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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (31-12-2024)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (31-12-2024)

आज की कक्षा (31-12-2024) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

एकाक्षरोपनिषद् में आया है कि विभिन्न रूपो वाले आप ही सुर्य मंडल में विद्यमान तथा अन्यत्र अज्ञान अंधकार को घनिष्ट करते हुए प्रतिष्ठित है, इस विराट स्वरूप के हृदयरूपी आकाश में ब्रह्माण्ड गर्भिणी सुनाभि स्थित है, वह भी आप ही है, सुर्य आदि में जो प्रकाशमान रश्मियां है वे सब आप ही की प्रकाश किरणे है, यहा ब्रह्माण्ड गर्भिणी और सुनाभि का क्या अर्थ है

  • सुनाभी = ॐ के रूप में आप पूरे ब्रह्माण्ड में सम्पूर्ण रूप से व्याप्त है
  • ॐ ब्रह्म का श्रेष्ठ नाम है, ध्यान करने योग्य है, पापरहित है, विश्व ब्रह्माण्ड की आत्मा है
  • आत्मा को नाभी / धुरी / केन्द्र को कहते है
  • हर जगह का केन्द्र ईश्वर / आत्मा है तथा उसी की धुरी में सब दौड रहे हैं
  • सब जगह का केंद्र ईश्वर है, सारी सृष्टि को ईश्वर ही चलाता है
    -ब्रह्माण्ड गर्भिणी = ब्रह्माण्ड को आप अपने गर्भ में धारण करते है तथा बह्माण्ड में केवल आप ही व्याप्त है
  • हिरण्यगर्भ = गर्भधमा = जितने भी ब्रह्माण्ड या सुर्य निकले है तो इन सभी ब्रह्माण्डो को आप ही अपने गर्भ में धारण करते हैं

जिस प्रकार राम जी माता सीता का हरण करने से रोक सकते थे और भगवान कृष्ण भी चिरहरण करने से रोक सकते थे लेकिन वे प्रकृति में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझे लेकिन हम मनुष्य हमेशा हस्तक्षेप करते है जिसके कारण स्वरूप प्राकृतिक आपदाए आती रहती है लेकिन इन सबसे भी हम नही समझते है तो इस परिस्थिति में आज के सनय में हमें क्या संदेश ग्रहण करना चाहिए

  • अनावश्यक रूप से किसी को भी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, उसे हमें धैयपूर्वक सुनना चाहिए
  • वकील को जज पहले सुनता है
  • Patient को डाक्टर अच्छे से सुनता है
  • जब तक ठीक से सुनेगे नहीं उचित समाधान नही दे सकते
  • ईश्वर ने कर्म फल की व्यवस्था के आधार पर सृष्टि बना दी तो प्रत्येक जीवो की क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति ही देगी
  • उपहार भी प्रकृति देगी, दण्ड भी प्रकृति ही देगी, अपने में विलीन भी प्रकृति ही करेगी
  • ईश्वर ने स्वयं चालित सृष्टि बना दी है तो इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है,
  • ईश्वर (विष्णु) स्वयं गहरी निद्रा में क्षीर सागर में सो रहे है, ईश्वर (विष्णु) ने जो ब्रह्माण्ड बनाया है वह इतना स्वयंचालित व बेहतरीन है कि उसमे हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है, प्रकृति अपने आप में पूरी तरह समर्थ है
  • प्लूटो का कहना था कि बच्चो के क्रिया कलापो मे ज्यादा हस्तक्षेप न करे नहीं तो तुम उसे अपने जैसा मूर्ख बना दोगे / अपना Clone बना दोगे, उसकी अपनी प्रवृति की हत्या हो जाएगी,
  • श्री कृष्ण ने भी गीता का सारा ज्ञान दे दिया फिर भी हस्तक्षेप नहीं किया कि तुम सभी हमारी बात मानो ही मानो, यह केवल तुम्हारे उपर है कि तुम क्या Decision लो
  • ईश्वर ने सभी मनुष्यों को एक अधिकार दिया कि सुने सबकी परन्तु अपने मन के अनुरूप निर्णय ले कि क्या करना है तथा वह अपने स्वं विवेक से निर्णय ले, उसका आत्मिक विकास तभी होगा
  • कृष्ण से जब सहयोग मांगा तभी उन्होंने सहयोग दिया, जिसे अनावश्यक सहयोग देगे तो वह पंगु हो जाएगा तथा उसकी प्रगति रुक जाएगी, इसको भी आध्यात्मक crime कहा जाता है
  • बिना मदद की ज़रूरत के यदि किसी की मदद करते जाएंगे तो आदमी अपना भी विश्वास खो देगा तथा यह समझेगा कि इनका तो काम ही अनावश्यक टांग अडाते रहना है
  • गुरुजी से बिना पूछे वे भी नही बताएंगे
  • हम अपनी जीवन शैली से अच्छे रास्ते पर चलने की प्रेरणा भर दे सकते है, अपने को ऐसा बनाए कि दूसरे  को प्रवचन न देना पडे तथा वह स्वंय ही प्रेरणा लेकर कार्य करे
  • सार्थक व प्रभावी उपदेश वह है जो वाणी से नहीं आचरण से दिया जाए, वह उपदेश अधिक प्रभावी होता है . . .
  • मायावी को मायावी तरीके से ही मारा जाता है

