Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Kundalini Jagran Ki Dhyan Dharna

Kundalini Jagran Ki Dhyan Dharna

कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा

(गुप्त नवरात्रि साधना) _ Aatmanusandhan –  Online Global Class – 09 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT:  कुण्डलिनी जागरण की ध्यान धारणा

Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)

युग प्रवाह/ लोक प्रवाह को मोड़ने हेतु प्रचंड ऊर्जा की आवश्यकता होती है । उस स्तर के प्राणवान बनने हेतु कुण्डलिनी जागरण की आवश्यकता/ अनिवार्यता हो जाती है ।

अन्नमयकोश व प्राणमयकोश जागरण हेतु आहार शुद्धि व APMB को प्राथमिकता दी जा सकती है ।
मनोमयकोश जागरण हेतु – ध्यान, जप, त्राटक व तन्मात्रा साधना ।
विज्ञानमयकोश जागरण हेतु – ग्रन्थि भेदन, स्वर संयम, सोऽहं साधना व आत्मानुभूति योग ।
आनंदमयकोश जागरण हेतु – नाद, बिन्दु व कला साधना ।
अन्नमयकोश जागरण से – आरोग्य (healthy),
प्राणमयकोश जागरण से – बहादुर (brave),
मनोमयकोश जागरण से – समझदार (wise),
विज्ञानमयकोश जागरण से – ईमानदार (honest),
आनंदमयकोश जागरण से – जिम्मेदार (responsible – unconditional love @ आत्मीयता) ।
‘स्वस्थ + बहादुर + समझदार + ईमानदार’ व्यक्तित्व ‘जिम्मेदार’ (eligible for a post) कहे जा सकते हैं ।

पंचकोश जागरण से ‘ओजस्वी + तेजस्वी + वर्चस्वी’ बना जा सकता है ।

त्रिविध दुःखों से निवृत्ति ‘मोक्ष’ है । हृदय की अज्ञान ग्रन्थियों का नष्ट होना ‘मोक्ष’ है ।

पंचकोश साधक हेतु कुण्डलिनी जागरण साधना सर्वथा निरापद है ।

कुण्डलिनी जागरण ध्यान धारणा:-

सहज posture में बैठ जाएं – स्थिर शरीर ।
प्राणाकर्षण प्राणायाम से – मन शांत, शांत चित्त ।
यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे
पंचकोश की cleaning & प्राणिक healing :-

1. मन्थन (से ऊर्जा की उत्पत्ति एवं अभिवृद्धि)

2.  उर्ध्वगमन/ उत्थान उत्कर्ष अभ्युदय [अवरोहण (cleaning and healing) + आरोहण (समर्पण विलयन विसर्जन)]

3. षट्चक्र बेधन (मेरूदण्ड/ देवयान मार्ग में)
मूलाधार चक्र (नीचे)
स्वाधिष्ठान चक्र – पेडू की सीध में
मणिपुर चक्र – नाभि की सीध में
अनाहत चक्र – हृदय की सीध में
विशुद्धि चक्र – कण्ठ की सीध में
आज्ञा चक्र – भ्रूमध्य के सीध में
सहस्रार चक्र – सबसे ऊपर
मैं पंचकोश नहीं हूं; पंचकोश मेरे आवरण मात्र हैं … ।

4. विस्तरण/ विलयन (ससीम का असीम में):-
पृथ्वी – जल में,
जल – अग्नि में,
अग्नि – वायु में,
वायु – आकाश में,
आकाश – ॐ में,
ॐ – अद्वैत में @ अहं जगद्वा सकलं शुन्यं व्योमं समं सदा @ सोऽहं ।

5. परिवर्तन – क्षुद्रता का महानता में @ कामना का भावना में @ नर का नारायण में  @ भक्त का भगवान में @ जीव का शिव में @ अद्वैत ।
प्रार्थना:-
ॐ असतो मा सद्गमय ।
ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
ॐ मृत्योर्मामृतं गमय ।

जिज्ञासा समाधान

शक्ति चालिनी मुद्रा को शक्ति की उत्पत्ति एवं उसकी अभिवृद्धि अर्थात् सहस्रार चक्र तक उर्ध्वगमन के अर्थ में लेवें । यह ध्यानात्मक विधा है; जिसमें प्राणन अपानन की क्रिया संपन्न की जाती है । स्थूल क्रिया मूलाधार में होती है और सुक्ष्म क्रिया क्रमशः स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा व सहस्रार चक्र तक होती है ।

हमें जिस मुद्रा में सहजता होती है अर्थात् tuning बिठाने में सुविधा होती है उस मुद्रा में यौगिक क्रियाएं/ अभ्यास किया जा सकता है । ईश्वर से मिलन की क्रमिक प्रक्रिया (सालोक्य – सामीप्य – सारूप्य – सायुज्य) में जिस विधा (क्रियायोग) में सहजता होती हो, प्रगति बनती हो – उसे बेहिचक अपनाया जा सकता है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment