Adhyatmik Kama Vigyan – 2
Aatmanusandhan – Online Global Class – 14 Aug 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: सृष्टि में संचरण एवं उल्लास की प्रवृत्ति
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
1. जड़ शक्ति @ अपरा प्रकृति @ सावित्री – अणु शक्ति के पीछे काम करने वाली प्रेरक सत्ता जिसका विस्तार भौतिक जगत ।
2. चेतन शक्ति @ परा प्रकृति @ गायत्री – विचार की शक्ति, भावना की शक्ति, उत्साह की शक्ति ।
ब्रह्म – परमेश्वर अपनी अपरा और परा प्रकृति के, जड़ व चेतन विभूतियों के माध्यम से समस्त सृष्टि का सृजन, पोषण व परिवर्तन करता है ।
Human beings अपरा व परा शक्ति का सजीव मिश्रण है:-
1. शरीर (पंच तत्त्व निर्मित) – जड़ पक्ष
2. आत्मा विचारशील भावना शील – चेतन पक्ष ।
जड़ व चेतन का अद्भुत संयोग ही मनुष्य की अद्भुत प्रतिभा का स्रोत है ।
Human body में दो शक्ति केन्द्र:-
1. मूलाधार चक्र (सावित्री जड़ – अपरा प्रकृति का शक्ति केन्द्र – रयि, सोम, प्रकृति का प्रतीक ) – कुण्डलिनी महाशक्ति @ कामशक्ति ।
2. सहस्रार चक्र (गायत्री चेतन परा प्रकृति का शक्ति केन्द्र – प्राण, अग्नि, ब्रह्म का प्रतीक मस्तिष्क) – विचारणा भावना चिंतन शक्ति ।
दोनों शक्ति केन्द्रों की सह-स्थिति (मिलन विलयन विसर्जन) कोई उपद्रव उत्पन्न नहीं करती प्रत्युत् पूर्णता विकसित करती है । इनका (मूलाधार व सहस्रार का) दिव्य मिलन (सह-स्थिति) की विधा ही कुण्डलिनी जागरण है ।
अध्यात्मिक काम विज्ञान अर्थात् (पवित्रतम व अभिवंदनीय) कामशक्ति के अनुप्रयोग, सदुपयोग व दुरूपयोग कैसे हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है उसका विज्ञान । कामशक्ति शक्ति का बहुत सुझ बुझ के साथ प्रयोग करना ‘ब्रह्मचर्य’ का तत्त्वज्ञान है ।
शिव व पार्वती का सम्मिलित विग्रह देवालय में स्थापित है – तत्त्वतः यह सृष्टि में संचरण व उल्लास उत्पन्न करने वाले प्राण व रयि, अग्नि व सोम के संयोग से उत्पन्न होने वाले महानतम शक्ति प्रवाह की ओर संकेत करता है ।
कामशक्ति, हेय नहीं प्रत्युत् पवित्रतम व अभिवंदनीय है । हेय तो हर वस्तु का दुरूपयोग ही होता है । अमृत भी दुरूपयोग से विष बन सकता है । (निम्नगामी) काम शक्ति जब विद्रोही व उच्छृंखल होकर अवांछनीय चेष्टाएं करने लगा तब भगवान शिव ने अपने third eye से उसकी कुचेष्टाओं को जलाया था । उसके अस्तित्व को छेड़ा नहीं प्रत्युत् वरदान देकर अजर अमर (उर्ध्वगामी) बना दिया था ।
समय आ गया है कि काम-विद्या के तत्त्वज्ञान का संयत व विज्ञान सम्मत प्रतिपादन करने का साहस किया जाए और संकोच का यह पर्दा हटा दिया जाए कि हर स्तर पर इसकी चर्चा अश्लील मानी जाएगी ।
प्रतिबंध पशुता भड़काने वाली अश्लीलता – कामुकता, वासना की आत्मघाती प्रवृत्ति पर होनी चाहिए ।
मानव मात्र (नर व नारी) एक समान । नर – प्राण, पौरूष अग्नि का बाहुल्य व नारी – सोम की, सौजन्य की भावना की शक्ति का प्रतिनिधित्व करतीं हैं । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । समीपता से दोनों एक दूसरे को बहुत कुछ देते हैं और दे सकते हैं । किसी भी एक पक्ष का कमजोर होना हमें लंगड़ा (weak) बना सकता है ।
नर व नारी के बीच व्यापक सद्भाव – सहयोग की, संपर्क की स्थिति में व्यक्ति व समाज का विकास ही संभव है ।
स्मरण रखा जाए – पाप या व्यभिचार का सृजन संपर्क से नहीं प्रत्युत् दुर्बुद्धि से होता है ।
अध्यात्म – समता समानता सहिष्णुता सहकारिता सज्जनता सहृदयता का पक्षधर है । त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) भी सपत्नीक (सावित्री, लक्ष्मी, उमा) ।
जिज्ञासा समाधान
कुण्डलिनी जागरण (उर्ध्वगमन) से कामशक्ति का सदुपयोग किया जा सकता है ।
कर्मकाण्ड (स्थूल प्रतीकात्मक पूजा उपासना पद्धति) के दर्शन (तत्त्वज्ञान) को जीवन में धारण किया जाए । गहराई में प्रवेश किया जाए । संसार में कोई भी वस्तु ज्ञान विज्ञान हेय (घृणित/ निंदनीय) नहीं है । हमारी चित्त व वृत्ति अनुरूप वे सदुपयोग (पवित्रतम) व दुरूपयोग – (घृणित) का माध्यम बनते हैं । उस सर्वव्यापी (omnipresent) सत्ता से ना तो कोई कण रिक्त है ना तो कोई क्षण ।
काम का अर्थ विनोद, उल्लास व आनंद है । मैथुन को ही काम नहीं कहते हैं । काम क्षेत्र की परिधि में वह एक बहुत ही नगण्य माध्यम हो सकता है । स्नेह, सद्भाव, विनोद, उल्लास की उच्चस्तरीय अभिव्यक्तियां जिस परिधि में आती हैं उसे आध्यात्मिक काम कह सकते हैं ।
भावनाएं अनमोल होती हैं अतः उसका सदुपयोग आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है । गोपनीयता भी सदुपयोग/ सफलता का एक साधन है । लोग मनोभूमि अनुरूप शब्दों के अर्थ ग्रहण करते हैं । देखें, सुनें, समझें – अधिक, बोलें कम @ notice करें reaction से बचें @ सार्थक व प्रभावी उपदेश वह है जो केवल अपने वाणी से नहीं प्रत्युत् अपने आचरण से प्रस्तुत किया जाए । सद्गुरु, शिष्यों की मनोभूमि के अनुरूप साधना (पथ) बताते हैं । लक्ष्य एक है – अद्वैत ।
साधना पथ पर प्रतिस्पर्धा केवल स्वयं से होती है । अगला पग पिछले से better हो अर्थात् प्रगति @ चरैवेति चरैवेति मूल मंत्र है अपना ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
No Comments