Pragyakunj, Sasaram, BR-821113, India
panchkosh.yoga[At]gmail.com

Sahaj Samadhi

Sahaj Samadhi

सहज समाधि (आनंदमयकोश)

PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 11 फरवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

To Join Panchkosh sadhna Program, please visit – https://icdesworld.org/

Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच:-
1. आ॰ भारती भक्ता जी (Boston USA)
2. आ॰ राजीव सिन्हा जी (Connecticut USA)

विषय: सहज समाधि (आनंदमयकोश)

चेतना की चार अवस्थाएं:-
1. जाग्रत
2. स्वप्न
3. सुषुप्त
4. तुरीय

आनंदमयकोश की स्थिति को समाधि अवस्था भी कहते हैं ।
वर्तमान देश काल, पात्रता आदि के आधार पर समाधि की 27 विधाएँ विकसित हुई । जिनमें महात्मा कबीर जी ने सहज समाधि के प्रेरणास्रोत बनें और साधकों को इस हेतु प्रेरित किया ।

साधो ! सहज समाधि भली
गुरू प्रताप भयो जा दिन ते सुरति न अनत चली ।।
आँख न मूँदूँ कान न रूँधूँ काया कष्ट न धारूँ ।
खुले नयन से हँस-हँस देखूँ सुंदर रूप निहारूँ ।।
कहूँ सोई नाम, सुनूँ सो सुमिरन, खाऊँ सो पूजा ।
गृह उद्यान एक सम लेखूँ भाव मिटाऊँ दूजा ।।
जहाँ-जहाँ जाऊँ सोई परिक्रमा जो कछु करूँ सो सेवा ।
जब सोऊँ तब करूँ दण्दवत पूजूँ और न देवा ।।
शब्द निरंतर मनुआ राता, मलिन वासना त्यागी ।
बैठत – उठत कबहुँ न बिसरै, ऐसी ताड़ी लागी ।।
कहै ‘कबीर’ वह उन्मुनि रहती सोई प्रकट कर गाई ।
दुख सुख के एक परे परम सुख, तेहि में रहा समाई ।।

कुण्डलिनी जागरण :
स्थिर शरीर – सुखासन
शांत अंतःकरण – वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता – शांत
षट्चक्र बेधन, पंचकोश, प्राण का आकर्षण – संधारण – विनियोग (समर्थ चक्रवात)
4. समर्पण – विलयन – विसर्जन – एकत्व

जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)

आ॰ भारती दीदी व आ॰ राजीव सिन्हा जी को नमन व अनुभवजन्य शिक्षण हेतु आभार एवं सभी पार्टिसिपेंट्स को नमन ।

आत्मज्ञान – मैं वस्तुतः शरीर नहीं आत्मा  ही हूँ ।
तत्त्वज्ञान – ईश्वर का साकार स्वरूप संसार ।
ब्रह्मज्ञान – एकं ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ।

साधक, साधन व साध्य में:
– साधन (प्रकृति) का विलयन होता है
– साधक (जीव) का विसर्जन होता है
– साध्य (शिव)  रह जाता है @ अद्वैत ।

शब्दों से परे – अशब्दं, दृश्य से परे – अरूपं, स्पर्श से परे – अस्पर्शं, अनुभवों से परे – अनुभवातीत,  गुणों से परे – त्रिगुणातीत …. जो कहता है कि मैं उसे जानता हूँ वो नहीं जानता ! जो कहता है कि मैं उसे नहीं जानता हूँ वो उसे जानता है !!
मैं (वासना/ तृष्णा/ अहंता) को गलाया जाए एवं श्रद्धा भावेण धैर्य पूर्वक ससीम का असीम में/ बिन्द का सिन्धु में/ अणु का विभु में/ व्यष्टि का समष्टि में/ जीव का शिव में/ आत्मा का परमात्मा में – विलयन विसर्जन से एकत्व

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः ।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

No Comments

Add your comment