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पंचकोश जिज्ञासा समाधान (13-01-2025)

पंचकोश जिज्ञासा समाधान (13-01-2025)

आज की कक्षा (13-01-2025) की चर्चा के मुख्य केंद्र बिंदु:-

कठोपनिषद् में पुत्र के वचन से सहमत होकर पिता ने नचिकेता को यम के पास भेज दिया वे बाहर गए थे, नचिकेता प्रतीक्षारत रहे, लौटने पर यम की पत्नी ने उन्हें कहा – वैश्वनार अग्नि ही ब्राह्मण अतिथि रूप में घरों में प्रवेश करते हैं, संभ्रांत जन उनका अर्ध्य – पाद्यादि द्वारा सत्कार करते हैं, अत: (अर्ध्य हेतु) जल प्रदान करें, में वैश्वनार अग्नि ही ब्राह्मण अतिथि रूप में घरों में प्रवेश करते हैं, का क्या अर्थ है

  • वैश्वानर -> समस्त सृष्टि को चलाने वाली ज्ञानयुक्त उर्जा है
  • अतिथी -> ब्रह्मवर्चस के धनी व ब्रह्म ज्ञानी स्तर के लोग ही अतिथी कहलाते थे, वे समष्टि चेतना को अपने जीवन में घोले रहते थे
  • ईश्वरीय विचार व ईश्वरीय भाव से युक्त ऐसे लोग उन दिनो अतिथी कहलाते थे, आज जैसा नहीं होता था
  • गुरुदेव ने कहा कि अतिथी वे है -> जो ब्राह्मण सज्ञक है तथा जो तपस्वी व लोक साधक है, वे किसी घर में रुकते नहीं थे
  • किसी का कल्याण करना हो तभी उनके पास जाते थे या आत्मज्ञान से सम्बंधित वार्तालाप करने ही वे जाते थे
  • केवल दान दक्षिणा के लिए नहीं जाते थे

संभ्रांत जन उनका अर्ध्य – पाद्यादि द्वारा सत्कार करते हैं, का क्या अर्थ है

  • अर्ध्य = षोडशोपचार पूजन / आचमनम
  • पहली बार कोई मिलने आता है तो पहले उनसे भोजन या जल ग्रहण करने का आग्रह किया जाता है, यह बहुत बडा शिष्टाचार है
  • कही भी आप जाए तो कुशल क्षेम समाचार पूछने में अधिक समय व्यर्थ न करते हुए सीधा प्रयोजन पर उतरा जाए

पैगलोपनिषद् के तृतीय अध्याय में पैंगल ऋषि यागवल्क से पूछ रहे है कि महावाक्य के विषय में समझाइए, तत्वमसि में तत पद सर्वगत आदि लक्षणों से युक्त, माया की बाजी से युक्त, सच्चिदानंदस्वरूप, जगत योनी रूप, अव्यक्त ईश्वर का बोधक है, वही ईश्वर अन्तःकरण की वादी के कारण भिन्नता का बोध होने से त्वम पद का आवलम्बन लेकर प्रकट किया जाता है, ईश्वर की उपाधि माया व जीव की उपाधि अविद्या है, इनका परित्याग कर देने से तत् व त्वम् पदों का लक्ष्य उस ब्रह्म से है जो प्रत्यागात्मा से अभिन्न है, इसमें माया व अविद्या को स्पष्ट करे

