Swar Sanyam and Granthi Bhedan
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PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 04 फरवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच:-
1. आ॰ उमा सिंह जी (बैंगलोर, कर्नाटक)
2. आ॰ सुशील सुमन जी (बैंगलोर, कर्नाटक)
विषय: स्वर संयम व ग्रंथिभेदन (विज्ञानमयकोश)
ईश्वर – सत् चित्त आनन्द स्वरूप हैं अतएव हम ईश्वरांश मौलिक रूपेण आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं ।
सृष्टि की संरचना की मूल वजह ही आनन्द (स्फुरणा- एकोऽहमबहुस्याम्) है । इसलिए हर एक तत्त्व व उनकी इन्द्रियजन्य अनुभूति ‘शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श’ में आनन्द घुला हुआ है ।
जब हम स्वयं को शरीर मानकर आसक्तिवश किसी खास ‘शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श’ में सुख/ आनंद/ प्रिय तथा अन्य में दुःख/ अप्रिय में फंस जाते हैं फलस्वरूप तीन भावनात्मक गांठें (ग्रन्थि) निर्मित होती हैं:-
1. वासना/ मोह
2. तृष्णा/ लोभ
3. अहंता/ अहंकार
उपरोक्त तीन गांठें ही बंधन है । हम ईश्वरांश जब स्वयं को पहचान जाते हैं हम वस्तुतः आत्मा ही हैं शरीर हमारा वाहन मात्रा है तो हम format में नहीं बंधते और हर एक तत्त्व में उस अपरिवर्तनशील सार्वभौम चैतन्य सत्ता का बोधत्व करते हैं तो मुक्ति है ।
तीन बन्धन ग्रन्थियां:-
1. रूद्र ग्रन्थि – (गुण) तम – (व्यवहारिक जगत) सांसारिक जीवन – (दार्शनिक दृष्टि) शक्ति … l
2. विष्णु ग्रन्थि – (गुण) रज – (व्यवहारिक जगत) व्यक्तिगत जीवन – (दार्शनिक दृष्टि) साधन … ।
3. ब्रह्म ग्रन्थि – (गुण) सत् – (व्यवहारिक जगत) अध्यात्मिक जीवन – (दार्शनिक दृष्टि) ज्ञान … ।
(त्रिपदा) ‘शक्ति + साधन + ज्ञान‘ की साम्यता से हमें आत्मवत् सर्वभूतेषु व वसुधैवकुटुम्बकम का बोधत्व होता है । यही त्रिगुणात्मक साम्यता को जानना, समझना व जीना ग्रन्थि भेदन है ।
साधनात्मक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए जब व्यक्ति विज्ञानमय कोश की स्थिति में पहुँच जाता है तो उसे अपने भीतर तीन कठोर, गठीली, चमकदार गांठें दिखता है, जिसका विवरण इस प्रकार है:-
1. रूद्र ग्रंथि – स्थान (प्रजनन क्षेत्र) – महाकाली (क्लीं) – दो शाखा ग्रंथियां मूलाधार व स्वाधिष्ठान चक्र,
2. विष्णु ग्रंथि – स्थान (अमाशय के उपरी भाग) – महालक्ष्मी (श्रीं) – दो शाखायें मणिपुर व अनाहत चक्र,
3. ब्रह्म ग्रंथि – स्थान (मस्तिष्क के मध्य केंद्र में) – महासरस्वती (ह्रीं) – दो शाखायें विशुद्धि व आज्ञा चक्र ।
❤️ सादा जीवन व उच्च विचार ।
स्वर संयम : क्रिया पक्ष में प्राणायाम के तथ्य व योग पक्ष में चेतनात्मक यात्रा (ॐ भूः भुवः स्वः महः जनः तपः सत्यम – ब्रजत ब्रह्मलोकं) ।
1. बायां स्वर (इड़ा)- चन्द्र शक्ति – मानसिक कार्य हेतु उपयुक्त @ दिमाग ठंडा
2. दायां स्वर (पिंगला) – सूर्य शक्ति – शारीरिक कार्य हेतु उपयुक्त @ खून गर्म
3. स्वर सन्धि (सुषुम्ना) – साक्षी शक्ति @ भावनात्मक कार्य हेतु उपयुक्त @ हृदय नरम ।
❤️ स्वर संयम अर्थात् जीवित व्यक्तित्व = दिमाग ठंडा + खुन गर्म + हृदय नरम ।
जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
साधना से सिद्धि मिलती है; यह ईश्वरीय नियम व्यवस्था के अंतर्गत है। समीक्षा, सुधार, निर्माण व प्रगति को बनाए रखें ।
विज्ञानमयकोश – ससीम से असीम अर्थात् पूर्व कोश की सिद्धियां (वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता – शांत) को विलयन – विसर्जन – एकत्व ।
श्रद्धावान लभते ज्ञानं । ज्ञानेन मुक्ति ।
उदार प्रकृति @ unconditional love – वसुधैवकुटुम्बकम ।
अशब्दं अरूपं अस्पर्शं अव्ययं… निर्विकल्प/ निर्बीज/ असंप्रज्ञात समाधि @ साधो ! सहज समाधि भली ।
मनोकुल लाभ नहीं मिलने से श्रद्धा विश्वास में कमी आती हैं । अतः श्रद्धा को धारण करने हेतु – तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु।
साक्षी भाव हमें सिद्धियों से आसक्त नहीं होने देता …. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।
अभीप्सा (तीव्र जिज्ञासा) लक्ष्य संधान में सहायक हैं @ अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।
प्रारंभ में समय व स्थिति के अनुकूलता का ध्यान रखा जाता है । मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदलें । परिपक्वता मे challenge adventure बन जाते हैं ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
✍️ सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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