Scientific and Spritual Concept of Panchkosh Jagran Meditation
PANCHKOSH SADHNA – Navratri Online Global Class – 08 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: पंचकोश साधना का वैज्ञानिक अध्यात्मिक प्रतिपादन व ध्यान धारणा पद्धति
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)
पंचकोश स्थूल नहीं है प्रत्युत् पंचकोश सूक्ष्म हैं; सूक्ष्म अर्थात्-अप्रत्यक्ष-अदृश्य । यह चेतनात्मक आवरण (आत्मा के 5 आवरण) हैं । ‘जीव’ के स्थूल शरीर (दृश्यमान) स्वरूप के मरणोपरांत भी आत्म चेतना पंच आवरण संग (जीवात्मा) अन्य योनियों में गमन करती हैं ।
वासना, तृष्णा व अहंता वश (लोभ, मोह व अहंकार से) पंचकोश विकृत/ कालिमा युक्त हो जाता है जिससे आत्म-प्रकाश तक पहुंच नहीं बन पाती है । फलतः ‘आत्मविस्मृति’ (भुलक्कड़ी) बन जाती है ।
पंचकोश जागरण अर्थात् पंचकोश उज्जवल (परिष्करण) की साधना । जिससे आत्म-प्रकाश में आत्मसाधक ‘आत्मस्थित’ हो जाते हैं और अथाह peace & bliss (मोक्ष) के धारक होते हैं । इसमें युगानुकुल कुल 19 ‘क्रियायोग’ हैं । जिसके सरल सहज सजग सुबोध श्रद्धा पूर्वक नियमित अभ्यास से लक्ष्यभेद किया जा सकता है
पंचकोश:-
1. अन्नमयकोश ( Physical Body) – इन्द्रिय चेतना @ प्राणाग्नि ।
2. प्राणमयकोश (Etheric Body) – जीवनी शक्ति @ जीवाग्नि ।
3. मनोमयकोश (Astral Body) – विचार बुद्धि @ योगाग्नि ।
4. विज्ञानमयकोश (Cosmic Body) – अचेतन सत्ता व भाव प्रवाह @ आत्माग्नि ।
5. आनंदमयकोश (Causal Body) – आत्मबोध – आत्मजागृति @ ब्रह्माग्नि ।
प्रत्यक्ष शरीर में पंचकोशों की उपस्थिति (अनुभवगम्य) :-
1. अन्नमयकोश – चमत्कारी हारमोन ग्रन्थियों,
2. प्राणमयकोश – जैव विद्युत संस्थान,
3. मनोमयकोश – जैव चुम्बकत्व,
4. विज्ञानमयकोश – न्यूरोह्यूमरल रस स्रावों (स्नायु रसायन) एवं
5. आनन्दमयकोश – मस्तिष्क मध्य अवस्थिति रेटिकुलर ऐक्टिवेटिंग सिस्टम रूपी विद्युत् स्फुल्लिंगों के फव्वारे से संगति बिठायी जाती है।
प्राणियों के स्तर पर पंचकोश:-
1. कृमि कीटक की चेतना इन्द्रिय प्रेरणा के इर्द गिर्द @ स्थूल शरीर सर्वस्व @ चेतना काया की परिधि तक सीमित- अन्नमय ।
2. सामान्य पशु पक्षी (प्राणी) – प्राणमय ।
3. मननात् मनुष्यः – मनोमय ।
4. महामानव – विज्ञानमय ।
5. सत्यं शिवम् सुंदरम् @ मोक्ष @ मुक्ति @ अद्वैत – आनंदमय ।
http://literature.awgp.org/book/Gayatree_kee_panchakoshee_sadhana/v7.16
‘मानवीय चेतना‘ के धारक वे कहे जा सकते हैं जिनकी चेतना मनोमय व मनोमय से उपर हो ।
Demo: पंचकोश जागरण ध्यान धारणा – सरल सुपाच्य सुबोध शब्दावली हेतु please refer video uploaded to YouTube.
http://literature.awgp.org/book/aasan_pranayam_bandh_mudra_panchakosh_dhyan/v1.10
जिज्ञासा समाधान
‘ध्यान‘ में स्व चेतना अपनी परिधि के विस्तार (आयाम) अनुरूप लाभ देती हैं । अतः ध्यान के पूर्व व ध्यानोपरांत शांत चित्त स्वाध्याय को प्राथमिकता दी जा सकती हैं ।
मानव शरीर को पाना भौतिक (दृश्यमान) उपलब्धि (विकास क्रम) है । मानवीय गरिमा के अनुरूप मानवीय अंतःकरण के धारक अर्थात् गुण, कर्म व स्वभाव (चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी) अध्यात्मिक उपलब्धि है ।
मानव शरीर पाना पुरुषार्थ नहीं प्रत्युत् मानवीय गरिमा के अनुरूप अंतःकरण को धारण करना पुरूषार्थ है। व्यक्तित्व (गुण + कर्म + स्वभाव) परिष्कार की साधना असली महासमर है; जिसमें विजेता बनना होता है । @ आत्मविजेता ही विश्वविजेता होते हैं ।
“आकांक्षा – विचारणा – क्रिया” । जो जैसा सोचता है वैसा करता है और जैसा करता है वैसा ही बन जाता है ।
भुः भुवः स्वः लोक उपरांत स्व परिधि के विस्तरण प्रारंभ:-
महः लोक (अनाहत चक्र) – मैं शरीर नहीं आत्मा हूं (अहंता शांत – आत्मभाव जाग्रत) ।
जनः लोक (विशुद्धि चक्र) – वसुधैव कुटुंबकम् (समर्पण) ।
तपः लोक (आज्ञा चक्र) – विलयन ।
सत्यं लोक (सहस्रार चक्र) – विसर्जन @ अद्वैत ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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