भोग इच्छा ही बंधन कही गई है और उसका परित्याग ही मोक्ष कहलाता है, मन की प्रगति का कारण उसका नष्ट होना है, मन का नाश सौभाग्यवान पुरुषो की पहचान है, ज्ञानी पुरुषो के मन का नाश हो जाता है, अज्ञानी के लिए मन बंधन का कारण है, ज्ञानी पुरुषों के लिए मन न तो आनन्दरूप है तथा ना ही आनन्द रहित है, उनके लिए वह चल – अचल, स्थिर – अस्थिर व सत – असत भी नही है अथवा इसके मध्य की स्थिति वाला भी नही है, अखण्ड चेतन सत्ता सर्वव्यापिक होते हुए भी उसी प्रकार दृष्टिगोचर नहीं होती, जिस प्रकार चित्त में आलोकित होने वाला आकाश सूक्ष्मता के कारण दिखाई नहीं देता, का क्या अर्थ है

  • चेतना को परिष्कृत करने की बात यहा की गई है, जो दिखाई नहीं देती लेकिन सारा क्रिया कलाप उसी के माध्यम से होता है
  • जितने भी ऋषि है वे सभी चित्त का परिष्कार ही किए है
  • ज्ञानेंद्रियों से हम अपने विषयों को भोगते है, भोगने का अर्थ उसका उपयोग करते है तथा उसके भोग का आनन्द लेते हैं
  • भोगइच्छा (भोगेच्छा) का अर्थ है कि आनन्द को बाहर खोजना, मछली पानी में रहकर पानी ढूंढ रही है
  • जबकी आनन्द का समुद्र भीतर ही है, जो लोग बाहर खोजते है वे मृग मारीचिका की तरह कस्तुरी नाभी में होते हुए भी बाहर उसकी सुगन्ध को खोज रहे है
  • जो भीतर ढूढे वही पा लेता है
  • भोगइच्छा की कल्पना जो बाहर करते है, वही चित्त का भटकाव है
  • जीवन कल्पवृक्ष है तथा सबसे बड़ा देवता इसमें आत्मा है, आत्म साधना का ही महत्व यहा बताया गया है, आत्मा वारे ज्ञाताव्य, आत्मा वारे श्रोतव्य, मनतव्य, ध्यातव्य
  • इस संसार में आत्मा जी जानने योग्य है, क्योंकि अपने भीतर उसी में ही समस्त गुण है
  • जो भी रिद्विया – सिद्धिया मिलती है, सब भीतर ही से मिलती है
  • वह भोग बाहर की चीजों का आनन्द के लिए कर रहा है, survival के लिए भोग करना उसका कर्तव्य भी है
  • हमारे भीतर का ही आनन्द निकलकर तथा टकराकर वापस हम तक आया है परन्तु हम श्रेय वस्तु को देते है

