Jap and Dhyan
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 20 Aug 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: मनोमय कोश परिष्कार में जप एवं ध्यान की भूमिका
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच:
1. आ॰ पद्मा हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)
2. आ॰ गायत्री हिरास्कर जी (पुणे, महाराष्ट्र)
3. आ॰ अमन कुमार जी (गुरूग्राम, हरियाणा)
‘मन‘ अतिशय चंचल व वेगवान । इसे साधने/ नियंत्रित/ संयमित/ अनासक्त/ निष्काम/ शांत व प्रसन्न रखने हेतु 4 साधन:-
1. जप
2. ध्यान
3. त्राटक
4. तन्मात्रा साधना
(भगवद्गीता) महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् । यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः।।10.25।। … यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूँ … ।
(मंत्र) जप साधना के 3 आयाम:-
1. मंत्र का मन ही मन (धीमे स्वर में) उच्चारण (ईश्वरीय गुणों का स्मरण)
2. अर्थ का अनुसंधान (चिंतन मनन मंथन)
3. प्रगाढ़ भावना (निदिध्यासन)
प्रारंभ में हमें जिस स्थिति में उपरोक्त तीनों आयाम में सायुज्यता स्थापित होने में सुविधा मिलती है हम उसका वरण करते हैं । परिपक्वता उपरांत निरालंब स्थिति आ जाती है ।
आ॰ पद्मा दीदी जी ने जप को स्व जीवन में कैसे रचाया पचाया बसाया उसके व्यवहारिक रूप में सर्वसमक्ष रखा है ।
ध्यान रूपी विद्या की आवश्यकता/ अनिवार्यता भौतिक व अध्यात्मिकक्ष दोनों क्षेत्रों में है । मन को एक नियत निर्धारित दिशा देना ध्यान के अंतर्गत आता है । ध्यान के 5 अंग :-
1. स्थिति (साधक की उपासना करने समय की स्थिति)
2. संस्थिति (ईष्ट की छवि का निर्धारण)
3. विगति (ईष्ट की गुणावली को जानना)
4. प्रगति (उपासना काल में साधक के मन में रहने वाली भावना)
5. संस्मिति (अद्वैत @ भक्त भगवान – एक)
आ॰ अमन कुमार जी (गुरूग्राम, हरियाणा)
जप व ध्यान समर्पण योग के अंदर आते हैं । ये उपासना का मूल आधार हैं । ध्यान की प्रगति ‘प्रत्याहार, ध्यान, धारणा व समाधि’ ।
ध्यान की पूर्णता (परिपक्वता) तुरीयातीत (समाधि) में है । इस अवस्था में ही यथार्थता (absolute truth) का भान होता है @ अद्वैत ।
अलबर्ट आइंस्टीन हमेशा अल्फा स्टेट में रहते थे जिसकी वजह से उन्होंने मानवता को प्रकृति के मूल रहस्यों से अवगत कराया और महान अन्वेषक बनें ।
प्रारंभ में ‘ध्यान’ का अभ्यास करना होता है धीरे धीरे जब यह हमारे स्वभाव का अंग बन जाता है तो प्रगति तीव्र हो जाती है । चेतन से अचेतन और अंततः सुपरचेतन मन तक पहूंच बनती है अर्थात् व्यष्टि मन का समष्टि मन में लय हो जाता है ।
जप व ध्यान का प्रारंभिक लाभ – एकाग्रता के रूप में और समाप्ति – पूर्णता (बोधत्व) के रूप में मिलती है ।
जिज्ञासा समाधान
द्युलोक (स्वः) अर्थात् दिव्य लोक अर्थात् जिस आयाम में दिव्य चेतनात्मक सत्ताएं (देवी देवताओं) से संपर्क बनते हैं और पात्रतानुसार दिव्य विभूतियों का स्वामी बना जा सकता है ।
‘ध्यान’ चेतनात्मक विधा है । चेतना कण कण में घुली है । अतः ध्यान से सर्वत्र पहूंच बनाईं जा सकती है ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
सभी participants, पद्मा दीदी, गायत्री दीदी व अमन भैया को प्रणाम व कक्षा हेतु आभार ।
हमें जिस भी क्षेत्र में लाभ लेना हो, वहां ‘ध्यान’ लगाना होता है । पंच प्राण जागरण हेतु कुण्डलिनी जागरण (षट्चक्र बेधन) को प्राथमिकता दी जा सकती है ।
‘उदान + देवदत्त‘ के जागरण हेतु जालंधर बंध, विशुद्धि चक्र का ध्यान प्रभावी हैं ।
परिश्रम (बल) की आवश्यकता तब तक होती है जब तक वह व्यक्तित्व का अंग ना बन जाए । गुण + कर्म + स्वभाव (व्यक्तित्व) में अवतरण उपरांत बल नहीं लगाना पड़ता प्रत्युत् auto mode में चलता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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