पंचकोश जिज्ञासा समाधान (10-09-2024)
आज की कक्षा (10-09-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-
शिवोपनिषद् में आया है कि आग्नेय – वारूण – मान्त्र – वायव्य – ऐन्द्र – मानस – शांतितोय – ज्ञानस्नान, ये 8 स्नान कहे गए है, रुद्र मन्त्र के साथ आग्नेय मंत्र का स्नान श्रेष्ठ है, जल में डुबकी लगाकर किया गया वारुण स्नान श्रेष्ठ है सिर को हाथ से स्पर्श कर शिव के 11वे मंत्र जपकर शांत चित्त से शिव का ध्यान करें, यह मंत्र स्नान भी उत्तम बताया है गोओं के खुरों से उठी हुई रेनू (धूल) से जो उड़ रही हो, उससे किया गया स्नान वायव्यस्नान है, इसे मारुत मंत्र जपते हुए करना चाहिए। सूर्य के बादलों से गिरे होने पर वर्षा के जल से पूर्वाभिमुख होकर आकाश मंत्र जपते हुएकिया गया स्नान ऐन्द्र स्नान है . . . का क्या अर्थ है
- हम देवता बनकर देवताओं की साधना करें, अपने आप को देवता बनाए
- जो अवधूत व अद्योरी भस्म स्नान करते हैं – यह 10 स्नान में आता है
- किसी भी तरह से शरीर व मन शुद्ध करना ही मुख्य उद्देश्य है
- गायों के गव्य या उनके सानिध्य में रहने वाला वायु भी प्राणो को शुद्ध करने वाला होता है
- हम अपने को परिशोधित करके Refine करे -> यही तप है
- तथा सफाई के बाद अपने अच्छे गुणों को बढ़ाना -> यह सभी योग के अन्तर्गत आता है
- तप व योग दोनो चाहिए
- घुलाने की प्रक्रिया में थोडा Refine भी कर ले
- इंद्रियों का मानसिक संयम -> ऐन्द्र स्नान कहा गया -> यहा संकल्प भाव से मानसिक स्नान करवा दिया गया है
- पहले मनोभूमि गहराई से बना ली जाए तब साधना का लाभ अधिक मिलता है
आत्मबोधोपनिषद् में आया है कि मेरी दृष्टि से प्रपंच निवृत हो गया है तब भी सर्वदा वह सत्य के सदृश्य प्रतिभाषित होता है, निश्चय ही सर्प आदि में जिस प्रकार रस्सी का अस्तित्व है उसी प्रकार ही प्रपंच का भी अस्तित्व है, केवल मात्र बह्म सत्ता के आधार पर ही प्रपंच का व्यवहार है, वह जगत तो है ही नहीं, का क्या अर्थ है
- वैज्ञानिक दृष्टि से (ज्ञान का नेत्र) (Third Eye से) देख लेने पर लगता है यहा केवल तरंग है वस्तु नही, संसार उडती परमाणुओं की धूल भर है
- अपनी आंखो से देखने पर यह ठोस दिखता है
- ज्ञान मिलने के बाद भी क्योंकि आंखो की बनावट ऐसी है कि प्रत्येक वस्तु तरंग रूप में होते हुए भी ठोस ही दिखाई देगा
- आंखो से x-ray निकाल लेते तो हमें प्राणियों की केवल हड्डिया दिखाई देती
- लाल रंग का कपडा भी यदि हरे रंग की लाईट में देखा जाए तो काला दिखाई देगा
- पेड की पत्तिया हरी दिखती है परन्तु वास्तव में वे हरी नही होती, जो Reflect कर रहा है वह रंग दिख रहा है
- प्रकाश मे Wavelength व Frequency भर है तथा Wavelength व .Frequency का वास्तव में कोई रंग नही होता
- वास्तव में कुछ है परन्तु कुछ का कुछ दिख रहा है
- प्रेतो का सूक्ष्म शरीर होता है, वे दीवारो में से कही भी आर या पार आ जा सकते हैं, उनके लिए दीवार रूकावट नही है
- इसलिए कहा जाता है कि हमारे ज्ञान के नेत्र से वस्तु का अस्तित्व नहीं है परन्तु स्थूल नेत्रों से दिखाई पड रहा है
- अब पहले जैसा चिपकाव नही रह गया है
- यर्थात ज्ञान / यर्थातता को जानने को आत्मा ज्ञान कहते हैं
मैत्रियोपनिषद् में आया है कि जो धन में बड़ा है, जो आयु में बडा है अथवा जो विद्या में बड़ा है, वे सब अनुभव में नौकर अथवा शिष्य की भांति ही है, का क्या अर्थ है