पैगलोपनिषद् में पैंगल ऋषि याज्ञवल्क्य से सृष्टि की रचना का रहस्य पूछते है तो वे बताते हैं कि जिस प्रकार मरूस्थल में जल, सीप में रजत, स्थाणु में पुरुष और स्फटिक में रेखा का आभास होता है, उसी प्रकार उस (ब्रह्म) से रक्त (लाल), श्वेत और कृष्ण वर्णा (सत – रज – तप रूपी) मूल प्रकृति उत्पन्न हुई, जिसमें तीनों गुण समानावस्था में विद्यमान थे, उससे जो प्रतिबिम्बित हुआ उसे साक्षी चैतन्य कहा गया फिर आगे आता है कि वह (मूल प्रकृति) जब पुनः विकार युक्त हो गई, तब सत्वगुण युक्त अव्यक्त आवरण शक्ति कहलाई, जो ईश्वर उसमें प्रतिबिंबित हुआ वह चैतन्य था, यहा पहले साक्षी चैतन्य आया तथा यहा चैतन्य शब्द आया, का क्या अर्थ है

  • परब्रह्म कछ करता नहीं है इसलिए उसे अकर्ता कहा गया, वह साक्षी चैतन्य है
  • एक ही वृक्ष पर दो पक्षी एक साथ रहते है, एक कर्मफल को भोगता है तथा दूसरा केवल साक्षी चैतन्य है, वह केवल साक्षी भाव से देखता भर है
  • परब्रह्म सृष्टि के क्रिया कलापो को साक्षी भाव से देखता भर है, भोगने वाली सारी प्रकृति है
  • प्रवृति त्रिगुणात्मक है
  1. श्वेत सत
  2. कृष्ण तम
  3. लाल रज
  • जब तीनो गुण एक समान हो तब उसे अव्यक्त कहेंगे, तब उसकी व्याख्या कौन करेगा कि कौन सा गुण है, जब तक तीनो गुण में से कोई एक गुण बाहर नहीं निकलेगा तो हम व्याख्या नहीं कर सकते
  • यदि कोई आदमी चुपचाप बैठा है तो हम व्याख्या नही कर सकते कि यह कौन है -> यह इंजीनियर है / डाक्टर है / वकील है, हम नहीं जान सकते, जब वह बोलेगा तभी उसका कोई न कोई गुण दिखेगा तभी व्यक्त कहेंगे
  • पहले यदि सत व्यक्त हुआ तो सत तत्व को ईश्वर कह दिया तब सत Dominant अवस्था में रहेगा तथा बाकी दो गुण Recessive Mode में रहकर उसके सहचर बनकर साथ देंगे
  • एक गुण जब प्रभावी होता है तो बाकी गुण उसका साथ देते है
  • यहा सब जगह ब्रह्म ही है परंतु Dominancy के आधार पर नाम बदल जाएगा
  • सत प्रभावी = ईश्वर कहेंगे
  • रज प्रभावी = हिरण्यगर्भ कहेंगे
  • तम प्रभावी = विराट कहेंगे
  • तम से सृष्टि बनी है, यह चेतना का गाढ़ा स्वरूप है, इसे रूपक अलंकार में कहा गया कि दुध से गाढ़ा दही निकला
  • विराट में भी तीनो गुण है, यहा तम अधिक प्रभावी है तथा बारी दो कम प्रभावी है
  • जब सत प्रभावी होता है तो मन और ज्ञानेंद्रियां बनाया, तब ये प्रकट हो गई
  • जब रज प्रभावी होता है तब प्राण और कर्मद्रियां बनता है
  • जब तम प्रभावी होता है तब उससे 5 सूक्ष्म भूत व 5 महाभूत उत्पन्न होते है
  • यही संसार के खिलने का तरीका है
  • इसी विज्ञान को यहा पैगलोपनिषद् में पैंगल ऋषि को बता रहे है