  • अव्यक्त -> मूल प्रकृति के लिए आया है
  • सांख्य दर्शन में 24 वा तत्व मूल प्रकृति है जिसमें सत रज तम, तीनों एक समान हो जाते हैं -> यही अव्यक्त अवस्था है
  • यह अव्यक्त अवस्था अपने भीतर से पंचतत्वो के बुलबुले निकालती रहती है
  • आत्मा के द्वारा उत्पन्न संसार निर्माण की क्रीडा को अपरा / अविद्या कहा गया
  • परा यहा जीव के लिए आया है, विशुद्ध आत्मा जब मन बुद्धि इद्रियों के साथ चिपका तो अब इससे आवृत हो जाएगा तथा अब जीव कहलाने लगेगा, यह आवरण खुद से उसने अपने उपर ओढ़ा है
  • इस चिपकाव को छुडाने / हटाने पर सांख्य दर्शन में महऋषि कपिल ने जोर दिया है तथा बताया कि जीवो के दुख का एक मात्र कारण यह चिपकाव ही है
  • पतंजलि ने कहा कि जिस वृतियों से हम चिपके तो हमारा मन उसके जैसा व्यवहार करने लगेगा, जैसे नशे से पूर्व अलग ढंग का व्यवहार कर रहा था परंतु नशा करने के बाद अब वह नशेड़ी जैसा व्यवहार करने लगा, इसका मतलब उस पर आवेश चढ़ गया
  • किसी भी वस्तु से चिपकने पर उसकी आभा मंडल इसके मूल रूप को आवृत कर लेती है
  • इसलिए अपने को स्थिर प्रज्ञ बनाए रखिए तब उसके साथ खेलते हुए भी चिपकेगा नहीं
  • कटहल काटने से पूर्व हाथ पर तेल या घी लगा लेने पर, हाथों पर नुकसान नहीं होता
  • प्रत्यागात्मा = विशुद्ध आत्मा जो ज्ञानात्मक अवस्था में है

नादबिन्दूपनिषद् मैं आया है कि आत्मज्ञान के प्रादूरभूत होने पर भी प्रारब्ध स्वयं त्याग नहीं करता किन्तु जैसे ही तत्वज्ञान का प्रकट होता है, वैसे ही प्रारब्ध कर्म का क्षय हो जाता है, का क्या अर्थ है

  • यहा बताया है कि प्रारब्ध को (उसको) भी समाप्त किया जा सकता है
  • दो शब्द आए हैं -> आत्मज्ञान व तत्वज्ञान
  • आत्मज्ञान = मै शरीर नहीं आत्मा हूं परन्तु संसार के व्यवहार अलग है
  • यदि 24 तत्वो से परे आत्मा (25वा तत्व) के विषय में जानकारी ले ली परन्तु उस आत्मा के गुण कर्म स्वभाव को अभी नहीं जाना है कि मै समस्त शक्तियों से युक्त हूँ, आदि अन्त रहित हूँ -> ये सभी गुण कर्म स्वभाव जान लेगें तभी बौधत्व कहलाएगा -> यह तत्वज्ञान से आएगा
  • जब तक बौधत्व नहीं है तब तक केवल ज्ञान मात्र से प्रारब्ध नहीं छूटता है
  • जब यह पता लगने लगे कि मै शरीर नहीं हूँ तथा जो दुख कष्ट हो रहा है वह मुझे नहीं केवल शरीर को हो रहा है
  • आत्मज्ञान के साथ-साथ तत्वज्ञानी बनना ही पड़ेगा नहीं तो अपने गुणों का बौधत्व नहीं होगा
  • तत्वज्ञान = आत्मबोध = आत्मज्ञान = आत्म साक्षात्कार = आत्मकल्याण = आत्मानुभव -> गुरुदेव ने इन अलग अलग शब्दों का उपयोग किया -> इसी को गुरुदेव ने तत्वज्ञान कहा
  • बौधत्व = Practically Proved
  • क्षय होना = जब हमें कष्ट नहीं होगा तो समझे कि क्षय हो गया
  • तत्वज्ञान की अवस्था में यदि प्रारब्ध आया तो समझे कि अपना फर्नीचर टूटा तो हम क्यों रोए -> फर्नीचर को Nut Bolt से सही कस लेेंगें
  • हमारी कुर्सी टूटने पर हम कहा रोते हैं
  • कष्ट आने पर यदि कोई रो रहा है तो कहेंगे कि प्रारब्ध भोग रहा है
  • प्रारब्ध में कष्ट आने के बाद भी आप ढहाका लगाकर हंस रहे हैं तो इसका अर्थ यह है कि प्रारब्ध हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाया तथा अब इस अवस्था में प्रारब्ध का क्षय हो गया
  • यदि तत्व को समझ लेगें तो उसके दुखों से प्रभावित नहीं होंगे

