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Spritual Science of Sex – 3

Spritual Science of Sex – 3

परिष्कृत अन्तः चेतना से काम प्रवृत्तियों का नियंत्रण

Aatmanusandhan –  Online Global Class –  19 फरवरी 2023 (5:00 am to 06:30 am) –  Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह

ॐ भूर्भुवः स्‍वः तत्‍सवितुर्वरेण्‍यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्‌

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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी

शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी

विषय: परिष्कृत अन्तः चेतना से काम प्रवृत्तियों का नियंत्रण

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्वसाधारण को अध्यात्मिक काम विज्ञान शिक्षण की आवश्यकता/ अनिवार्यता है ।
Sexual Harassment के prevention हेतु बहुत सारे laws हैं फिर भी अपराध पर नियंत्रण नहीं हो रहा है ।
कामपवित्र है उसके वास्तविक स्वरूप (good use) को ना समझकर घृणित वासनात्मक गतिविधियों (misuse) में लिप्त रहना अध्यात्मिक काम विज्ञान के शिक्षण के अभाव के कारण है ।
अध्यात्मिक काम विज्ञान को academic education में शामिल करने की आवश्यकता है so that transmutation of sex energy can take place.

संसार में त्रिविध दुःख
1. आध्यात्मिक,
2. आधिभौतिक व
3. आधिदैविक
से पूर्ण निवृत्ति तथा परमानन्द की प्राप्ति (मोक्ष) को परम पुरूषार्थ कहते हैं।

विद्यां ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति,
धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥ भावार्थ: विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है।

तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये । आयासायापरं कर्म विद्यऽन्या शिल्पनैपुणम्॥ अर्थात कर्म वही है जो बंधनों से मुक्त करे और विद्या वही है जो मुक्ति का मार्ग दिखाये । इसके अतिरिक्त जो भी काम है वे सब निपुणता देने वाले मात्र हैं।

स्वयं से पूछे जाने वाला प्रश्न :-
1. मैं कौन/ क्या हूँ ? – मैं आत्मा हूँ?
2. मैं क्यों हूँ/ जीवन का उद्देश्य? – (क) आत्म परमात्म साक्षात्कार (ख) धरा को स्वर्ग बनाना @ वसुधैवकुटुम्बकम ।

पंचकोशी क्रियायोग काम ऊर्जा के good use में अहम भूमिका निभाते हैं ।

शरीर भाव में बहिर्मुख इन्द्रियां स्वभाव वश तन्मात्रा सुख प्राप्ति हेतु काम ऊर्जा को निम्नगामी बनाने में प्रवृत्त होती है ।
काम ऊर्जा/शक्ति के उर्ध्वगमन हेतु इन्द्रियों को अंतर्मुखी बनाने की आवश्यकता है (इन्द्रिय संयम) एवं शुद्ध मन @ परिष्कृत दृष्टिकोण हेतु स्वाध्याय सत्संग व गुरूकृपा की आवश्यकता है (विचार संयम)।

कठोपनिषद्

पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयंभूस्तस्मात्पराड् पश्यति  नान्तरात्मन्कश्चिद्धार:          प्रत्यगात्मानमैक्षदावृत्तचक्षुरमृतत्वमिच्छन्
स्वयं भू परमेश्वर ने समस्त इन्द्रियों को बहिर्मुखी बनाया है। इसीलिए जीवात्मा बाहर के विषयों को देखता है, अन्तरात्मा को नहीं देखता । अमरत्व की आकांक्षा से जिसने अपनी अपने चक्षु आदि इन्द्रियों पर संयम कर लिया है ऐसा कोई धीर पुरूष ही अन्तरात्मा को देख सकता है ।।
इन्द्रियेभ्यः परा ह्यर्था अर्थेभ्यश्च परं मनःमनसस्तु परा बुद्धिर्बुद्धेरात्मा महान्परः ।। “इन्द्रियों से परे इन्द्रियों के विषय हैं, इन्द्रियों के विषय से परे सूक्ष्म मन, मन से परे बुद्धि और बुद्धि से सूक्ष्म आत्मा है।”
यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनिज्ञानमात्मनि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि ॥ “प्रज्ञावान् व्यक्ति सर्वप्रथम वाक् आदि इन्द्रियों को मन में लीन करे, मन को ज्ञानस्वरूप बुद्धि में निरुद्ध करे, बुद्धि को ‘महान् आत्मा’ में विलीन करे और उस ‘आत्मा’ को परमपुरुष परमात्मा में नियोजित करे

जिज्ञासा समाधान

साधु पुत्र जनयः
काम ऊर्जा (मूल शक्ति) को गायत्री/ सावित्री/ सरस्वती उपासना/ साधना/ अराधना से जीवन के हर एक क्षेत्र में बल, बुद्धि, विद्या, आयु:, प्राणं, प्रजां,  पशुं, कीर्तिं, द्रविणं, ब्रह्मवर्चसं में प्रयुक्त (good use) करें और ब्रजत ब्रह्मलोकं

आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी –  http://literature.awgp.org/book/aao_ghadhen_sanshkarvan_pidhi/v1.2

आत्मा सर्वथा शुद्ध पवित्र है; इसके आवरणपंचकोश में अशुद्धि रूपी कालिमा चढ़ जाती है इसके परिष्करण हेतु पंचकोशी क्रियायोग प्रभावी हैं ।
जब जागो तभी सबेरा @ regression – depression ना बनें । साधक में श्रद्धा + प्रज्ञा + निष्ठा का समावेश हो  ।

ॐ  शांतिः शांतिः शांतिः।।

सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द

 

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