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Savitri Science and Tantra Sadhana

Savitri Science and Tantra Sadhana

सावित्री विज्ञान एवं तन्त्र साधना

Aatmanusandhan –  Online Global Class – 12 June 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  सावित्री विज्ञान एवं तन्त्र साधना

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

(इस) जीवन (साधन शरीर) की सीमा (limitations) है । इसी जीवन में भौतिक व आत्मिक सुख समृद्धि (ओजस् + तेजस् + वर्चस्) प्राप्त करने हेतु हमें उन प्रायोगिक पक्ष को प्राथमिकता देनी चाहिए जिससे मानव जीवन के निम्नांकित दो महान उद्देश्य पूर्ण हों:-
1. मैं कौन हूँ ? – मैं आत्मा हूंँ @ बोधत्व हेतु – गायत्री साधना (आत्मिकी)
2. धरा पर स्वर्ग का अवतरण – सावित्री साधना (आत्म-भौतिकी)

गायत्री महामंत्र के 24 अक्षर में प्रथम 12 अक्षर आत्मिकी व अंत के 12 अक्षर वैज्ञानिक (सावित्री) पक्ष के हैं ।
गायत्री साधक अध्यात्म व (पंचभौतिक) विज्ञान दोनों क्षेत्रों में समुन्नत होते हैं ।
अतः गुरूदेव ने  वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को जन जन तक सुलभ बनाने हेतु महान तप किया । समस्त वैदिक आर्ष ग्रन्थों के भाष्य लिखे । सामाजिक, नैतिक व अध्यात्मिक क्रांति के सुत्रधार बनें ।

तन्त्र साधना से साधनात्मक सफलता सुनिश्चित होती हैं । इसे हड्डी गुड्डी खोपड़ी आदि विकृत स्वरूप में ना लेवें प्रत्युत् ‘ऊर्जा’ अभिवृद्धि रूपेण समझा जाए ताकि प्रतिकूलता (adversities) में घुटने ना टेके जाएं वरन् प्रतिकूलता में अनुकूलता ढूँढ ली जाए । हमारी प्रतिरोधक क्षमता (स्थितप्रज्ञता) इतनी बढ़ जाती है “तेन त्यक्तेन भुंजीथा” ।

अभीप्सा (तीव्र जिज्ञासा) @ “अथातो ब्रह्म जिज्ञासा” से बात बनती है । लक्ष्य के प्रति एकाग्रता (श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा) सफ़लता सुनिश्चित करती है ।

ब्रह्म‘ की इच्छा (एकोऽहम् बहुस्याम) से ब्रह्म व माया (शक्ति) दो हो गये । शक्ति के दो रूप :-
1. संकल्पमयी गायत्री (अध्यात्म)
2. परमाणुमयी सावित्री (विज्ञान)

जिस विज्ञान के द्वारा पंचभौतिक जगत में objects को सर्वोपयोगी बनाने की विधा सावित्री science है । सावित्री science के 2 पक्ष हैं:-
1. यंत्र विज्ञान
2. मंत्र (तंत्र) विज्ञान

आत्मिकी (आत्मसाक्षात्कार, आत्मदर्शन @ मनुष्य में देवत्व का अवतरण) – दक्षिण मार्ग (योग विज्ञान)

भौतिक सुख समृद्धि (धरा पर स्वर्ग का अवतरण) – वाम मार्ग (तंत्र विज्ञान) ।

(पुरातन काल में) मंत्र शक्ति (आत्मविद्युत) द्वारा अमोघ अस्त्र (वरूणास्त्र, आग्नेयास्त्र, पवनास्त्र, ब्रह्मास्त्र etc.) परलोक गमन, वायु में उड़ना, जल‌ पर चलना, अदृश्य हो जाना, अंतर्यामी, संतानोत्पादन आदि उपलब्धियां हस्तगत थीं ।
यंत्र विज्ञान से आज हमारी जीवन में ढ़ेर सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध हैं अतः तंत्र विज्ञान पक्ष गौण हो गया है ।
गुरूदेव ने शिष्यों से गुह्य तंत्र साधना पर शोधकार्य करने हेतु शुभेच्छा व्यक्त की है । 

सावित्री विज्ञान एवं तन्त्र साधना –  http://literature.awgp.org/book/savitri_vigyan_aur_tantra_sadhna/v1.1

तंत्र साधना से हम इतनी ऊर्जा हस्तगत करें ताकि आत्मबोध (मैं कौन हूँ ?) व तत्त्वबोध (dutifulness @ कर्मयोग @ unconditional love support care @ धरा पर स्वर्ग का अवतरण) द्वारा स्वयं को चलता फिरता शक्तिपीठ (प्रेरणास्रोत) बनावें अर्थात् प्रेरणा प्रसार का माध्यम बनें ।

जिज्ञासा समाधान

आत्मानुसंधान क्रम में पांचों शरीर के प्रायोगिक पक्ष को अब बंद कमरे के बाहर सामाजिक स्तर पर अर्थात् field work में स्वयं को उतारें और अपनी शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक स्वस्थता की जांच करें ।

गायत्री साधक (चिंतन – उत्कृष्ट) का चरित्र – आदर्श होता है । अतः गायत्री साधक सावित्री साधना से हस्तगत अपार ऊर्जा का सदुपयोग (आत्मकल्याणाय लोककल्याणाय वातावरण परिष्काराये) करते हैं ।

गायत्री पंचकोशी साधक पर तन्त्र साधना अथवा कुण्डलिनी जागरण का कोई side affects नहीं होते हैं ।

भगवान बुद्ध की आत्मीयता से अंगुलीमाल उनके वश में हो गये ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

Writer: Vishnu Anand

 

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