Curiosity Solution – 03 Jan 2024
मुक्तिकोपनिषद् (दुर्लभ) में … सदयुक्ति के द्वारा आत्मा का ध्यान चिंतन करने के सिवाय मन को अपने वश में करने का अन्य कोई उपाय नहीं है का क्या अर्थ है?
- सदयुक्ति -> अच्छे प्रयास / उपाय / साधन / साधना, जिसका नुकसान न हो सदयुक्ति है जैसा कि पंचकोश के 19 क्रिया योग (पंचकोशों के जागरण के उपाय)।
- विज्ञानमय कोश में जब पहुँच जाएंगे तब मन का प्रवाह संसार की तरफ बिल्कुल रुक जाएगा।
- यहाँ पहुंचने पर संसार में इतनी शक्ति नही कि यह संसार किसी को आर्कषित कर ले।
- हमने इतने शक्तिशाली शरीर को इतना कमजोर बना लिया कि साधारण सी पंच तन्मात्रायें भी प्रभावित कर रही है।
पंचबह्मोपनिषद् में शाकल्य ने पिपलाद से पूछा कि सर्वप्रथम किसकी उत्पत्ति हुई तो उन्होने बताया कि पहले सद्योजात, अघोर, वामदेव, तत्त्वपुरुष तथा ईशान की उत्पत्ति को सरल शब्दों में बताए।
ये पाँच कोशों के नाम हैं।
- सद्योजात -> अन्नमय कोश है, यही पांचों कोशों का आधार है, निरोगी काया का एक अलग ही तेज / सुख होता है, यही प्राणाग्नि है।
- अघोर -> अब इसे पापरहित कर दोष दुर्गुणो को समाप्त करना है, संसार से डर खत्म करे, निष्पाप (पापरहित) को अघोर कहते है, प्राणबल के तेज से अपने सारे कल्मश को समाप्त करे।
- वामदेव मनोमय कोश है, यही योगाग्नि भी है।
- फिर तत्त्वपुरुष से आत्मा को जाने, उस पुरुष को जाने जो हमारे भीतर ईश्वर रूप में है।
- ईशान आनन्दमय कोश / बह्माग्नि-> परबह्म को सदाशिव / ईशान कह दिया गया।
कात्यायनियोपनिषद् में … उस परबह्म को जानकर सभी इद्रियों को अपने वश में कर लेता है … कही आश्रम में वास करता है … आदि पांच तन्मात्राओं को स्वीकार करता हुआ मोक्ष को प्राप्त करता है . . . का क्या अर्थ है?
- वासना तृष्णा अहंता शांत करो।
- मन शान्त हो गया तो आत्मानुसंधान करे।
- मन शांत नही हुआ तो आत्मा की प्राप्ति में अवरोध उत्पन्न होगा।
- फिर आत्मानुसंधान करे -> आश्रम में जाकर या घर पर अकेले में रहकर Research करे।
क्या सभी विचार, मन के बुलबुले हैं इनके नियंत्रण बुद्धि और आत्मा से कैसे करे कृप्या स्पष्ट करे?
- विचार, मन का वाष्पीकरण है।
- मन की जिन विषयों से आसक्ति है, वह अपने में समेटकर आत्मा के साथ में पूर्व जन्मों से ही आदतों के रूप में लेकर आता है।
- परिस्थिति आने पर वे सब इस जन्म में बाहर निकल आते हैं।
- अभी अनेक विचार बुलबुलों के रूप में आ रहे हैं।
- तो अभी देखे कि कितनी सामर्थ्य है, कितने विचार को Fullfill कर सकते हैं तथा पहले कौन सा काम जरूरी है, यह देखे तथा निर्णय ले।
- Priority wise सभी कार्यों को अच्छे से किया जा सकता है।
अवधूत की स्थिति क्या आत्मज्ञान के बाद मिलती है या पहले भी यह स्थिति प्राप्त की जा सकती है?
- अवधूतोपनिषद् में सांकृति ने दत्तात्तेय से प्रश्न किया है तो दत्तात्रेय का ज्ञान अपने अनुभव वाला ज्ञान है तथा सांकृति का अनुभव नही है उसके लिए अवधूत का ज्ञान अनुभव से पहले वाला है।
- सांकृति ने जब Practical करके वह ज्ञान पा लिया तब कहा कि मै धन्य हो गया तथा मेरे लिए अब पाने को कुछ भी शेष नहीं रहा, जिन्हे आत्मज्ञान नही हुआ वे ध्यान लगाएं तथा जिसने सब पा लिया उसे ध्यान की आवश्यकता नहीं।
- Practical करके ही ज्ञान की प्राप्ति होती है।
अवधूतोपनिषद् में आया है कि जिस प्रकार चारो ओर से परिपूर्ण होने पर भी समुंद्र में जल प्रविष्ट होता है वैसे ही योगी सभी विषयों के रहने पर अचल रहता है का क्या अर्थ है?
- सारी नदियां समुद्र में विलीन हो रही है परन्तु उसका स्तर नही बढ़ा पाती।
- संसार में समुद्र की तरह जीयो।
- योगी के सामने सभी तरह के रस उसे आकृषित नही कर सकते।
जानकारी होते हुए भी कोई काम करते हुए साहस की कमी क्यों होती है?
- प्राणमय कोश कमजोर होने पर ऐसा होता है।
- प्राणमय कोश को जगाने वा अभ्यास करना होगा।
- कुछ प्राणमय कोश के practicals करने चाहिए।
- समाज में कुछ बहादुरी का काम करना होगा तभी डर खत्म होगा।
मोर विष खाकर भी इतना सुंदर क्यों होता है? उसका भोजन सांप है फिर भी उस भोजन का प्रभाव उस पर क्यों नहीं पड़ता?
- मोर की सुन्दरता सांप खाने से नही अपितु मयूरासन से है।
- मयूरासन से जठराग्नि बढ जाती है तथा शरीर में विष पचाने की क्षमता विकसित होती है।
- मोर से हमें एक शिक्षा यह भी मिलती है कि ईश्वर का रंग ऐसा चढे कि उतरे नहीं।
- मोर के पंख की विशेषता है कि उसका पंख 100 वर्षो तक धूप मे रखे तो भी खराब नही होगा।
- सांप को खाकर पचा लेता है।
- एक प्रेरणा देता है कि शरीर में भी कुण्डलिनी सर्प है जो उसे खाएगा वह बह्म बन जाएगा व उसका जीवन सुंदर हो जाएगा।
- हमे उसका दार्शनिक पक्ष लेना चाहिए।
- वह उन्ही दुष्टों (सर्पो) को खाता है, जो दुष्टता करते है।
- उन सर्पों को कुचलता है जो दूसरों को परेशान करते है।
- वेद का आदेश है जो वेद विरुद्ध आचरण करे ऐसे सर्पों को कुचल डालो।
कार्तिकेय जी ने मयूर को वाहन क्यों बनाया?
मयूर के गुणों के कारण उसे बनाया तथा उसका भौतिक पक्ष भी दिया है।
मयूर की गति तेज होती है, वह सरस्वती का वाहन है, उसमें गति के साथ बुद्धि भी अधिक है।
एक दर्शन पक्ष यह भी दिया है कि असुरों को ही जहरीले सर्प कहा है तथा जब कुण्डलिनी सुप्त अवस्था में होती है या नीचे जाती है तब विष उगलती है।
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