Gayatri Savitri and Kundalini Mahashakti
Aatmanusandhan – Online Global Class – 05 June 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: गायत्री सावित्री और कुण्डलिनी महाशक्ति
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह बाबूजी के प्रवास क्रम में due to Internet network problems there, Sunday Online Global Class नहीं लेने की स्थिति में आ॰ अमन कुमार भैया, आ॰ नितिन आहूजा भैया & आ॰ सुभाष चन्द्र सिंह भैया द्वारा scheduled class लिया जा सकता है ।
मनोमयकोश परिष्कृत विज्ञानमयकोश प्रबुद्ध साधक, आत्मानुसंधान का पूर्ण लाभ ले सकते हैं ।
आत्मानुसंधान में academic knowledge से ज्यादा प्रमुखता अंतर्जगत के ज्ञान विज्ञान (आत्मसाधना) की है । अतः इसमें किसी भी वर्णाश्रम के व्यक्तित्व participate कर सकते हैं ।
गायत्री उपासना (आत्मिकी/ ज्ञान चेतना/ परा) = धर्म धारणा + भाव संवेदना । आत्मपरिष्कार प्रधान एवं ध्यानाकर्षण द्वारा भक्त का भगवान में समर्पण विलय विसर्जन एकत्व @ अद्वैत । (ब्रह्मरन्ध्र) ब्राह्मी शक्ति प्रभाव क्षेत्र ज्ञान चेतना (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, ऋतंभरा प्रज्ञा आदि) है ।
सावित्री साधना (आत्म-भौतिकी/ पदार्थ संपदा/ अपरा) – गायत्री का ही भौतिक पक्ष है । इसे अपरा प्रकृति, पदार्थ चेतना व जड़ प्रकृति कहा जाता है । पदार्थ जगत की समस्त हलचल इस पर निर्भर करती हैं । इसका विस्तार सर्वत्र पर पृथ्वी के ध्रुव केन्द्र में और शरीर के मूलाधार चक्र में इसका विशेष केन्द्र है ।
साधना प्रयोजन में प्रकारान्तर से इसी को कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं ।
कुण्डलिनी जागरण – इसमें ‘क्रियायोग’ (APMB) की प्रधानता है । जननेन्द्रिय मूल में अवस्थित आधार अग्नि का नाम ही कुण्डलिनी है । जब सावित्री साधना व कुण्डलिनी जागरण का सम्मिलित प्रयोग होता है तो चमत्कारिक परिणाम मिलते हैं ।
गायत्री व सावित्री के समन्वय से ही साधना की समग्र आवश्यकता पूर्ण होती हैं । अतः सावित्री (कुण्डलिनी जागरण) साधना का मात्र भौतिक ही नहीं वरन् आत्मिक लाभ उठाने के लिए सदा गायत्री (पंचकोश) साधना का अवलंबन लेकर शुरुआत की जाती है ।
Practical Session @ demonstration:-
बंध युक्त प्राणाकर्षण प्राणायाम,
शक्तिचालिनी मुद्रा
अश्विनी मुद्रा
Solid elements, कर्मेंद्रियां आदि- पृथ्वी तत्त्व से निर्मित हैं । मूलाधार चक्र की ध्यान धारणा क्रियायोग में इन्हें प्राणवान (आकर्षण + संधारण + विनियोग) बनाएं ।
विशुद्ध कुण्डलिनी साधना तंत्रमार्ग – वाममार्ग के अंतर्गत आती है । जब “सावित्री + गायत्री + कुण्डलिनी” का समन्वय हो जाता है तो योगमार्ग – दक्षिण मार्ग प्रधान हो जाता है ।
जिज्ञासा समाधान
केवल ‘क्रिया’ हमें बोर/ उबाऊ कर सकता है । ‘क्रिया’ में ज्ञान चेतना/ भाव संवेदना/तन्मयता का दिव्य ‘योग’ बन जाए तो वह सायुज्यता/ एकत्व/अद्वैत प्रधान (अखंडानंद का स्रोत) ‘क्रियायोग’ बन जाता है ।
‘कर्म‘ को मात्र श्रम नहीं समझिए प्रत्युत् इसमें तन्मयता मनोयोग का समावेश कर “आत्मवत् सर्वभूतेषु + वसुधैव कुटुंबकम्” भाव से ‘कर्मयोगी‘ बनें । आत्मनिर्माण के उपरांत विश्वनिर्माण का phase प्रारंभ होता है । “ज्ञान + कर्म” की पूर्णता/ परिपक्वता ‘भक्ति‘/ सेवा में है । गुरूकूल में शिष्य ज्ञानार्थ प्रवेश पाते और विश्व वसुंधरा के सेवार्थ निकलते ।
कुण्डलिनी महाशक्ति की पौराणिक व्याख्या – http://literature.awgp.org/book/Kundalini_Mahashakti_Evam_Usaki_Sansiddhi/v2.2
कुण्डलिनी शक्ति :-
1. अन्नमयकोश में प्राणाग्नि
2. प्राणमयकोश में जीवाग्नि
3. मनोमयकोश में योगाग्नि
4. विज्ञानमयकोश में आत्माग्नि
5. आनंदमयकोश में ब्रह्माग्नि
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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