What am I ? – 1
Aatmanusandhan – Online Global Class – 24 April 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: मैं क्या हूं ? (प्रथम व द्वितीय अध्याय)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
मैं क्या हूं ? – http://literature.awgp.org/book/Main_Kya_Hun/v4.1
‘कुसंस्कार‘ बहुत हठीले होते हैं । इन्हें गलाने हटाने के लिए बल, प्राण विद्युत, संकल्प शक्ति, आत्मबल (श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा) की आवश्यकता होती है । पंचकोश साधना @ अनावरण @ जागरण से हमें वह ‘आत्मशक्ति’ मिलती है जिससे हम ‘आत्मस्थित’ हो आगे की यात्रा ‘अद्वैत’ पथ पर अग्रसर होते होते हैं ।
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूँ स्वाम् ॥I1-II-23॥ अर्थात् यह आत्मा न प्रवचन से, न बुद्धि से और न बहुत सुनने से ही प्राप्त हो सकता है । जिसको यह स्वीकार कर लेता है उसके द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है । उसके प्रति वह आत्मा अपने स्वरुप को प्रकट कर देता है ॥ (कठोपनिषद)
पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयम्भूस्तस्मात्पराङ्पश्यति नान्तरात्मन् । कश्चिद्धीरः प्रत्यगात्मानमैक्षदावृत्तचक्षुरमृतत्वमिच्छन् ॥2-I-1॥ अर्थात् स्वयम्भू परमात्मा ने इन्द्रियों को बहिर्मुख ही बनाया है । इसलिए मनुष्य बाहर की ओर ही देखता है । अन्तरात्मा को नहीं देखता । कोई धीर पुरुष ही, अमृतत्व की इच्छा करता हुआ, चक्षु आदि इन्द्रियों का संयम करके उस प्रत्यगआत्मा को देखता है ॥ (कठोपनिषद)
ज्ञान का एक ही स्वरूप – आत्मबोध । चाणक्य नीति दर्पण के चतुर्थ अध्याय के 18 वें श्लोक में सफलता @ स्वाध्याय का सूत्र – कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमोः । कस्याहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥
सर्वसारोपनिषद् का रहस्य:-
नाहं देहो जन्ममृत्यु कुतो मे नाहं प्राणः क्षुत्पिपासे कुतो मे । नाहं चेतः शोकमोहौ कुतो मे नाहं कर्ता बन्धमोक्षौ कुतो म इत्युपनिषत् ॥21॥ अर्थात्
मैं शरीर नहीं हूँ, तो फिर मेरा जन्म-मरण कैसे ?
मैं प्राण नहीं हूँ, फिर मुझे भूख – प्यास कैसी ?
मैं चित्त नहीं हूँ, तो मुझे शोक-मोह कैसे ?
मैं कर्ता नहीं हूँ, फिर मेरी बन्ध – मोक्ष कैसे ?
जब ‘आत्मज्ञान‘ (आत्मबोध) हो जाता है तब पदार्थों के रूप को ठीक से देखकर उसका उचित उपयोग (सदुपयोग) कर सकता है (तत्त्वबोध) ।
स्थूल शरीर = अन्नमयकोश (matter) + प्राणमयकोश (energy) ।
आत्मानँ रथितं विद्धि शरीरँ रथमेव तु । बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ॥1-III-3॥ अर्थात् आत्मा को रथी जानो और शरीर को रथ । बुद्धि को सारथी जानो और इस मन को लगाम ॥ (कठोपनिषद)
शरीर को आत्मा का मंदिर समझकर आत्म-संयम व नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे ।
मंत्र :-
मैं प्रतिभा व शक्ति का केन्द्र हूं ।
मैं विचार व शक्ति का केन्द्र हूं ।
मेरा संसार चारों ओर घूम रहा है ।
मैं शरीर से भिन्न हूं ।
मैं अविनाशी हूं मेरा नाश नहीं हो सकता ।
मैं अखंड हूं मेरी क्षति नहीं हो सकती ।
Demonstration – आत्मानुभूति योग (प्रथम चरण)
जिज्ञासा समाधान
बन्धन भाव (आत्मविस्मृति/ भुलक्कड़ी) – जीव, मुक्ति/ मोक्ष भाव (आत्मबोध) – शिव । जीवः शिवः शिवो जीवः स जीवः केवलः शिवः । तुषेण बद्धो व्रीहिः स्या त्तुषाभावेन तण्डुलः॥
संसार की परिवर्तनशीलता (गतिशीलता) – मेरा संसार चारों ओर घूम रहा है @ तत्त्वबोध ।
स्थूल शरीर = matter + energy (क्रिया), सुक्ष्म शरीर = thoughts (विचारणा) व कारण शरीर = emotions (आकांक्षा) । तीनों शरीर, ‘आत्मा’ के मंदिर/ रथ/ आवरण/ पंचकोश हैं । आत्मा इनसे परे है ।
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु:
न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
‘आत्मा‘ विचारों (संकल्प – विकल्प) से परे है –
न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष:
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
प्राण, आत्मा के जिस आवरण (पंचकोश) में रमण करती हैं, तदनुरूप जीव व्यवहार करते हैं ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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