Spritual Science of Sex – 4
Aatmanusandhan – Online Global Class – 5 मार्च 2023 (5:00 am to 06:30 am) – Pragyakunj Sasaram _ प्रशिक्षक श्री लाल बिहारी सिंह
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
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Broadcasting: आ॰ अंकूर जी/ आ॰ अमन जी/ आ॰ नितिन जी
शिक्षक बैंच: आ॰ श्री लाल बिहारी सिंह जी
विषय: सृजन शक्ति का प्रेरणास्रोत काम (अध्यात्मिक काम विज्ञान)
तत्त्वदर्शियों के मतानुसार ‘काम‘ शक्ति:
– जीवन की समस्त हलचलों का आधार ।
– अभिनव सृजन की प्रेरक शक्ति ।
– प्रकृति में सौन्दर्य की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति ।
– प्राणियों में जीवन, शौर्य, पराक्रम, उत्साह व उमंग ।
– प्रकृति की समस्त गतियों की स्फुरणा है ।
काम शक्ति के दो रूप:-
1. प्रजनन
2. ज्ञान
मनुष्य के अंदर एक ही जीवनी ऊर्जा/ शक्ति निरंतर क्रियाशील:-
1. जब वह निम्नगामी है – काम वासना ।
2. जब वह उर्ध्वगामी है – कुण्डलिनी महाशक्ति ।
नर-पशु की काम वासना सतत नीचे की ओर बहती है ।
देव-मानव की काम शक्ति उर्ध्वमुखी/ अन्तर्मुखी है ।
नर-नारायण वे हैं जिनकी काम शक्ति स्थिर है, बहती नहीं ।
‘काम‘ का निम्नगामी प्रवाह (काम वासना/ कामुकता/ libido) मनुष्य को खोखला बना देता है । सामान्यतया आसक्तिवश मनुष्य इस महाशक्ति का दुरूपयोग विषय भोगों की लिप्सा में ही करते हैं ।
समाधान – कुण्डलिनी महाशक्ति @ काम ऊर्जा का उर्ध्वगमन:
– काम ऊर्जा/ शक्ति का प्रवाह बाहर होने के स्थान पर जब अंदर की ओर होने लगता है तब उसके वास्तविक स्वरूप व उद्देश्य का ज्ञान होता है ।
– काम के स्थूल आकर्षण का आध्यात्मिक प्रेम में परिवर्तित/ रूपांतरित होना ही उर्ध्वगमन है ।
– पंचकोशीक्रियायोग + कुण्डलिनी जागरण उर्ध्वगमन में प्रभावी हैं और इसके लाभ/ अनुदान को हम आत्मदर्शन व तत्त्वदर्शन @ बोधत्व में सुनियोजित कर सकते हैं ।
– युगनिर्माण सत्संकल्प का जीवन में रचाना, पचाना व बसाना ।
जीवनक्रम की सफलता के चार आधार:-
1. धर्म
2. अर्थ
3. काम
4. मोक्ष
काम को हेय तब से समझा जाने लगा जब से उसे यौनाचार के रूप में प्रतिपादित किया जाने लगा ।
वस्तुतः काम :
– चेतना की प्रगति व जड़ प्रकृति के सौन्दर्य का मूल आधार ।
– जड़ पदार्थ में ऋण व धन विद्युत के रूप में कार्यरत देखा जाता है ।
– प्राणियों में उत्साह, उल्लास, उमंग, पारस्परिक प्रेम सहयोग, भाव संवेदना, आत्मीयता के रूप में ।
– श्रेष्ठ उद्देश्य के लिए त्याग व बलिदान के रूप में ।
– विषय सुख की लालसा नहीं प्रत्युत् मौलिक सृजन का आधार है ।
काम ऊर्जा/ शक्ति:
– स्थूल शरीर में ओजस रूप में ।
– सुक्ष्म शरीर में तेजस रूप में ।
– कारण शरीर में वर्चस रूप में ।
ओजस्वी तेजस्वी वर्चस्वी भवः ।
‘काम‘ के इस उच्चस्तरीय ऊर्जा का जो रसास्वादन जो ना कर सका वह अर्धमृतकवत् जीवित रहेगा, उसे महत्वपूर्ण सफलताओं के दर्शन जीवन में कभी ना हो सकेंगे ।
जिज्ञासा समाधान
पंचकोश, आत्मा के आवरण हैं इसमें व्यष्टि भाव है । पंचकोश से बाहर निकलना @ परे जाना अर्थात् व्यष्टि का समष्टि में विलयन विसर्जन एकत्व ।
आत्मवत्सर्वभूतेषु व वसुधैवकुटुम्बकम को आत्मसात करने वाले ‘नर-नारायण‘ की श्रेणी में शामिल हो सकते हैं ।
वह व्यक्तित्व जो विषय भोग की लालसा में स्वार्थवश अन्य प्राणी को कष्ट/ पीड़ा/ प्रताड़ना देते हैं वे ‘नर-पिशाच‘ की श्रेणी में रखे जाते हैं ।
पेट प्रजनन तक सीमित नर-पशु ।
शरीर/ वयष्टि/ ससीम की क्षमता सीमित है एवं आत्मा/ समष्टि/ असीम की असीमित । भाव संवेदना का उत्कृष्ट स्वरूप प्रेम है; उसे ईश्वर/ समष्टि के साथ जोड़ (योग) देने पर भक्ति बन जाता है ।
विधेयात्मक अर्थ को सत्य समझ सकते हैं ।
अनुशासन विधि व्यवस्था को बनाए रखने में सहयोगी हैं @ ईशानुशासनं स्वीकरोमि । आत्मानुशासन में रहने आले व्यक्तित्व के कार्य विधि व्यवस्था में सहयोगी रहते हैं ।
भावातीतं त्रिगुणरहितं …. नेति नेति ।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
सार-संक्षेपक: विष्णु आनन्द
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