अणो रणियान महतो महियान, इनसे हम यह समझ पाते है कि हम एक शक्ति के स्त्रोत है तथा बहुत बड़ी शक्ति हमारे भीतर विद्यमान है, लेकिन इस शक्ति का हम उपयोग नहीं कर पा रहे हैं तो यदि हमारे भीतर ज्ञान नहीं है तो इस शक्ति का उपयोग क्या हो सकता है

  • हम समर्पण तो कर ही सकते है
  • एक बात तो समझ सकते है कि हम कम से कम असुर वृतियो वाले तो नहीं है
  • हम अपने को ईश्वर के प्रति समर्पण कर देगे तो ईश्वर हमारा उपयोग कर लेगा
  • हम किसी वस्तु को कबाडी को भी दे देंगे तो कितने ही लोग कबाडी से भी उस वस्तु को अपने घर ले जाएंगे तथा उसका उपयोग कर लेंगे, इस सृष्टि का कोई भी घटक बेकार नही है
  • ईश्वर या गुरु को समर्पण कर देंगे तो वह हमारा उपयोग कर लेगा
  • भले ही Old Age में उतना शरीर से काम नही ले सकते तथा शारीरिक सामर्थ्य घटती है परन्तु भीतर का सूक्ष्म शरीर Develope होता है, मन का स्तर बढ़ा रहता है
  • भले ही शारीरिक क्षमता कम है परन्तु फिर भी वे ज्ञान का उपयोग करेंगे, अपने घर के बच्चो के लिए तथा अन्य समस्याओं के समाधान के लिए आप अपने ज्ञान का उपयोग करते है
  • इस तरह ईश्वर आपकी Cosmic Body से भी काम लेता है
  • आपका अच्छा सोचना भी अंतरिक्ष में जाकर विचारो की सफाई करता है, आपका इस प्रकार कार्य करते हुए जीवित रहना भी बहुत बड़ा काम है
  • मील का पत्थर कुछ काम न करते हुए भी अपने स्थान पर रहकर जाने वालो को रास्ता दिखा रहा होता है
  • आपके पिछले जीवन से अन्य लोग भी प्रेरणा पाते रहेंगे
  • बुद्धिमानो का अधिकांश समय स्वाध्याय मनन चिंतन व Research में ही बीतता है, यह भी बहुत बड़ा काम है, आप इसे ईश्वर का काम माने
  • जो भी हमारे करीब आए उनमे प्रेम स्नेह व आत्मीयता का विस्तार करे, इस प्रकार का ईश्वरीय कार्य करते हुए आपका जीवित रहना ही काफी है

हनुमान चरित्र में आया है कि जब हनुमान जी अपनी शक्ति भूल जाते हैं, तब उन्हे अपनी शक्ति का स्मरण कराया जाता है, कृप्या इसके तत्व ज्ञान पर प्रकाश डाले

  • जब हमारे भीतर भीआत्म विस्मृति हो जाती है कि मै शरीर नहीं आत्मा हूँ तब हम भी शरीर भाव में आ जाते है, यह एक सामान्य प्रक्रिया है, हर कोई यह भूल जाता है
  • राम जी की पत्नी अपहरित हो गई तब वे यह भूल गए कि मै भगवान हूँ तथा आदमी की तरह रोने लगते थे
  • आत्मविस्मृति संतो का गुण है
  • प्रकृति भी ईश्वर ने ही उत्पन्न किया है, प्रकृति भी चाहती है कि हमारे साथ भी खेले तो हमें अपने को Permanent Magnet बना लेना होता है तथा समर्पण करना होता है
  • संत लोग बच्चो के बीच में बच्चा बन जाते है तथा ज्ञानियों के बीच में ज्ञानियो जैसा व्यवहार करते है

