Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Chetan Achetan and Superchetan Man – 2

Chetan Achetan and Superchetan Man – 2

सुपरचेतन मन का परिचय

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 06 Aug 2022 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌ ।

SUBJECT: चेतन, अचेतन एवं सुपरचेतन मन – 2 (सुपरचेतन मन का परिचय)

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ गोकुल मुन्द्रा जी (कलकत्ता, प॰ बंगाल)

चेतन मन – स्थूल शरीर, अचेतन मन – सूक्ष्म शरीर व सुपरचेतन मन – कारण शरीर को प्रभावित करते हैं ।

सुपरचेतन मन अध्यात्म परक है । इसके जागरण हेतु विज्ञानमयकोश के क्रियायोग प्रभावी हैं । चेतनात्मक विकास की क्रमिक प्रक्रिया क्रमशः चेतन  – अचेतन – सुपरचेतन तक जाती हैं । सुपर चेतन जागरण उपरांत साधक में भाव संवेदनाएं (सज्जनता, सहकारिता, सहिष्णुता, परमार्थ, उदारता आत्मीयता आदि @ unconditional love form में) जाग्रत दिखती हैं ।

कर्मयोग‘ से चेतन मन, ‘ज्ञानयोग‘ से अचेतन मन एवं ‘भक्तियोग‘ से सुपरचेतन मन जागरण किया जा सकता है । इसे हम उपासना (approached), साधना (digested) व अराधना (realised) की त्रिवेणी के रूप में समझ सकते हैं । ‘भक्ति‘ प्रगति की परिपक्वता है जिसमें आत्मवत् सर्वभूतेषु व वसुधैव कुटुंबकम् का सम्मिलन है ।

(अंतःकरण/ चेतना) ‘मन‘ की परतों को खोलने की प्रभावी प्रक्रिया मनोकोश साधना से प्रारंभ हो जाती है और आनंदमयकोश अनावरण संग ‘अद्वैत’ की यात्रा पूर्ण होती हैं ।

व्यक्तित्व (गुण + कर्म + स्वभाव) विकास का परिष्करण अंतःकरण चतुष्टय का परिष्कार है जिसमें ‘संयम‘ (धारणा + ध्यान + समाधि) की भूमिका महत्वपूर्ण है ।

जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

सुपर चेतन मन (समष्टि मन) जागरण को हम ईश्वरीय सायुज्यता रूपेण समझा सकते हैं ।

नाद योग‘ की साधना की शुरुआत प्रिय ध्वनि संग होती है एवं परिपक्वता अवस्था में प्रिय अप्रिय हर एक ध्वनि में ईश्वरीय (प्रेम) अनुभूति की जाती है ।

चेतनात्मक विकास की प्रक्रिया संकीर्णगत स्वार्थ (वासना + तृष्णा + अहंता @ मोह + लोभ + अहंकार) के रूपांतरण से होती है । सुपरचेतन जागरण उदार आत्मीयता के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है ।

भूख (जठराग्नि की प्रबलता) की आवश्यकता भोजन है । हमें ‘कार्य‘ करने के लिए ‘ऊर्जा‘ की आवश्यकता होती है जो हमें ‘भोजन‘ (अन्न, प्राण, विचार, भाव संवेदनाएं, आत्मीयता आदि)  से प्राप्त होती है । हमारा भोजन संयमित, संतुलित एवं पौष्टिक हो ।

हर एक शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श – सभी में ईश्वरीय अनुभूति (सायुज्यता) उपरांत ‘संसार’ बाधक नहीं प्रत्युत् सहयोगी होते हैं । विज्ञानमयकोश सिद्धि हेतु तन्मात्रा साधना की परिपक्वता आवश्यक है ।

Injury के recovery में प्राणाकर्षण युक्त शिथिलीकरण मुद्रा प्रभावी हैं ।

योगः कर्मसु कौशलम्‘ , ‘योगस्थः कुरू कर्माणि’ , ‘समत्वं योग उच्यते’, ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’ – योग (वृद्धि) के सूत्र हैं । आत्मा व परमात्मा का संयोग ‘योग’ है @ अद्वैत ।

मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ – की दिव्य अनुभूति/ बोधत्व, सुपरचेतन मन का जागरण है ।

राग – द्वेष से उपर उठने के लिए विवेकशीलता, सज्जनता, सहकारिता सहिष्णुता, उदारता @ आत्मीयता का जीवन में समावेश किया जाए । Notice/ observation को प्राथमिकता दी जाए एवं reaction से बचा जाए । मन को शांत व प्रसन्न रखने हेतु महर्षि पतंजलि के 4 सूत्र – “मैत्री, करूणा, मुदिता व उपेक्षा” प्रभावी हैं ।

मन + बुद्धि से जाग्रत मन कार्य करता है । इनके शांत, प्रसन्न, तेजस्वी होने से अचेतन मन की गहराई में प्रवेश कर जन्म जन्मान्तरों के संचित कुसंस्कारों की सफाई की जाती है । शांत चित्त संग सुपर चेतन से सायुज्यता बनती है ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

Writer: Vishnu Anand

 

No Comments

Add your comment