- अनुभव किसी को भी ऐसे ही नही हो सकता, केवल Practical करने पर ही अनुभव होता है
- चक्रो का Nature / ज्ञान पता है परन्तु कुण्डलिनी जागरण का प्रयास / अभ्यास नहीं किया तो वह जानकारी किसी काम की नहीं क्योंकि यदि वह अभ्यास करता तो चक्रो के माध्याम से अपना मणिपुर चक्र जगाकर, केवल सुर्य की किरणो पर ही बिना भोजन के जीवित रह सकता है
- अनुभव केवल Practical वाला ही काम आता है
- सासाराम में एक गाड़ी ठीक करने वाला कारीगर, केवल गाड़ी की आवाज से कार की समस्या बता देता था तो अनुभव का यहा बहुत महत्व है
- विद्या = आत्मिकी ज्ञान
- अविद्या = भौतिकी विज्ञान
- दोनो विद्याओं में Practical अनिवार्य है
- आत्मा की जानकारी व अनुभव पा लेना दोनां अलग है
- अनुभव ही Traveller Cheque है
- अनुभव के बाद आप भम्र में नहीं रहेंगे तथा कोई हमें मुर्ख नही बना सकता
- हमारी Report में cervix वाले Area में समस्या बताई गई परन्तु अनुभवी डाक्टर ने लंबर Region में आपरेशन करके हमें ठीक किया
- जो प्रैक्टिस लगातार कर रहा है वह बहुत आगे निकल जाएगा
अग्निहोत्र व ज्ञानयज्ञ दोनों करना अनिवार्य है या एक करने से दूसरा स्वयं हो जाएगा
- अपने स्वभाव के अनुसार जो सरल लगे वह पकड़ ले, हवन भी यदि खास मनोभूमि से करेगे तो आत्मा का साक्षात्कार होगा
- उस समय आपको घी – लकड़ी – शाकल्य – हवन कुण्ड, यज्ञ करने वाला . . . सबको बह्म माने, यह चेतना की एक उच्च अवस्था है
- तब उस अवस्था में बह्म से बह्म की प्राप्ति होगी
- कामना वाला यज्ञ बंधन में डालेगा
- भावनाएं व क्रियाएं श्रेष्ठ हो तभी जाकर वह यज्ञ की श्रेणी में आता है
प्राण में अपान का हवन क्या है, यह कैसे हो सकता है
- यह प्राणायाम का ही प्रकार है
- प्राणायाम से भी आत्म साक्षात्कार कर सकते
- बहुत से मानसिक रोग केवल प्राणायाम से ही ठीक हो जाते हैं
- अज्ञानता का जो आवरण ज्ञान पर पड़ा हुआ है यह उसको भी जला डालता है
- प्राण ही अग्नि बनकर सारे शरीर में चल रहा है, प्राणायाम करने से वह आत्माग्नि व बह्माग्नि बनकर प्रकट हो जाएगा
- प्राणायाम श्रेष्ठ कर्म में आता है
- कुण्डलिनी जागरण करना (अपान में प्राण की आहुति) -> अपानन क्रिया नीचे से शक्तिचालीनी से की जाती है तथा प्राणन उपर Meditation से की जाती है वहा पर मन भी लगाया जाए
- अपान को कुण्ड बनाकर उसमें उपर से प्राण का ध्यान करके आहुति डालना, दोनो को शक्तिचालीनी से चक्रों पर ध्यान करने Contract – Relax किया जाता है, इस प्रकार हम प्राण की आहुति डालते है
- प्राण में अपान -> अपने स्थूल शरीर की शक्ति / पदार्थ की शक्ति / मन की शक्ति को यदि हम बह्म में झोकने से / सहस्तार में मिलाने से बह्म की प्राप्ति होती है
- ये दोनो तरीके है
- 14 प्रकार के यज्ञ बताए गया है -> विषयो की इद्रियों में आहुति डालते हैं, अपने कर्म से भी हम बह्म को प्राप्त कर सकते है, यदि हम अपनी मनोभूमि में खास तरह से Filteration करे
-> इंद्रियो की आत्मा में आहुति -> जब हम संयम करके Misuse रोकते हो
-> यदि ध्यान कर रहे हो तो इसे आत्मा की परमात्मा में आहुति कहा जाएगा
प्रज्ञोपनिषद् के 6वे मंडल में ऋषियो का कार्य देवताओ से सम्पर्क साधने व अग्नि और उनके अनुदानों से धरती के वैभव और मनुष्यों के वर्चस्व में अभिवृद्धि करने का नियत हुआ, वे स्वयं में पूर्ण रूपेण आप्तकाम व निष्प्रह थे, का क्या अर्थ है