क्या हम अपनी इसी गरीमा को / अस्तित्व को भूल जाते है तथा ऐसे तुच्छ कार्य करने लगते है

  • भुल्लकडी की अवस्था में हमारा नाम बदल जाएगा तथा हम शिव से जीव कहलाने लगेगे
  • इस भुल्लकडी में हनुमान जी उनके जोश अधिक था तथा होश कम था तथा जोश का दुरूपयोग कर डालते थे
  • इसी प्रकार नचिकेता भी बाल बुद्धि में थे तथा यज्ञ की पूरी महिमा नहीं जानते परन्तु बार बार अपने पिताश्री को टोक रहे थे, उनके पिता उदालक भी तो ऋषि थे, वे भी कुछ सोचकर ही बूढ़ी गायों को दान में दे रहे थे, वे गुरुकुल चलाते थे तथा वहा पर गौपालन भी होता था, गौमय तथा गौमूत्र से औषधियां बनती थी परन्तु नचिकेता जज जैसा बार बार टोक देते थे तो तभी उन्होंने कहा कि हम तुम्हे यम (जज) के पास भेजते है

गीता में श्लोक यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् , धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे, जैसे बुद्ध ने अंगुलिमाल को बिना किसी मार काट के बदल दिया तो श्री कृष्ण को इतनी मारकाट करवाने तथा यदुवंशियों का नाश कराने की क्या आवश्यकता थी

  • यह रोग पर निर्भर करता है कि दवाई देने से काम चल सकता है या आपरेशन करने से रोग ठीक होगा या सलाह परमार्श से ही ठीक होगा

यदि कुसंस्कारी व्यक्ति को बिना ठीक किए ही मार दिए तो फिर से वह कुसंस्कारी ही जन्म लेगा तो उसे मारे ही क्यों

  • यह भी ठीक है तो उसे पहले prepratary कक्षा में भेजेंगे, यदि कोई व्यक्ति एक ही बार में कोई कक्षा नहीं पास कर सकता तो उसे कहेंगे कि पहले तुम इस कक्षा में आकर बैठों, क्योंकि यहां ऊर्जा का नाश तो वैसे भी नहीं हो सकता तथा वास्तव में यहां कोई नहीं मरता
  • कभी कोई मरा ही नहीं, ना दुर्योधन मरा, ना उसका शरीर मरा तथा ना ही उसकी आत्मा मरी
  • शरीर पंच भूतों में विलीन हो गया तो अब दूसरे शरीर से काम लेंगे, यहां तो केवल ऊर्जा का रूपांतरण भर हुआ, आत्मा तो मर ही नहीं सकती
  • ईश्वर का शरीर था तथा ईश्वर ने सभी शरीर Good use के लिए दिए, कोई Misuse /अधर्म कर रहा तो उसके लिए राइफल ले गए
  • पहले उसे समझाया परन्तु जब समझाने से नहीं माना, तब ऐसा करना पड़ा
  • भगवान शान्तिदूत बनकर जा रहे थे तथा वह उन्हे ही बन्दी बनाने की बात करने लगा तो जब कोई उपाय नहीं था तब ऐसा (युद्ध) करना पड़ा
  • करोडो अरबो जन्मों का कर्ज किश्तों में चुकाना होता है
  • यह समझे कि यदि ऑपरेशन अच्छा डॉक्टर करेगा तो साइड इफेक्ट नहीं होगा

आपने बताया कि बच्चों को टोका टाकी नहीं करना चाहिए परन्तु यदि वे अनावश्यक खर्च कर रहे है तो क्या उन्हे समझाना नहीं चाहिए