स्वामी विवेकानंद रचित “राजयोग” में एक वाक्य है- “स्त्री और पुरुष के श्वास प्रक्रियाओं में भिन्नता होती है।” कैसे? क्या इसका असर मन पर भी पड़ता है? इसको थोड़ा स्पष्ट करें।

  • दो शब्दों का प्रयोग किया = रई और प्राण
  • पुरूष में थोडा अक्खड़पन, रुखापन व पराकर्म अधिक है
  • स्त्री में ममत्व – करूणा – संवेदनाएं – भावनाएं कुछ अधिक है
  • यहा श्वास का अर्थ प्राणिक Energy से है
  • प्राणिक उर्जा / विद्युत, स्त्री व पुरुष में थोडा अलग Variety का होता है
  • हर व्यक्ति के प्राण अलग अलग रहते हैं, हर प्राण की गंध अलग अलग रहती है
  • कुत्तों में व्यक्तियों के प्राणों को सुंघ कर पहचान करने की क्षमता रहती है
  • वही प्राण हम भी ले रहे थे परन्तु कुत्तों की तरह नहीं पहचान कर पा रहे
  • यही कारण है कि एक ही मूर्ति को दस लोग देखेगें तो अपनी अपनी भावनाओं के आधार पर React करेंगे
  • स्त्री = भाव संवेदना / ईडा प्रधान है
  • पुरुष = पराकर्म / पिंगला प्रधान है

प्रज्ञा अवतार कल्कि अवतार का पूर्वार्द्ध है क्या कल्कि अवतार ही सत्य युग होगा कृप्या प्रकाश डाला जाय

  • प्रजावतार, बुद्ध का उतरार्ध है
  • बुद्ध के समय में यह प्रचलन था कि हम बुद्धि की शरण में जाएं, पहले ज्ञान के आभाव में लोग गलतियां करते थे
  • परन्तु आज के समय में जानकार लोग ही गलती कर रहे है तो अब उससे भी Refine अवतार की आवश्यकता है
  • प्रजावतार को ही बुद्ध का उत्तरार्ध कहा जाता है, समझदारी विकसित होने पर व्यक्ति गलती करना बन्द कर देता है
  • दो प्रकार के सत्य है
  1. सापेक्ष सत्य -> संसार में क्या खाने योग्य है तथा क्या नहीं, क्या वरेण्यं, क्या श्रेय, क्या प्रेय -> इन्हीं सब जानकारी के आधार पर संसार में व्यवहार करेगा
  2. निरपेक्ष सत्य -> रितम्बरा प्रज्ञा
  • अभी जो युग आएगा उसमें पीछे के सतयुग भी Fail हो जाएंगे
  • लोग यकीन नहीं करेगे कि पहले लोग मांस भी खाते थे, भविष्य में एक शानदार वैज्ञानिक युग आ रहा है
  • फिर आदमी प्रकृति का Good Use करता रहेगा, इन्हीं भावनाओं में व्यक्ति कुछ अधिक लाभ ले सकता है
  • एक जगह प्रज्ञावतार में लिखे है कि बुद्ध का उतरार्ध है तथा यह बुद्ध के छोडे हुए काम को पूरा करेगा
  • कल्कि = निष्कलंक और वह केवल आत्मज्ञान होता है, ज्ञानाग्नि ही सभी कर्मो को भस्म कर सकती है, सामान्य ज्ञान को यहां नहीं कहा गया कि यह सारे कर्मों को भस्म कर सकता है
  • यही ज्ञानाग्नि ही बढ़ते बढ़ते आत्माग्नि व ब्रह्माग्नि की Form में जाएगा
  • आने वाली Generation जो होगी वे विज्ञानमय से नीचे नहीं आएंगी, अभी हम मनोमय में ही लड़खड़ा रहे हैं परन्तु Next Generation बहुत उच्च अवस्था की तथा विज्ञानमय के स्तर की होगी तथा उनकी चेतना विज्ञानमय में रहकर काम करेगी
  • यह सब तभी होगा जब हम अपनी गति बनाए रखें

