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Bandh and Mudra

Bandh and Mudra

बन्ध एवं मुद्रा – परिचय, लाभ व प्रैक्टिकल

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 16 July 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: बन्ध एवं मुद्रा – परिचय, लाभ व प्रैक्टिकल

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:
1. आ॰ शरद निगम जी (चित्तौड़, राजस्थान)
2. आ॰ लोकेश चौधरी जी (योगाचार्य, राजस्थान)


प्राणो वै ब्रह्म । मानव जीवन में बाहुबल, मनोबल, बुद्धि बल, धनबल, आत्मबल आदि प्राण के ही स्वरूप हैं । पंचाग्नि (प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि, आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि) प्राण के ही स्वरूप हैं । प्राण की बहुलता व न्युनता अनुरूप हमारा व्यक्तित्व होता है @ नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो ।

बन्ध – http://literature.awgp.org/book/aasan_pranayam_bandh_mudra_panchakosh_dhyan/v1.5

Demonstration:-
बन्ध – मूलबंध, उड्डियान बंध, जालंधर बंध व महाबंध (मूलबंध + उड्डियान बंध + जालंधर बंध) ।

शिव संहिता (10 मुद्रायें) – महामुद्रा महाबंधो महावेधश्च खेचरी । उड्यानं मूलबंधश्च बंधो जालंधराभिश्च:।। करणी विपरीताख्‍या वज्रोली ‍शक्तिशालनम । इंद हि मुद्रादशकं जराभरणनाशनम ।।

Demonstration:-
1. महामुद्रा, 2. महाबंध, 3. महावेध, 4. खेचरी, 5. उड्डियान बन्ध, 6. मूलबन्ध, 7. जालन्धर बंध, 8. विपरीतकर्णी (शीर्षासन), 9. वज्रोली व 10. शक्ति चालिनी (षट्चक्र बेधन) ।

हस्त मुद्रायें – http://literature.awgp.org/book/aasan_pranayam_bandh_mudra_panchakosh_dhyan/v1.6

गायत्री की 24 मुद्रायें – http://literature.awgp.org/book/gayatri_mantra_ka_tatvagyan/v1.13

जिज्ञासा समाधान (आ॰ शरद जी + आ॰ लोकेश जी)

खेचरी मुद्रा का अभ्यास minimum 5 मिनट व maximum जब तक अच्छा लगे । स्मरण रहे क्रिया संग भावनाओं का ‘योग’ (क्रियायोग) ।

साधना के प्रारंभ में में toxins (जन्म जन्मान्तरों के संचित कुसंस्कारों) की घिसाई/ गलाई करनी होती है अतः समय ज्यादा देना होता है । परिपक्वता आने पर हर एक दैनंदिन क्रिया ‘योग’ का माध्यम बन जाता है ।

Advanced यौगिक अभ्यास से पूर्व शरीर में पर्याप्त लोच, मानसिक संतुलन (एकाग्रता) व शांत चित्त (अनासक्त प्रेम) विकसित कर लेने से पूर्ण लाभ मिलते हैं ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ शरद जी व आ॰ लोकेश जी को नमन । युवा प्रोफेसर्स द्वारा ली गई कक्षा हर्ष का विषय ।

दैनिक साधना की नियमितता में पंचकोश जागरण का ध्यान रखा जाए । अर्थात् पांचों कोश को साथ साथ लेकर चला जाए । आत्मसमीक्षा में जिस कोश में साधना (गलाई + ढलाई @ तपोयोग)  की आवश्यकता ज्यादा महसूस हो उनके ‘क्रियायोग’ को प्राथमिकता दी जाए । लेकिन समग्र विकास हेतु अन्य कोशों  को भी साथ लेकर चला जाए ।
Concept को भलीभांति समझा जाए और उस पर Practical किया जाए ।

Meditation के साथ की गई क्रियायोग कम समय में पर्याप्त लाभ दे जाती हैं ।

नस‘ physically दिखती हैं but ‘नाड़ी‘ नहीं क्योंकि ये प्राण (चेतना) की वाहक होती हैं ।

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है । अतः अगले कोश में प्रगति क्रम बनाए रखने हेतु अन्नमयकोश परिष्कृत कर लिया जाए ।

बहुत लंबे समय तक अस्वाद व्रत ना रखा जाए । शरीर किसी खास ढर्रे में ढल जाए तो उसे अन्य format में परेशानी होती है । स्वयं को allrounder & multitasking बनाया जाए । अस्वाद का उद्देश्य cleaning है । Cleaning के पश्चात आम जीवन क्रम के भोजन‌ (मितभोक् + ऋतभोक  + हितभोक्) में शामिल हो जावें ।

भावना‘ (EQ), ‘मन‘ (IQ) के के उपर का layer है । भाव संवेदनाओं को नित नए आयाम दें । अध्यात्म @ “SQ = IQ + EQ”

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

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