – योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय । सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ।।2.48।।
जिज्ञासा समाधान
अवधूत व परमहंस का अंतःकरण एक ही स्तर का होता है । वो अनासक्त (त्रिगुणातीत) होते हैं ।
परमहंस, ज्ञान की चरमावस्था/ परिपक्वता (शाश्वत – आत्मा वाऽरे ज्ञातव्यः …. श्रोतव्यः … द्रष्टव्यः) पर होते हैं । भाव (उद्देश्य) की महत्ता, क्रिया (विधि विधान) से होती है अर्थात् आत्मसत्ता का पदार्थ सत्ता पर नियंत्रण रहता है ।
जैसा बोओगे – वैसा काटोगे @ गहणाकर्मणोगति । कर्म की गति गहन है । कर्मफल की पहुंच शरीर (आत्मा के आवरण – पंचकोश) तक है, आत्मा तक नहीं ।
ऋषियों के conference में देवर्षि नारद द्वारा भक्ति सूत्र – “गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षण वर्धमानमविच्छिन्नं सूक्ष्मतरमनुभवरूपम् ।” अर्थात यह प्रेम गुणरहित है, कामनारहित है, प्रतिक्षण बढ़़ता रहता है, विच्छेदरहित है, सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर है और अनुभवरूप है।
स्वाध्याय = अध्ययन + मनन चिंतन + गुरू कृपा (मार्गदर्शन) ।
मन की मलीनता नष्ट होने पर (अंतः करण परिष्कृत – विशुद्ध चित्त से) निर्वाण और ब्रह्म दर्शन का लाभ मिलता है।
जीवनोद्देश्य –
1. आत्मबोध (मैं कौन हूं ?)
2. तत्त्वबोध (धरा को स्वर्ग बनाना – सदुपयोग का माध्यम बनना, दुरूपयोग से बचना)
जीवनोद्देश्य में हम ईश्वरांश, त्रिपदा गायत्री = ज्ञान + कर्म + भक्ति @ ‘theory + practical + application’ @ ‘approached + digested + realised’ के process से गुजरते हैं । विलयन विसर्जन @ सायुज्यता उपरांत हम तीनों की साम्यावस्था/ परिपक्वता – एकत्व @ अद्वैत भाव में जीते हैं ।
हम receiver बनें (तत्सवितुर्वरेण्यं) ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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