जो विज्ञानमय में नहीं आ पाएंगे उनके लिए प्रज्ञा युग का स्वरूप क्या रहेगा

  • उनके लिए Sleeping Mode रहेगा तथा वे अपने से उपर की अवस्था वालो के अनुचर बनकर रहेंगे
  • Officer नहीं बन पाए तो चपड़ासी बनेंगे
  • 100% कभी भी सभी का बदलाव नहीं होता है अन्यथा प्रकृति का स्वरूप कभी नहीं बन पाएगा
  • समाज में लोग तो हर तरह के रहेंगे परंतु गलत कार्य करने वालों की दबंगई चलेगी नहीं
  • जैसे आज के समय में तेजी से बदलाव आ रहा है, कोई भी गलत कार्य होने से पूर्व ही उसकी पोल खुल जाती है तथा बड़ी क्षति होने से रह जाती है
  • नारी जाति का उत्थान भी तेजी से हो रहा है, बच्चे भी उत्कृष्ट बुद्धि के साथ जन्म ले रहे हैं
  • आज से 30 वर्ष पूर्व व अभी में कितना अन्तर आ गया है

एकादशी के दिन भात खाना मना रहता है व तुलसी तोड़ना भी मना रहता है, इसके पीछे क्या कारण है

  • भात कफ प्रधान होता है, अपान में अपान होता है तथा जौ में प्राण होता है
  • साधना इसलिए किया जाता है कि प्राण बढ़े ना कि प्राण घटे, चावल में अपान है इसलिए चावल के लिए मना किया जाता है
  • कफ मृत्यु का कारण बनता है तथा चावल कफ प्रधान होता है
  • ठंडा में चावल कम कर देता है तथा Fasting व अन्य माध्यमों से शरीर में अग्नि बढ़ाने की प्रक्रिया चलती है
  • तुलसी तोडना इसलिए बंद करते है क्योंकि तुलसी विष्णुप्रिया है वह भी व्रत करता है
  • पूजापाठ में प्रसाद के रूप में डाल सकते है
  • तुलसी की ताकत एकादशी से अगले दिन बढ़ी रहेगी क्योंकि एकादशी पर वह सुर्य की शक्तिशाली किरणों को सोख लेता है
  • बिना तुलसी डाले विष्णु प्रसाद ग्रहण नहीं करते -> इसका अर्थ यह है कि तुलसी का संयमित उपयोग किया जाए
  • उपयोगिता के आधार पर कोई मरीज को देना है तो रात को भी दे सकते है
  • जहा तुलसी का जंगल / वन लगा हो वह स्थान तीर्थ कहलाता है, वहा कभी भी तोड़ सकते है
  • त्रिकाल संध्या जो तुलसी का काढा पीता है उसे चंद्रायण व्रत की तथा जीवन में कभी भी एकादशी व्रत की आवश्यकता नहीं पड़ती, शरीर को ब्राह्मण बना देता है व चेतना को बिल्कुल शुद्ध कर चमका देता है

