Yogakundalyupanishad – 2
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Gupt Navratri Sadhna Satra (22 to 30 Jan 2023) – Online Global Class – 23 जनवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी
विषय: योगकुंडल्युपनिषद् – 2 (मंत्र सं॰ 30 – 61)
(कठोपनिषद्) समस्त इन्द्रिय द्वार बहिर्मुख निर्मित इसलिए जीवात्मा बाह्य विषयों को देखता है – अन्तरात्मा को नहीं देखता ….
मन और जल दोनों की प्रवृत्ति ढलान की ओर जाने की … जल – यंत्र से उपर उठता है, मन – मंत्र (अध्ययन + मनन + चिंतन – मंथन + धारण) से उपर उठता है ।
प्रज्ञावान् व्यक्ति के लिए उचित है कि वह सर्वप्रथम वाक् आदि इन्द्रिय को मन में लीन करे, मन को ज्ञान स्वरूप बुद्धि में निरुद्ध करे, बुद्धि को महान तत्त्व में विलीन करे और उस आत्मा को परमपुरुष परमात्मा में नियोजित करें ।
स्थिर शरीर + शांत चित्त (वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता – शांत) + मनन चिंतन मंथन – समर्थ चक्रवात + विलयन विसर्जन + एकत्व/ अद्वैत ।
शीतली व उज्जायी प्राणायाम की विधि व लाभ
बन्ध:-
1. मूल बन्ध – शरीर के अधोभाग में विचरण करने वाले अपान वायु को, गुदा (anus) को संकुचित करके बलपूर्वक उपर उठाने की प्रक्रिया ।
2. उड्डीयान बन्ध – रेचक करने के पूर्व पेट को भीतर की ओर खींचते हुए उपर उठाने की प्रक्रिया ।
3. जालंधर बन्ध – मूलबंध संग कण्ठ संकोचन ।
इस तरह प्राण को सब ओर से रोकने से वह सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करके उर्ध्वगामी होता है ।
संयुक्त अभ्यास – महामुद्रा + महाबन्ध + महावेध ।
साधक के रोग का कारण – असंतुलन/ असंयम/ अप्राकृतिक जीवनशैली:
1. दिन में सोना
2. रात्रि में जगना
3. अतिमैथुन
4. मल व मुत्र के वेग को रोकना
5. ज्यादा चलना (लोकेषणा वित्तेषणा पुत्रेषणा)
6. आसनों का उचित ढंग से अभ्यास ना करना
7. प्राणायाम की क्रिया में बहुत शक्ति लगाना
8. चिन्तित रहना (उद्विग्नता)
योगाभ्यास का विघ्न:-
1. रोग का कारण योगाभ्यास को मानकर अभ्यास बन्द कर देना
2. साधना पर शंका करना/ विश्वास ना करना
3. प्रमत्तता
4. आलस्य
5. ज्यादा नींद लेना
6. साधना से प्रेम ना होना
7. भ्रान्ति
8. विषय वासना में अनुरक्ति
9. अनाख्य
10. योग तत्त्व का प्राप्त ना होना ।
सर्वसाधारण हेतु गायत्री पंचकोश साधना से आत्मसाक्षात्कार युगानुकूल सर्वथा हानिरहित है (ऋषि मुनि यति तपस्वी योगी, आर्त अर्थी चिंतित भोगी । जो जो शरण तुम्हारी आवें, सो सो मनोवांछित फल पावें ।।)
जिज्ञासा समाधान
काम और आराम दोनों का संतुलन होना चाहिए @ दिन में काम करते हैं तो रात्रि में आराम ।
कार्य के दौरान कार्यशैली महत्वपूर्ण है @ योगः कर्मसु कौशलम् ।
सफलता – असफलता, सुख – दुःख के विक्षोभ से परे साक्षी भाव @ योगश्चित्तवृत्ति निरोधः ।
ईश्वर का साकार स्वरूप – संसार @ येन सर्वविदं ततम् ।
विलयन विसर्जन एकत्व @ जीवात्म परमात्म संयोगो योगः ।
योगाभ्यास हेतु आवश्यक/ अनिवार्य गुण @ अथ योगानुशासनं :-
1. श्रद्धा (विश्वास)
2. प्रज्ञा [सहजता + सजगता @ विवेक बुद्धि @ संतुलन (अति हर्यत्र वर्जयेत्) @ संयम (ध्यान धारण तदनुरूप)]
3. निष्ठा (नियमित/ चरैवेति चरैवेति) ।
अज्ञान को दूर करने का उपाय – ज्ञानार्जन ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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