Curiosity Solution – 01 Jan 2024
मुक्तिकोपनिषद् (दुर्लभ) में … शुभ वासनाओं में ही मन लगाना चाहिए क्योंकि श्रेष्ठ वासनाओं की वृद्धि से दोष उत्पन्न नही होते का क्या अर्थ है?
उत्तर: हर छन्दो, शब्दों में गणेश और सरस्वती है इसलिए शब्दों का दुरुपयोग न करे, शब्दों का सात्विक रूप भी होता है, प्राण भी होता है
वासना (हृदय में जो वास करता है) -> धारणा को कहते है।
काम वासना ही मोक्ष दिलाएंगी, काम का अर्थ खराब नही है क्योंकि कामनाएं अगर अतृप्त रही तो फिर जन्म लेना होगा।
कामना ऐसी चीज की करे जो स्वंय तृप्त हो, वह केवल परमात्मा है, जो स्वंय ही तृप्त नहीं है वह हमें कैसे तृप्ति दे सकता है जैसे संसार अपूर्ण / अतृप्त है इसलिए यह वासना पतन की ओर ले जाएगी।
मोक्ष के 4 धर्म – अर्थ – काम – मोक्ष।
यदि आत्मचिंतन सोहम् भाव रहे तो निश्चय ही मोक्ष दिला देगी।
काम वासना से मोक्ष बहुत जल्दी मिलेगा यदि उसे कुण्डलिनी जागरण कर आत्मा को पाने मे लगा दे
अगर हमारी वासना (चाह) (पाने का जूनून) श्रेष्ठता की दिशा मे लगी है तो मोक्ष पा लेगा
हर जगह ईश्वर घुला है, श्रेष्ठ चुनने को गायंत्री साधना कहते हैं।
सभी तरह के दुःखों का हमेशा के लिए अन्त हो जाना मोक्ष है।
योगतत्वोपनिषद् में जीव जिस योनि में जन्म लिया, उस योनि में पुनः रमण करता है . . . माता, बहन और पत्नी हो सकती है, क्या पिता नही हो सकती?
उत्तर: पिता भी हो सकती है, केवल चाह के उपर है।
वह तब तक स्त्री के रूप में जन्म लेगी जब तक उसे स्त्री रूपी शरीर की चाह होगी।
आत्मा केवल प्रकाश कण जैसा है, न उसका लिंग है, ना ही उसका हाथ पाँव ..।
हृदय संस्थान में जो कमल पुष्प है उसके नीचे बिंदु की ओर है तथा नाल उपर की ओर है
– व्यक्ति का स्वभाव है कि वह संसार में अधिक रचा पचा है, इसलिए कमल का नाल नीचे है, उसे उपर कर देंगे तो सहस्रार कमल हो जाएगा।
नारदपरिव्राजकोपनिषद् में 4 प्रकार के भेद अनुज्ञात्री, अनुज्ञा, विकल्प कहे गये है का क्या अर्थ है?
उत्तर: अनुज्ञात्री -> जानने योग्य, जानने का ज्ञान, हमारे भीतर ही है वही जानने योग्य है, उसी को जानने के लिए हम जन्म लिए है
अनुज्ञात -> जान लिया या ईश्वरीय चेतना से ओत प्रोत
अविकल्प -> उसका कोई विकल्प नही, वही सत्य है
ओत -> सर्वव्यापी / Omnipresent
गीता के 700 श्लोको को बोलने में समय लगा तो सामने वाली सेना की मनःस्थिति क्या रही होगी, वे उस समय क्या कर रहे थे?
उत्तर: उस समय रुक गया था, समय जब रुक जाता है तब कोई घटना नही होती, सृष्टि स्थिर हो गई
दो घटनाओं के बीच के अंतर को समय कहते है
श्री कृष्ण ने वे श्लोक Nano Seconds तथा परा वाणी में सुनाए थे।
ऐसा समाधि की अवस्था में हो सकता है।
काल स्थिर होने से कम समय में बात हो गई थी।
अभी गीता के शब्दो को कैसे पकड़ेंगे?
उत्तर: यदि High Dimension में कुछ है तो उसे Compress भी कर सकते है। सारा बह्माण्ड एक Nano Particle से निकला है।
सूर्य की 12 किरणों रश्मियों के क्या अर्थ है?
उत्तर: -> संकोचन प्रणाली
– नलिका -> बहाव
– वारूणी -> वरुण / जल
– वर्ण -> रंग
अथातो बह्म जिज्ञासा का आवेग कब आता है कृपया स्पष्ट करें?
उत्तर: जब व्यक्ति संसार के थपेड़ो से लहु लुहान होकर अस्त पस्त हो जाता है -> विषाद की चरम सीमा जब आती है, उस अवस्था में अथातो आया।
जिस पर भरोसा किया, जिसके लिए जिया, वे सब स्वार्थी निकले, सब भूल गए।
यही विषाद की चरम सीमा है, वही से आत्म ज्ञान की शुरूआत होती है।
जब टूटने की स्थिति आती है तब ईश्वर अवतार ले लेता है, ईश्वर चमक/विचार या अन्य रूप में आता है।
यह स्थिति (अथातो) कभी भी आ सकती है, जब संसार से कोई Expectation न रहे तब लगता है कि अब शेष क्या पाना बाकी है, तब ईश्वर को जानने के प्रति जूनून आएगा तब वह ईश्वर को पा लेगा।
Pineal को सहस्रार से तथा Pitutary को आज्ञा चक्र की दृष्टि से देखा जा सकता है?
उत्तर: देखा जा सकता है क्योंकि आत्म साक्षात्कार भी वहीं होता है तथा परमात्म साक्षात्कार भी वहीं होता है।
यहाँ त्रिकुटि में ईश्वर तत्व व परमात्म तत्व मिलते है, इसी की ईश्वर, जीव व प्रकृति का मिलन बिंदु कहा गया है।
क्या स्वाधिष्ठान चक्र व मणिपुर चक्र को नाभि चक्र कहा जा सकता है?
उत्तर: कह सकते हैं – 9 इंच का एक गुच्छा/कंद बना दे तो एक कंद आएगा, इसे नाभि कंद कहेगेयही अग्नि, जल, पृथ्वी मिलकर स्थूल शरीर का प्रतिनिधित्व करेगा
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