योग वशिष्ठ में जागृत स्वपन सुषुप्ति अवस्था को कैसे समझे

  • जब हम जगे रहते है तो हमारा Frontal Lobe काम कर रहा होता है, तब हम मन के द्वारा इन कर्मेंद्रियों का प्रत्यक्ष रूप में प्रयोग करने लगते हैं
  • जब हम जगे हुए रहते हैं तब जीव की प्रकृति है कि हम इस शरीर को अपने ढंग से चलाएंगे तथा इस पर पूरा नियंत्रण कर सकते हैं
  • जब काम करते-करते शरीर थक जाता है, तब प्रकृति इसे Sleeping mode में ले जाने के लिए एक Hormones का स्त्राव निकालती है तब उस अवस्था में प्रकृति ही हमें Sleeping Mode में जाकर Charge करने लगती है
  • यदि हम अपने शरीर से सभी तरह के तनाव को हटा दें तब Rest Mode में आ जाते है
  • अचानक भी नींद नहीं आती, यह मन जब सोता है तो सोने से पूर्व हमारा मन अवचेतन मन से होकर गुजरता है तब दबे पड़े हुए संस्कार उसे समय हम पर भारी पड़ सकते हैं
  • जैसे कभी कभी झपकी आ जाता है
  • निंद आने के समय ज्ञानेंद्रियों पर व कमेद्रियो पर अपना नियंत्रण ढीला पड़ने लगता है
  • परन्तु स्वपनास्था में हम बाहर की क्रमेद्रियों का अधिक उपयोग नहीं करते है बल्कि सूक्ष्म वृतियों का इस्तेमाल करेंगे
  • सपने में भीतर की वृतियो / संस्कार के कारण ही क्रिया कलाप करने लगता है
  • शरीर सोया है तथा फिर भी भीतर के क्रियाकलाप चल रहे है, यह अवस्था भी बराबर नही रहती फिर हम स्वप्न में भी भूल जाते हैं
  • तीसरी अवस्था मै जब पूरी तरह से भुल्लकड़ी आती है तथा कुछ भी पता नहीं चलता तब वहा हर चीज का आभाव हो जाता है तथा अपनी भी कोई जानकारी न हो तब प्रकृति पूर्ण रूप से शरीर को अपने नियंत्रण में ले लेती है, यही अव्यक्त अवस्था है -> इसमें शरीर पूरी तरह से Charge हो जाता है, यही गहरी नींद की अवस्था भी है
  • थोड़े समय भी गहरी नींद दी जाए तो घंटे की बैटरी चार्ज हो जाती है
  • पृथ्वी के चारो और दौड़ने वाली schumen Rays जो है, वे इस शरीर के माध्यम से भी North to South गुजरती है तथा इसी से हमारी बैटरी चार्ज हो जाएगी
  • थकान के बाद बिना खाए केवल गहरी नींद में सोने भर से ही बैटरी चार्ज हो जाता है, इस में भी यह विज्ञान काम करता है
  • पृथ्वी के चारों और दौडने वाली भू चुम्बकीय धाराएं है, यह शरीर भी उसी से चिपका होने के कारण उसका हिस्सा बन गया तथा यही भू चुम्बकीय तरंगो का current शरीर को चार्ज करता है, यह शरीर की Natural अवस्था है तथा जीव कभी-कभी उसे अवस्था में भी गुजरता है तथा उसे समय का भी भान नहीं रहता, इसे भी ऋषियों ने शरीर की एक अवस्था माना हैं
  • शरीर व अवचेतन मन सो गया है परन्तु अपनी आत्म स्थिति की अवस्था में योग निंद्रा की अवस्था में हम जग रहे हैं -> इस आत्मस्थिति की अवस्था को तुरीया कहा गया, यही जीवन मुक्त स्थिति भी है

स्वपन काल में स्थिर होने से जागृत भाव होता है तथा जागृत के संकल्प भी जागृत काल में स्थिर होते से स्वपन ही है, का क्या अर्थ है

  • जागृत भाव में भी हम कल्पना करते है तथा स्वपन भी ले रहे होते है -> इसे जागृत स्वपन के रूप में यहा लिया गया है
  • दिमाग में हम सोच रहे हैं परन्तु आवश्यक नहीं कि वैसा ही हो तो इस प्रक्रिया को भी जागृत स्वपन अवस्था कहते हैं
  • जगृत अवस्था में जो संकल्प होते है उन संकल्पों के आधार पर, स्वप्न में भी हम बहुत सी समस्याओं का समाधान कर लेते हैं
  • पिछले जन्म के घटनाकर्मो का दृश्य भी देख सकते है क्योंकि आत्मा जन्म ही नहीं लेती तो यह भी संभव है
  • अवचेतन मन में प्रश्न को रात को सोने से पूर्व रख दिया तथा अवचेतन मन सपने में समाधान ढूढ रहा था, अवचेतन मन बहुत ताकतवर होता है तथा स्वपन में हमें खास जगह ले जाकर हमारी समस्या का समाधान दिया
  • जागृत में जो संकल्प होते है तो उस अवस्था में Conciousness वाली अवस्था में भी लाभ ले सकते है
  • बहुत सारे वैज्ञानिको को समाधन सपने में ही मिल गया था
  • कोई भी स्थिति खराब नहीं है      🙏

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