Naad and Bindu Sadhana
PANCHKOSH SADHNA – Online Global Class – 04 मार्च 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अमन जी/ आ॰ अंकुर जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच:
1. आ॰ संस्कृति शर्मा जी (नई दिल्ली)
2. आ॰ सुभाष सिंह जी (गाजियाबाद, उ॰ प्र॰)
विषय: नाद एवं बिन्दु साधना
(गायत्री) चेतना का पाँचवाँ मुख/भूमिका/ आयाम आनंदमयकोश है । यहां ‘आत्मा’ को आनंद मिलता है ।
सहज समाधि की भांति आनंदमयकोश की 3 महासाधनाएँ महाप्रभावी हैं:-
1. नाद साधना
2. बिन्दु साधना
3. कला साधना
शब्द ब्रह्म
शब्द के 2 प्रकार:-
1. विचार
2. नाद
ईश्वरीय शब्द प्रवाह हमारे अंदर (अंतःकरण) व बाहर (संसार) सदैव प्रवाहित होता रहता है । यह अतीव कल्याणप्रद है ।
आसक्ति (वासना/ तृष्णा/ अहंता/ उद्विग्नता) वश हम उसे सुन नहीं पाते हैं अथवा अन्तरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं ।
पंचकोशके 19 क्रियायोग सहज क्रमबद्ध सुव्यवस्थित अनंत आनंद के बोधत्व की साधना है ।
क्रियायोग प्रगति क्रम में उत्तरोत्तर समझने व समझाने हेतु पंचकोश में विभिन्न संज्ञा को धारण करते हैं ।
आनंद ही मूल में है उसका यत्र तत्र सर्वत्र बोधत्व आनंदमयकोश अनावरण है ।
अंतर्जगत में चित्तकी वृत्तियों को अन्तर्मुखी बनाकर आत्मा की आवाज तक पहूँच बनाई जा सकती है और अंतरात्मा की आवाज को सुनकर उसके Practical & Application से हम चरित्र, चिंतन व व्यवहार के धनी बन सकते हैं, जीवन के उद्देश्य को सफल बना सकते हैं ।
बाह्य जगत में भी प्रारंभिक शब्द/ प्रणव ब्रह्म ॐ ध्वनि रूपेण जैसे जैसे अन्य तत्त्वों में होकर गुजरती है वैसे वैसे different forms में सुनाई पड़ती है महसूस होती है ।
नादके 2 प्रकार:-
1. आहत नाद, किसी प्रेरणा या आघात से उत्पन्न ..।
2. अनाहत या अनहद नाद @ कल्याणप्रद दिव्य भावना/ईश्वरीय संदेश – सुक्ष्म @ किसी आघात की आवश्यकता नहीं होती हैं ।
यत्र तत्र सर्वत्र सच्चिदानंद स्वरूप का बोधत्व ।
इन्द्रियां जो कुछ सुने + देखे + खाये पीये + सुंघे अथवा महसूस करे – उसमें कल्याण को ग्रहण करें ।
प्रारंभ में जतन किया जाता है परिपक्वता (आनंदमयकोश) में auto mode सहज स्वतः …. ।
आ॰ संस्कृति शर्मा जी ने शास्त्रीय संगीत व नृत्य के माध्यम से ईश्वरीय संदेश को सुना आत्मानंद को पाया उसका अनुभव युक्त शिक्षण दिया गया है ।
आ॰ सुभाष सिंह जी द्वारा जीवन के हर एक फार्मेट में कैसे आनंद का साक्षात्कार करें इसका ज्ञान विज्ञान वअनुभव युक्त शिक्षण दिया गया है ।
जिज्ञासा समाधान (आ॰ शिक्षक बैंच व श्री लाल बिहारी सिंह ‘बाबूजी’)
आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप है । आत्मा के आवरण @ पंचकोश अपरिष्कृत होने की वजह से बोधत्व नहीं होता है ।
पंचकोश परिष्कृत/ जागरण/ अनावरण उपरांत बोधत्व हो जाता है ।
गायत्री, सावित्री व सरस्वती – एक ही आदि शक्ति के विभिन्न स्थितियों में नामकरण हैं । यह समझने व समझाने हेतु मात्र है ।
यत्र तत्र सर्वत्र मूल मे वही हैं जिसके बोधत्व हेतु ‘उपासना, साधना व अराधना’ की जाती है ।
आत्मस्थिति (आत्मसत्ता का पदार्थ जगत पर नियंत्रण – मैं क्या हूँ @ मैं आत्मा हूँ का ज्ञान) में हम आत्मानंद में रमण करते हैं ।
आत्मविस्मृति (भुलक्कड़ी/ मैं शरीर हूँ) में हम विषयानंद में रमण करते हैं जो परिवर्तनशील होता है अर्थात् सुख-दुःखात्मक होता है ।
मां के हर एक शब्द/ रूप/ रस/ गंध/ स्पर्श में नवजात – कल्याण ग्रहण करता है । नवजात @ विशुद्ध चित्त – पूर्ण समर्पण से विलयन विसर्जन एकत्व संभव बन पड़ता है ।
अध्यात्म गुंगे के गुड़ की मिठास …. नेति नेति ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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