समसामयिक दिशा निर्देश: 2
प्रथम सप्ताह के लिये क्रमिक सूत्र
स्वाध्याय ( आत्म समीक्षा + स्वयं पर प्रयोग+कंठस्थ+चर्चा)
“भूर्भुवः स्वस्त्रयो लोका व्याप्तमोम्ब्रह्म तेषु हि ।
स एव तत्थतो ज्ञानी यस्तद्वेति विचक्षणः ।। “
भावार्थ— भू: भुव: और स्व: ये तीन लोक हैं , उन तीनों लोकों में ” ॐ ब्रह्म ” व्याप्त है। जो बुद्धिमान उस ब्रह्म को जानता है , वही वास्तव में ज्ञानी है।
ॐभूर्भव:स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्यधीमहि धियो योन: प्रचोदयात् ।
आत्मसाक्षात्कार-ईश्वरदर्शन के तीन उपाय —–
1. उपासना (ब्रह्म सायुज्यता)
2. साधना (आत्म नियंत्रण)
3.आराधना ( लोकसेवा )
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उपासनात्मक प्रयोग —( जप+ध्यान) + स्वाध्याय + सत्संग ।
साधनात्मक प्रयोग — पंचकोशी साधना ।
आराधनात्मक प्रयोग —- प्रज्ञाभियान के सप्तसूत्री कार्यक्रम ।
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जप-ध्यान => साधक अपने शारीरिक-मानसिक स्थिति अनुसार ।
स्वाध्याय => स्वरूचि विषय + क्लासरूम में पोस्ट विषय ।
सत्संग = अपने मित्र समूह में डिस्कशन-प्रश्नोत्तरी ।
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——– पंचकोशी प्रशिक्षक, Lal Bihari Singh
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जय गुरुदेव, अति सुंदर