- वे ऋषि जो आत्मिक विकास कर लिए थे तथा सभी लोक जान चुके थे, समापन के समय यह बात आई होगी कि सभी ऋषि जब ज्ञान पा लिए थे तथा पहले से साधक भी थे, वे सभी तृप्त आत्माएं थी
- ऐसे अनुभवी लोग जो आत्मिकी में उच्च स्थिति में हो तथा भौतिकी में भी लाभ दे सकते हो तो ऐसे ऋषि अपने लिए अलग अलग कार्यक्षेत्र चुनते थे -> एक एक ऋषि परम्परा को चलाने की जिम्मेदारी थी
- किसी को योग का अनुभव व रूचि थी, कोई आर्युवेद का ज्ञान रखता था व उसी क्षेत्र में कार्य करने की रूचि थी
- व्यक्ति का स्वभाव बदल सकता है, जडी बूटी का स्वभाव भी बदल सकता है तो आज के समय के अनुरूप नए नए रोगो के लिए कौन सी जडी बूटि चाहिए, यह आज के अनुसार Research करना पड़ेगा
- गुड़हल का लाल फूल कागज पर रगडने से नीला हो जाता है – उससे सफेद दाग ठीक होते है
- आज के समय में नई औषधियों पर Practical कर के सही जानकारी खोजकर, रोगों को ठीक करेंगे तो उससे भी जनकल्याण होगा
- प्रत्येक ऋषि का अपना ज्ञान तपस्या से प्राप्त होता है तथा वह ऋषि उसी क्षेत्र में आगे बढ़ता है
- किसी वैज्ञानिक को ज्ञान व विज्ञान (Atomic Science) को साथ लेकर चलना है तो वह कणाद परम्परा को लेकर चले
- इसी प्रकार सब एक दूसरे के पूरक होगे व धरती भी स्वर्ग बनेगी, यही संकल्प ऋषियों के द्वारा मिलकर लिया गया
- सार यही है कि हम पहले अपनी प्रतिभा को विकसित करे और अपने को धन्य बनाए तथा फिर अन्यों को भी लाभान्वित करे
क्या मृत्यु आदि की स्थिति में सूतक मनोस्थिति को कह्ते है इसमें आहार विहार क्या होना चाहिए कृपया प्रकाश डाला जाय
- सूतक मनः स्थिति को ही कहते है, मनः स्थिति ही मुख्य है
- घर में यदि किसी ने प्राण छोड़ा है तो उस समय यदि उन्हे कोई बीमारी हो तो शरीर से कीटाणु निकलना शुरू हो जाते है तथा 10-15 फीट की उचाई तक जाकर दीवारों में भी चिपक जाते है
- इसलिए दाहसंस्कार के बाद घर में साफ सफाई भी करना होता है तो वहा सूतक काम आ सकता है
- उनके कपडो को भी शमशान में जला दिया जाता है, नीम की पत्तियो से सफाई की जाती है तथा यह Sterlization प्रक्रिया है, यह सूतक का एक स्वरूप है
- बाकी सूतक का अन्य स्वरूप मनोभूमि का है जिसमें सभी शोकग्रस्त हो गए है
- इस शोकग्रस्त स्थिति को हटाने के लिए गरुडपुराण या कठोपनिषद या गीता का दूसरा अध्याय का पाठ करे कि आत्मा मरती नही व कर्म फल के आधार पर उसकी अपनी गति है तब
- शोक थोडा कम हो जाता है तथा शांति मिलती है
- अपनो को मोहबद्धता भी अधिक होती है
- तो इस स्थिति से उठने के लिए 9 दिन का एक अनुष्ठान (24000 का) व जप किया जाए तो सभी (मृतात्मा व स्वयं दोनो) को लाभ भी मिल जाएगा, उस समय अधिक तला भूना नही खाया जाता
- हल्दी औषधि के रूप में ले सकते है तथा भोजन कम्र सामान्य बना रहे
- पंचयज्ञ में बह्मयज्ञ होता है जप के लिए
- देवयज्ञ करे -> बुराई छोडने के लिए
- उन गलतियो को अन्य संबंधी न दोहराए तो इससे उस मृतात्मा को बड़ी शांति मिलती है
- पितृ यज्ञ भी पिण्डदान तर्पण के रूप में किए जाते है
- भूत यज्ञ में सभी के लिए (गायो कुत्तो कौओ, चीटी . . . ) ग्रास निकाला जाता है कि जो भी पितर नीचे की योनियो में गए हो उन्हे हम Upgrade कर उपर ले आए
- मनुष्य यज्ञ के लिए कुछ दान पुण्य कर लिए जाते है, जब जीवित पितर है तो लोक कल्याण के लिए उनकी सम्पत्ति का कुछ अंश हम दे दे, यह सब करके श्रद्धा बनाई जाती है कि एक ऋषि परम्परा चल पड़े 🙏
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