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Akshamalikopnishad

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अक्षमालिकोपनिषद्

PANCHKOSH SADHNA –  Online Global Class – 06 March 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  अक्षमालिकोपनिषद्

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

भावार्थ वाचन: आ॰ पद्मा हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)

अक्षमालिकोपनिषद् – http://literature.awgp.org/book/upanishad_saadhana_khand/v1.9

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

देवता किसी की प्रतिकृति नहीं प्रत्युत् विशिष्ट गुण या शक्ति के प्रतीक हैं और वह शक्तियाँ सूक्ष्म जगत् में  क्रियाशील रहते हैं; जिनसे हम मंत्रों द्वारा संपर्क स्थापित कर कर सकते हैं ।

मंत्र शक्ति के चमत्कारी परिणाम – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1978/April/v2.20

मंत्र में शक्ति कहाँ से और कैसे आती है ? – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1976/May/v2.11

गायत्री की 2 उच्चस्तरीय साधनाएं :-
1. गायत्री पंचकोशी साधना
2. कुण्डलिनी जागरण

कुण्डलिनी जागरण में अक्षमालिकोपनिषद् के मंत्रों से ध्यानात्मक आयाम दिया जा सकता है:-
1. मूलाधार चक्र, तत्त्व – पृथ्वी, बीज मंत्र – ‘लं‘ ~ हे लकार! तुम विश्व का पोषण करने वाले एवं तेजस्वी हो, इस चौवालीसवें अक्ष में प्रतिष्ठित हो जाओ ।
2. स्वाधिष्ठान चक्र, तत्त्व – जल, बीज मंत्र – ‘वं‘ ~
3. मणिपुर चक्र, तत्त्व – अग्नि, बीज मंत्र – ‘रं‘ ~ हे रकार! तुम दाह (जलन, तपन) उत्पन्न करने वाले एवं विकृत हो, इस तैंतालीसवें अक्ष में स्थित हो जाओ ।
4. अनाहत चक्र, तत्त्व – वायु, बीज मंत्र – ‘यं‘ ~ हे यकार! तुम सर्वत्र संव्याप्त एवं परम पवित्र हो, इस बयालीसवें अक्ष में प्रतिष्ठित हो जाओ ।
5. विशुद्धि चक्र, तत्त्व – आकाश, बीज मंत्र – ‘हं‘ ~ हे हकार! तुम समस्त वांग्मय स्वरूप वाले निर्मल हो, इस उनचासवें अक्ष में प्रतिष्ठित हो जाओ ।

जिज्ञासा समाधान

कार्तिकेय जी के षट्मुखी प्रतीक षट् चक्रों के जागरण से है । मूलाधार व सहस्रार अर्थात् शिव व शक्ति के मिलन से देव सेनापति शक्ति कार्तिकेय जाग्रत हुए ।

नियम तब तक के लिए होते हैं जब तक वो आचरण स्वभाव में अवतरित ना हों । परिपक्वता उपरांत विवेक दृष्टिकोण (प्रज्ञानं ब्रह्म ।) से स्वतः आत्म – परमात्म शक्ति नियंत्रित व संचालित करती हैं ।

त्रिनचिकेता अग्नि अर्थात् तीन शरीर की अग्नि:
1. स्थूल शरीर – कर्मयोग (साधना – digested/ practical) – आदर्श चरित्र,
2. सुक्ष्म शरीर – ज्ञानयोग (उपासना – approached) – उत्कृष्ट चिंतन,
3. कारण शरीर – भक्तियोग (अराधना – realised/ application) – शालीन व्यवहार ।

त्रिनचिकेता अग्नि ही पंचाग्नि विद्या:-
1. अन्नमयकोश – प्राणाग्नि
2. प्राणमयकोश – जीवाग्नि
3. मनोमयकोश – योगाग्नि


4. विज्ञानमयकोश – आत्माग्नि
5. आनंदमयकोश – ब्रह्माग्नि

स्वर से ‘अक्षर’ की अनुभूति (शब्द ब्रह्म नाद ब्रह्म) – http://literature.awgp.org/book/Shabd_Brahm_Nad_Brahm/v7.1

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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