Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Taittiriya Upanishad – Brahmaanand Vallee

Taittiriya Upanishad – Brahmaanand Vallee

YouTube link

Aatmanusandhan –  Online Global Class – 22 May 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  तैत्तिरीय उपनिषद् (ब्रह्मानन्दवल्ली)

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

नित्य प्रातः उपनिषद् स्वाध्याय के लाभ महती है । स्वाध्याय (स्वेन स्वस्य निजस्य अध्ययनं स्वाध्यायः) :-
1. “स्वस्य आत्मनः अध्यायः अध्ययनं स्वाध्यायः।” अर्थात् स्वयं का अध्ययन स्वाध्याय ।
2. “स्वेन आत्मनः अध्यायः अध्ययनं स्वाध्यायः।” अर्थात् स्वयं के द्वारा अध्ययन स्वाध्याय है ।
3. “स्वस्य निजस्य अध्यायः अध्ययनं स्वाध्यायः।” अर्थात् अपने किसी @ आत्मिकी (इत्युपनिषत्) का अध्ययन स्वाध्याय है ।
महर्षि पतंजलि कहते हैं “क्रियायोग = तप + स्वाध्याय + ईश्वर प्राणिधान ।”
स्वाध्यायान्मा प्रमदः।” अर्थात् स्वाध्याय में आलस्य मत करो ।

ब्रह्मवेत्ता साधक परब्रह्म को प्राप्त करते हैं । वह ब्रह्म सत्य (शाश्वत) ज्ञानस्वरूप व अनन्त है ।
परमात्मा से सर्वप्रथम आकाश तत्त्व प्रकट हुआ । तदन्तर आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल व जल से पृथ्वी तत्त्व उत्पन्न हुआ ।

पंचकोश:-
अन्नमयकोश (इन्द्रिय चेतना) की आत्मा – प्राणमयकोश (जीवनी शक्ति),
प्राणमयकोश की आत्मा – मनोमयकोश (विचार शक्ति),
मनोमयकोश की आत्मा – विज्ञानमयकोश (अचेतन सत्ता)
विज्ञानमयकोश की आत्मा – आनंदमयकोश (आत्मबोध – आत्मजागृति)
आनंदमयकोश की आत्मा – आत्मा
आत्मा की आत्मा –  परमात्मा
स्थूल से सूक्ष्म की शक्ति सदा ही असंख्य गुनी होती है । शरीर से बुद्धि सूक्ष्म है और बुद्धि से आत्मा सूक्ष्म है।
पंचकोश व उनका अनावरण – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1998/December/v2.28

(एकोऽहम बहुस्याम) उस परमात्मा ने अनेक रूपों में प्रकट होने की कामना की । 
तप करके उसने संपूर्ण जगत की रचना की ।
जगत की उत्पत्ति के बाद वह उसी में प्रविष्ट हो गया ।
प्रविष्ट होने पर वह साकार और निराकार हो गया ।
वह वर्ण्य और अवर्ण्य हो गया ।
वह आश्रयरूप एवं निराश्रयरूप हो गया ।
वही चैतन्य एवं जड़ रूप हुआ ।
वही सत्य स्वरूप परमात्मा ही सत्य (शाश्वत – अपरिवर्तनशील) एवं मिथ्यारूप (परिवर्तनशील) हो गया ।

सृष्टि से पूर्व यह संपूर्ण जगत् असत् (अव्यक्त) रूप में ही था । वह ब्रह्म ही स्वयं जगत रूप में प्रकट हुआ है, अतः वह सुकृत (शुभ ज्योति के पुंज अनादि अनुपम ब्रह्माण्ड व्यापी आलोककर्ता) कहा जाता है ।
जो सुकृत है वही रस रूप है (रसो वै सः)। इस रस को पाकर जीव आनन्दित होता है  । वही आकाश की भांति व्यापक और आनन्दस्वरूप है  । वही सर्वत्र आनन्द प्रदाता है ।
जब कोई जीवात्मा उस अदृश्य, शरीर रहित, अवर्ण्य, निराश्रय परमात्मा में निर्भय होकर स्थित (आत्मस्थित) हो जाता है, तो वह अभय पद (अद्वैत) को प्राप्त होता है ।
जब तक जीवात्मा परमात्मा से विमुक्त (आत्मविस्मृत) रहता है तब तक वह भयभीत रहता है ।

परब्रह्म के भय (अनुशासन) से ही वायु बहता है । इसके भय से ही सूर्य उदित होता है । इसके भय से ही अग्नि, इन्द्र और पाँचवें मृत्यु के देवता यम – सभी अपने अपने कर्मों में प्रवृत्त हैं ।
चेतना के उन्नयन/ जागरण से लोकों (आयामों – भुः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्यं) में गमन व आनन्द की निरंतरता … शाश्वतता ।

(प्रारंभिक) जो विद्वान पाप-पुण्य दोनों ही कर्मों को जानता है, वह पापों से अपनी रक्षा करता है
(परिपक्वता) जो विद्वान पाप – पुण्य दोनों ही कर्मों के बन्धन को जानता है, वह दोनों ही कर्मों में आसक्त न होकर (अनासक्त/ निष्काम @ मोक्ष/ मुक्ति/ शांति from वासना + तृष्णा + अहंता + उद्विग्नता) अपनी रक्षा करता है

इत्युपनिषत् ।।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment