Gayatri Ramayan
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 03 Sep 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: गायत्री रामायण
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच: आ॰ किरण चावला जी (USA)
वाल्मीकि रामायण (24000 श्लोक) की रचना का मूल आधार गायत्री मंत्र है । एक एक अक्षर की व्याख्या स्वरूप 1000 श्लोक रचा गया है ।
गायत्री रामायण के मंत्र/ श्लोक का शिक्षण/ उपदेश:-
1. हमें तपस्वी व स्वाध्यायशील होना चाहिए ।
2. विघ्नों, कन्टकों व असुरों आदि (दोष – दुर्गुण पापादि कर्म) से लड़ने वाले पराक्रमी (आत्मनिर्माणी + विश्वनिर्माणी) प्रशंसा व स्तुति योग्य ।
(क) यज्ञ नष्ट करने वालों को राक्षस मानना
(ख) राक्षसों को मारना
(ग) राक्षसों को मारने के लिए विवेकशीलों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना
3. “हिम्मते मरदां मददे खुदा ।” ईश्वर उनकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता आप करते हैं । @ आत्मविश्वास व आत्मबल के धनी स्वावलंबी व्यक्तित्व ।
4. प्रशंसा स्वच्छ चादर है और निन्दा चिथड़ा @ मुदिता @ Give Respect – Take Respect.
5. भविष्य में आने वाली चुनौतियों से निपटने हेतु तैयारी @ प्रशिक्षण @ अर्जन तप ।
6. समाज व राष्ट्र के प्रति निष्ठा/ भक्ति @ वसुधैव कुटुंबकम् ।
7. कुटिया, जटाधारी राम व भरत । विवेकशील व्यक्ति अपने दृष्टिकोण – भरत सा, अन्तःकरण – सरल सादगीपूर्ण कुटिया सा बना लेवें तो उसे जटाधारी राम के दर्शन होंगे ।
8. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में प्रलय होयेगी, बहुरी करेगा कब ।।
9. Something is better than nothing.
10. मैत्री (Friendship) ।
11. साक्षी भाव @ सम भाव @ स्थितप्रज्ञता ।
12. शिक्षक तीन गुणों से युक्त:-
(क) निष्पाप
(ख) अनुभवी व सफल
(ग) तपस्वी
शिष्य का प्रथम लक्षण – विनम्रता ।
13. ब्रह्मचर्य (शील + सदाचार + संयम) ।
14. सर्वखल्विदं ब्रह्म @ आत्मवत् सर्वभूतेषु ।
15. अग्नि (तेजस्विता) @ “प्राणाग्नि, जीवाग्नि, योगाग्नि आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि” @ “ओजस्, तेजस व वर्चस्”।
16. “अन्धे के आगे रोवे, अपने नयना खोवे।” @ उपेक्षा (ignorance) ।
17. न्यायप्रियता @ करूणा ।
18. गहणाकर्मणोगतिः । ईश्वरीय दण्ड व्यवस्था में यकीन रखते हुए दुष्कर्म से निवृत्ति । @ जीवन के देवता को आओ मिलकर सँवारें (जीवन एक प्रत्यक्ष देवता) ।
19. पराक्रम व वीरता का सदुपयोग परमार्थ में निहित ।
20. आंतरिक दोष – दुर्गुण व पापादि कर्म ही मानव के सबसे बड़े शत्रु ।
21. हितकारी वचन @ सत्यं ब्रुयात् – प्रियं ब्रुयात् ।
22. सकारात्मक दृष्टिकोण @ ऋतंभरा प्रज्ञा जागरण ।
23. सहकारिता सहिष्णुता परमार्थ @ समानता ।
24. जिस दिन शत्रु का नाश करने वाला प्रेम लोभ महलों को छोड़कर ऋषि भावना का प्रतीक त्याग रूपी पर्णशाला में पहुंचता है, उसी में आत्मा रूपी सीता दो पुत्र उत्पन्न करती है:-
1. लव अर्थात् ज्ञान ।
2. कुश अर्थात् कर्म ।
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
सभी पार्टिसिपेंट्स को नमन । आ॰ किरण दीदी को बहुत बहुत आभार ।
विशेष तिथियों में साधनात्मक प्रयोजन (पंचाग्नि संवर्धन) हेतु कुछ सांसारिक कार्य निषेध किये जाते हैं । अवधूत स्तर उपरांत कुछ भी बन्धन नहीं होता है ।
मन को साधना मुश्किल किंतु असंभव नहीं । अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गुह्यते ।
मन को शांत व प्रसन्न रखने में रखने में ‘मैत्री, करूणा, मुदिता व उपेक्षा’ प्रभावी हैं ।
मनोमयकोश साधना के 4 साधन – जप, ध्यान, त्राटक व तन्मात्रा साधना ।
साधक, साध्य से एकत्व के पथ में साधन का इस्तेमाल करते हैं । उत्तरोत्तर प्रगति क्रम में साधन छूटते चले जाते हैं । साधक की भी सत्ता साध्य में विलीन हो जाती है @ अद्वैत ।
अपनी भूल/ गलती को मानना आत्मसुधार हेतु पहला कदम है । आत्मपरिष्कार = आत्मसमीक्षा + आत्मसुधार+ आत्मनिर्माण+ आत्मप्रगति ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
Writer: Vishnu Anand
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