What am I ? – 2
Aatmanusandhan – Online Global Class – 01 May 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: मैं क्या हूं ? (तृतीय अध्याय)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
गुरूदेव ने आत्म – परमात्म साक्षात्कार के बाद सर्वप्रथम पुस्तक लिखी – मैं क्या हूं ? मानव शरीर के लिए कहा गया है – “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे ।” मानव जीवन का प्रथम उद्देश्य – मैं क्या हूं ? (What am I ?)
मैं क्या हूं ? पुस्तक के प्रथम व द्वितीय अध्याय में ‘आत्मा’ (गायत्री) के 5 आवरण में अन्नमयकोश (इन्द्रिय शक्ति) व प्राणमयकोश (जीवनी शक्ति) अर्थात् ‘स्थूल शरीर’ का साक्षात्कार कराया गया ।
अन्नमयकोश की आत्मा प्राणमयकोश
प्राणमयकोश की आत्मा मनोमयकोश
मनोमयकोश की आत्मा विज्ञानमयकोश
विज्ञानमयकोश की आत्मा आनन्दमयकोश
आनन्दमयकोश कोश की आत्मा – आत्मा
आत्मा की आत्मा – परमात्मा (अद्वैत) ।
मैं क्या हूं ? – तृतीय अध्याय में ‘सुक्ष्म शरीर’ का साक्षात्कार की विधा:-
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥३-४२॥ भावार्थ: शरीर से इन्द्रियां परे (सूक्ष्म) हैं । इन्द्रियों से परे मन है मन से परे बुद्धि है और बुद्धि से परे आत्मा है ।
शरीर और आत्मा के बीच की चेतना ‘मन’:-
1. प्रवृत्त मानस/ गुप्त व सुप्त मानस (अचेतन मन @ subconscious mind) – यह पशु पक्षी व मनुष्यों समान रूप से पाया जाता है । शरीर के स्वाभाविक जीवन को बनाए रखता है । जन्म जन्मान्तरों के संस्कार (स्वभाव/ आदतें) store रहते हैं । इन्द्रिय भोग, घमंड, क्रोध, भूख, प्यास, काम भाव, निद्रा आदि प्रवृत्त मानस के रूप ।
2. प्रबुद्ध मानस/ जाग्रत मन (चेतन मन @ conscious mind) – सोचना, विचारना, विवेचन, तुलनात्मक अध्ययन, कल्पना, तर्क तथा निर्णय करना आदि है ।
3. अध्यात्म मानस (सुपर चेतन मन @ super conscious mind) – आत्मीयता @ प्रेम, सहानुभूति, दया, करूणा, न्याय, निष्ठा, उदारता, धर्म प्रवृत्ति, सत्य, पवित्रता आदि सब भावनाएं इस मन में आती हैं ।
मन का यह सर्वोच्च भाग (अध्यात्म मानस) भी केवल उपकरण मात्र ही है । ‘अहम’ (विशुद्ध आत्मा) यह भी नहीं है ।
पाठ का बीज मंत्र:-
‘मैं’ सत्ता हूं । मन मेरे प्रकट होने का उपकरण है ।
‘मैं’ मन से भिन्न हूं । उसकी सत्ता पर आश्रित नहीं हूं ।
‘मैं’ मन का सेवक नहीं, शासक हूँ ।
‘मैं’ बुद्धि, स्वभाव, इच्छा और अन्य समस्त मानसिक उपकरणों को अपने से अलग कर सकता हूं । तब जो कुछ शेष रह जाता है, वह ‘मैं’ हूँ ।
‘मैं’ अजर-अमर अविकारी और एक रस हूँ ।
‘मैं हूँ’ ……
Demonstration – आत्मानुभूति योग (द्वितीय चरण)
जिज्ञासा समाधान
ईश्वरीय पसारे संसार में ईश्वरीय व्यवस्था अनुरूप कुछ भी निरूद्देश्य नहीं है । सौभाग्यशाली वे हैं जो सदुपयोग (good use) का माध्यम बनते हैं व दुरूपयोग (misuse) से बचते हैं । ‘आत्मबोध’ (अपने बारे में सही सही जानकारी) उपरांत ‘तत्त्वबोध’ (संसार का ठीक ठीक पूर्ण ज्ञान) सहज हो पाता है ।
अतः आत्मानुसंधान में निरत रहा जाए और मन की परतों को गहराई दर गहराई खोलते रहा जाए और अनुभव में लाया जाए – आत्मानँ रथितं विद्धि शरीरँ रथमेव तु । बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ॥1-III-3॥ भावार्थ: आत्मा को रथी जानो और शरीर को रथ । बुद्धि को सारथी जानो और इस मन को लगाम ॥
‘श्रद्धा, प्रज्ञा व निष्ठा‘ @ उपासना, साधना व अराधना’ वो साधन हैं जो साधक को नित नए आयाम देते हैं और ‘अद्वैत’ की परिणति तक ले जाते हैं ।
24 घंटे आत्मस्थित (स्थितप्रज्ञ) रहने के लिए योगस्थः कुरू कर्माणि … ।
मनोमयकोश के मालिक प्रज्ञा बुद्धि हैं । यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनि । ज्ञानमात्मनि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि ॥1-III-13॥ भावार्थ: बुद्धिमान वाक् को मन में विलीन करे । मन को ज्ञानात्मा अर्थात बुद्धि में लय करे । ज्ञानात्मा बुद्धि को महत् में विलीन करे और महत्तत्व को उस शान्त आत्मा में लीन करे ॥
मन सुखस्वरूप है अतः सुख की लालसा वश अति वेगवान होता है । जहां मन को सुख नहीं मिलता है, वहां उसे अरूचि उत्पन्न होती है और आलस्य भाव आता है । प्राणमयकोश के साधक के आस पास आलस्य नहीं फटकते और क्रिया शक्ति में अभिवृद्धि होती है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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