Tratak Sadhna
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 08 October 2022 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
SUBJECT: त्राटक साधना (मनोमयकोश)
Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच: आ॰ सुशील कुमार त्यागी जी (गाजियाबाद, उ॰प्र॰)
जैसा अन्न वैसा मन – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1964/May/v2.17
मन के हारे हार है मन के जीते जीत http://literature.awgp.org/book/man_ke_hare_har_hai_man_ke_jeete_jeet/v3.1
युग निर्माण सत्संकल्प – http://hindi.awgp.org/about_us/mission_vision/solemn_pledge
मनोमयकोश जागरण/ अनावरण/ परिष्करण हेतु 4 क्रियायोग/ साधन/ उपाय :-
1. जप
2. ध्यान
3. त्राटक
4. तन्मात्रा साधना
‘त्राटक‘ का प्राथमिक उद्देश्य ‘मन’ को एकाग्र करना (तत्सवितुर्वरेण्यं) है । यह दो प्रकार का होता है:-
1. अन्तः त्राटक (आत्मबोध) – ‘अहं ब्रह्मास्मि’ _ ‘सोऽहं’ ।
2. बाह्य त्राटक (तत्त्वबोध) – ‘तत्त्वमसि’ _ ‘ईशावास्यं इदं सर्वं’ _ ‘सर्व खल्विदं ब्रह्म’ ।
त्राटक (गायत्री महाविज्ञान – तृतीय भाग) – http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v10.16
जिज्ञासा समाधान (श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आ॰ त्यागी जी को बहुत बहुत आभार । सभी पार्टिसिपेंट्स को नमन ।
वर्तमान के नवांगतुक संतति (पुत्र/ पुत्री) उच्चस्तरीय ऋषि आत्माएं हैं । इनके लिए उचित वातावरण का निर्माण करना हर एक मातापिता का नैतिक कर्तव्य है ।
जप अर्थात् स्वरूप (आत्म-परमात्म बोध) का बारंबार स्मरण _ मनन _ चिंतन ।
जप के साथ ध्यान भी (समर्पण _ विलयन _ विसर्जन) ।
त्राटक गहराई में जाने की विधा है । अतः सभी रिसर्च स्कॉलर्स साधनात्मक गहराई में जाएं और शोधकार्य को प्रगति देवें ।
(प्रातःकालीन उगते हुए) सूर्य पर बाह्य त्राटक अच्छा लगने तक किया जा सकता है । सविता देवता पर अन्तः त्राटक से महती लाभ लिए जा सकते हैं ।
प्रारंभ में बाह्य त्राटक … मन एकाग्र होने लगता है फिर अन्तः त्राटक (अन्तर्जगत के ज्ञान विज्ञान) में प्रवेश मिल जाता है ।
Concept त्राटक @ स्वाध्याय (अध्ययन + मनन – चिंतन + निदिध्यासन) ।
गणेश का भर्ग – विवेक । विवेक (प्रज्ञा बुद्धि) से हर एक ‘कर्म‘ संयम (ध्यान _ धारणा _ समाधि) पूर्वक किए जाते हैं फलतः कर्म, ‘योग‘ (ईश्वरीय सामीप्य सालोक्य सायुज्यता) का माध्यम (साधन) बन जाते हैं ।
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं … मैं अंतःकरण नहीं हूँ … चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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