Adhyatmik Kama Vigyan – 4
Aatmanusandhan – Online Global Class – 28 Aug 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: प्रकृति की प्रेरणा – सदाचार भरी आत्मीयता (अध्यात्मिक काम विज्ञान)
Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक: श्रद्धेय श्री लाल बिहारी सिंह @ बाबूजी (प्रज्ञाकुंज, सासाराम, बिहार)
काम विज्ञान अंतर्गत कामशक्ति का:-
जागरण
नियंत्रण/ रूपांतरण
उपयोग
संपूर्ण सृष्टि में एक घर्षण (दिव्य मैथुनी) प्रक्रिया चल रही है । कामशक्ति एक पवित्र ऊर्जा है । दुरूपयोग अमृत को विष बना सकती हैं । काम विज्ञान, कामशक्ति के सदुपयोग (जागरण + नियंत्रण/ रूपांतरण + उपयोग) का मार्ग प्रशस्त करता है ।
सृष्टि में जितने भी शक्तिशाली व प्रसन्नताप्रिय जीव हैं, उनके दांपत्य जीवन बहुत ही आत्मीयता, घनिष्ठता और सदाचार पूर्ण होते हैं ।
अन्य प्राणियों में काम वासना का उपयोग मात्र वंशवृद्धि के लिए होता है । वंशवृद्धि के बाद वो अपने दायित्वों को समझते हैं और उसे निभाने के लिए पहले से ही व्यवस्था करने लगते हैं ।
स्वार्थ गत संकीर्ण (आसक्त) प्रेम – वासना (मोह), तृष्णा (लोभ) व अहंता (अहंकार) रूपेण परिलक्षित होता है । विस्तृत (अनासक्त) होने के उपरांत यह उदार भक्तिभाव @ सदाचार भरी आत्मीयता (unconditional love @ अनासक्त प्रेम) के रूप में परिलक्षित होता है । प्रकृति बिना किसी भेदभाव के हम पर अपना प्यार दुलार प्रदान करती है ।
सृष्टि में जो कुछ अनियमितता (असंतुलन) उत्पन्न होती हैं उसके प्रमुख कारणों में एक जीव की संकीर्ण स्वार्थपरता है ।
प्रकृति सदाचार भरी आत्मीयता से परिपूर्ण है और हमसे भी यही आशा की जाती है की हम भी आत्मीय बन प्रकृति के सहयोगी बनें (प्रकृति का पोषण) । प्रकृति के दोहन का दुष्परिणाम natural disaster के रूप में सर्वसमक्ष है ।
Plants की सदाचार भरी आत्मीयता को हम देखें की इसके बिना animal life की कल्पना नहीं की जा सकती है । इसके हर एक part (root, stem, leaves, flowers and fruits) जीवजगत के आहार, औषधि व आवास की व्यवस्था करते हैं । साथ ही साथ photosynthesis प्रक्रिया में जीवजगत हेतु प्राणवायु आक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं, ecological balance को बनाए रखते हैं ।
महान वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बसु (भौतिक वैज्ञानिक संग जीव वैज्ञानिक, वनस्पति वैज्ञानिक, पुरातत्वविद व लेखक) ने इनकी संवेदनशील होने का वैज्ञानिक प्रतिपादन सर्वसमक्ष रखा ।
जड़ पदार्थ (अपरा प्रकृति) में भी चेतना (सावित्री शक्ति) है । हम इनसे सदाचार भरी आत्मीयता रखकर इनके सदुपयोग का मार्ग प्रशस्त करें व दुरूपयोग से बचें @ प्रकृति के पोषण का माध्यम बनें ना कि दोहन का ।
दांपत्य जीवन में प्रवेश से पहले जीवन के प्रथम 25 वर्ष ब्रह्मचर्य पूर्वक (धार्मिक, अध्यात्मिक, नैतिक, सांस्कृतिक विषयों के समावेश संग) विद्याध्ययन करने का उद्देश्य यह था की युवा का चिंतन – उत्कृष्ट, चरित्र – आदर्श व व्यवहार – शालीन हो ।
भावनाओं का अर्थ केवल झुकना मात्र नहीं प्रत्युत् अपनी समीक्षा बुद्धि को जाग्रत रखते हुए, जो पवित्र रसस्वादन मर्यादाजन्य है, उसे पुरा करने में अपनी संपूर्ण निष्ठा का परिचय देना है ।
वासना के दुष्परिणाम – मरण बिंदुपातेन जीवन बिंदु धारणम् । उद्धत कामविकार, मृत्यु का दूत बनकर सामने आ खड़ा होता है ।
(संयम = ध्यान + धारणा + समाधि) संयमित तथा मर्यादित जीवन जीकर मनुष्य शक्तिशाली सामर्थ्यवान भी बनता है तथा सबके सम्मान का पात्र भी । काम विज्ञान के इसी परिष्कृत स्वरूप को जनमानस को समझाना आज युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है ।
गायत्री साधक के लक्षण:-
1. मीमांसा (उत्कृष्ट चिंतन),
2. चेष्टा (आदर्श चरित्र),
3. आचरण (शालीन व्यवहार – सदाचार भरी आत्मीयता) ।
जिज्ञासा समाधान
अन्नमयकोश जागरण के 4 उपाय:-
1. आसन
2. उपवास
3. तत्त्व शुद्धि
4. तपश्चर्या
उपरोक्त की परिपक्वता हमें क्रमशः अगले आयामों में ले जाती हैं और पूर्णता तक चरैवेति चरैवेति मूल मंत्र है अपना ।
महर्षि कपिल सांख्य दर्शन – 24 तत्त्व । ये साधन हैं । इन्हें साध्य मानने की आसक्ति, बंधन बन जाती है । आत्मसाधक इन्हें साधन रूप में सदुपयोग कर साध्य (अद्वैत) का वरण कर सकते हैं ।
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः । गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ 3.28 ॥ भावार्थ: परंतु हे महाबाहो ! गुण-कर्म-विभाग के तत्त्व को जाननेवाला, “सभी गुण ही गुणों में बरतते है” ऐसा समझकर आसक्त नहीं होता ।
‘मन’ तन्मात्रा में आनंद लेता है । इसे तन्मात्रा साधना से प्रशिक्षित किया जा सकता है कि वह शब्द, रूप, रस गंध व स्पर्श के स्थूल रूप से ना चिपके (आसक्ति) प्रत्युत उनके कारण सार्वभौम अपरिवर्तनशील चैतन्य सत्ता से सायुज्यता बनाए ।
तंत्र साधना आत्मिक साधना का मार्ग प्रशस्त करता है ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
Writer: Vishnu Anand
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