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Kundalini Jagran-1

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कुण्डलिनी जागरण साधना – 1

PANCHKOSH SADHNA –  Navratri Online Global Class – 09 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  कुण्डलिनी जागरण साधना – 1

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (सासाराम, बिहार)

Chronic diseases के cure में समय लगता है । 

सामान्य प्राणी (पशु पक्षी) स्तर की चेतना का उन्नयन मनोमय कोश से @ मननात् मनुष्यः (मानवः):-
मनोमयकोश (Astral Body) – Intelligent Quotient (IQ)
विज्ञानमयकोश (Cosmic Body) – Emotional Quotient (EQ)
आनंदमयकोश (Cosmic Body) – Spritual Quotient (SQ)
IQ + EQ = SQ

कुण्ड में दबी अग्नि – कुण्डलिनी । जागरण – विस्तरण । संकीर्णगत स्वार्थ (विषयासक्ति) का विस्तार परमार्थ (अनासक्त @ निःस्वार्थ प्रेम @ आत्मीयता) में ।
स्व चेतना को काया की परिधि (इन्द्रिय चेतना) से उन्नयन कर  ‘क्रियाशक्ति’ , ‘इच्छाशक्ति’ , ‘भाव संवेदना’ व ‘आत्मबोध/आत्मजागृति’  हेतु कुण्डलिनी जागरण साधना ।
गायत्री की दो उच्चस्तरीय साधनाएं:-
1. पंचकोशी साधना
2. कुण्डलिनी जागरण साधना

प्राणाकर्षण प्राणायाम:-
1. क्रिया – deep breathing (से शारीरिक लाभ)
2. भावना – संकल्प/ विचार शक्ति (ज्ञान + ऊर्जा) से महाप्राण का आकर्षण, संधारण व विनियोग (से आत्मिक लाभ) ।
क्रिया + भावना = क्रियायोग ।”

ज्ञान‘ (गायत्री) से सहस्रार चक्र (शिव) जागरण व ‘ऊर्जा‘ (सावित्री) से मूलाधार चक्र (शक्ति) जागरण । शिव व शक्ति के मिलन (कुण्डलिनी जागरण – षट्चक्र बेधन) से बात बनती है । 

वेद भगवान कहते हैं – अष्ट चक्रा नव द्वारा देवानां पूरयोध्या । तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः ।। भावार्थ: आठ चक्रों और नौ द्वारा वाली यह वह पुरी है, जिसे कोई जीत नहीं सकता । इसमें एक चमकते हुए प्रकाश में परमात्मा के प्रकाश से आवृत वह आत्मा बैठा रहता है, जो अपने आप में सुख स्वरूप है।
नौ द्वार = 2 आँखें + 2 कान + 2 नथुने + 1 मुख + 2 मल व मूत्र त्यागने के द्वार @  अयोध्या नगरी (मानव शरीर) । 
आठ चक्र:-
1. मूलाधार चक्र – रीढ़ की हड्डी के नीचे गुदा के पास,
2. स्वाधिष्ठान चक्र – मूलाधार से चार अंगुल ऊपर,
3. मणिपूर चक्र – ठीक नाभि स्थान ,
4. अनाहत चक्र – हृदय स्थान,
5. विशुद्धि चक्र – कण्ठ मूल,
6. लोलक चक्र – तालु मध्य,
7. आज्ञा चक्र – भ्रु मध्य,
8. सहस्रार चक्र – मस्तिष्क मध्य ।
दस इन्द्रियां (दस सेवक) = 5 ज्ञानेन्द्रियां + 5 कर्मेंद्रियां ।
पांच प्राण – अयोध्या नगरी (मानव शरीर) का रक्षक ।
आत्मा – सोऽहं ।

Demo: कुण्डलिनी जागरण ध्यान धारणा – सरल सहज सुपाच्य सुबोध शब्दावली हेतु please refer to the recording or the video uploaded on YouTube.

सावित्री कुण्डलिनी तंत्र – http://literature.awgp.org/book/kundlini_jagran_ki_dhyan_sadhnayen/v1.44.

जिज्ञासा समाधान

स्थूल शरीर का सूर्य – नाभि (मणिपुर चक्र) । सूर्य चक्र को हम नाभि कंद (मूलाधार + स्वाधिष्ठान + मणिपुर चक्र) के रूप में समझ सकते हैं ।

क्रिया में भावना का समावेश कुछ यूं हो कि कामना का रूपांतरण भावना में हो जाए, क्षुद्रता का रूपांतरण महानता में हो जाए ।

नाद साधना – हर एक शब्द (अनुकूल अथवा प्रतिकूल) में आदर्शों (ॐ) का श्रवण ।
बिन्दु साधना – यत्र तत्र सर्वत्र आत्म परमात्म दर्शन । 
कला साधना – सज्जनता, सहृदयता, सहकारिता @ due respect – ससम्मान साभार कृतज्ञता ।
निःस्वार्थ प्रेम = नाद साधना + बिन्दु साधना + कला साधना ।” निःस्वार्थ प्रेम ही अथाह peace and bliss का स्थायी स्रोत है ।
प्रतिकूलता में अनुकूलता ढूंढने वाले आनंदमयकोश के साधक ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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