  • बच्चा यदि व्यस्क है तो वह भी कुछ सोच कर के ही कुछ खरीद रहा होगा, अगर कुछ गलत भी होगा तो इससे वह खुद सीखेगा और जो वह सीखेगा वह Permanent सीखेगा
  • आपके कहने से करेगा तो उसके मन में एक शंका बनी रहेगी कि इनकी उम्र अधिक हो गई है तथा हर बात में टोकते रहते हैं
  • हर व्यक्ति अपनी बुद्धि से सोचकर बढ़िया ही करता है
  • यदि आपने टोकना बंद ना किया तो बाद में फिर आपसे छिप कर करेगा
  • आप केवल सलाह व सम्मान भर दे सकते है, मनवाने की बाध्यता नहीं कर सकते
  • उसे स्वयं भी निर्णय लेने दीजिए, एक खास उम्र के बाद में अधिक टोका टाकी नहीं करनी चाहिए, बच्चों को कह सकते है

जो भी वह कार्य कर रहा है तो क्या उसे करने दिया जाए

  • आप नहीं भी रहेगे तो भी तो वह करेगा ही करेगा, कब तक आप उसे रोक सकते है
  • तो क्यों नहीं आप यह सब कुछ छोड कर कही बाहर कुछ दिन गुरुदेव का कार्य / अपनी साधना में निकलते
  • परिवाज्रक बनकर आप निकले

एक बच्चे ने मुझसे प्रश्न किया है कि जब ईसा मसीह का जन्म 25 दिसम्बर को हुआ था तो अंग्रेजी कैलेंडर 1 जनवरी से क्यों शुरु होता है? दोनों की date एक ही होनी चाहिए थी।

मैंने चर्च के फादर से पूछा तो बोले मुझे मालूम नहीं। कृपया इसका कोई संतोषजनक उत्तर हो तो बताइए। हिन्दी पंचांग की तरह इसमें भी कोई गणितीय calculation है क्या?

  • सबसे Shortest और Exact calculation वाला यही अंग्रेजी कैलण्डर है
  • केवल जन्मदिन के आधार पर कलैण्डर नहीं बनाए जाते
  • हमारे ऋषियों ने चंद्रमा की गति के आधार पर कैलेंडर (विक्रती सम्वत) दिया तथा उसी के आधार पर सभी पर्व त्यौहार आते है तथा कुछ पर्व सौर की गति के आधार पर जैसे मकर संक्राति या विश्वकर्मा पूजा हो गया
  • पहले जब सनातन धर्म था तो उसने भी जन्म तो किसी हिन्दु धर्म में ही लिया गया होगा
  • फिर बाद अपना ईसाई मत चला दिया होगा
  • यह कैलेंडर बाद में भी बदला गया होगा
  • इसका मूल कारण कुछ और भी रहा हो परन्तु ऐसा लगता है कि उसमें अनेको बार बदलाव किए होगे तथा इसमें Error की कम संभावना है, इस कैलेंडर को बनाने पूरे विश्व के वैज्ञानिक लगे थे, केवल क्रिश्चियन ही नहीं थे
  • सनातन धर्म में अग्रेजी कैलंडर अब Merge कर गया है, ज्ञान किसी एक की बपौती नहीं, यह हर किसी की सम्पति है, पूरे विश्व की सम्पत्ति है
  • ईसा मसीह भी तथा हर व्यक्ति ही पूरे विश्व की सम्पत्ति है, जब वसुदैव कुटुम्बकम की बात हम कह रहे हैं तो फिर कोई अलग कहां से रह गया
  • जहा जो अच्छा मिले तो उसका लाभ ले
  • पूज्य गुरुदेव ने सारे महापुरुषो की जीवनियां लिखी है
  • बाईबल में इसा मसीह के जीवन का 12 साल (18 से 30 साल) गायब है, वे भारत में हिमालय क्षेत्र में आकर उपनिषदों का अध्यन कर उन पर Practical कर रहे थे तब उन्हें कुछ सिद्धियां मिली फिर गए तो भगवान बनकर गए, गुरुदेव ने इसका जिक्र किया
  • हर महा मानव की अच्छाइयो को लिया जाता है        🙏

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